Last Updated:April 30, 2025, 17:38 IST
Pahalgam Terror Attack Toolkit: पहलगाम हमले की जांच में लश्कर ए तोएबा के विंग तहरीके पाशबान का टूलकिट मिला है, जिसमें डेड ड्रॉप पॉलिसी और कोड वर्ड्स का जिक्र है. यह टूलकिट आतंकियों की साजिश और बचने के तरीके बता...और पढ़ें

आतंकी संगठन लश्कर ए तोएबा के विंग तहरीके पाशबान ने इस टूलकिट को तैयार किया है. (फोटो PTI)
हाइलाइट्स
पहलगाम हमले की जांच में लश्कर ए तोएबा का टूलकिट मिला.टूलकिट में डेड ड्रॉप पॉलिसी और कोड वर्ड्स का जिक्र है.जांच एजेंसियां टूलकिट की हर जानकारी खंगाल रही हैं.Pahalgam Terror Attack Toolkit: पहलगाम में हुए बर्बर नरसंहार ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. अब इस हमले की तह तक जा रही जांच एजेंसियों के हाथ एक ऐसा ‘टूलकिट’ लगा है, जो आतंकियों की खतरनाक ‘पाठशाला’ का पर्दाफाश करता है. इस टूलकिट में न सिर्फ हमले की साजिश के तरीके बताए गए थे, बल्कि पकड़े जाने से बचने के लिए हैरान करने वाले ‘कोड वर्ड’ और दिशा-निर्देश भी मौजूद थे.
आतंकी संगठन लश्कर ए तोएबा के विंग तहरीके पाशबान ने इस टूलकिट को तैयार किया है. टूलकिट में ‘डेड ड्रॉप पॉलिसी’ को किसी भी साजिश को अंजाम देने की ‘रीढ़’ बताया गया है. यह पॉलिसी दो अनजान आतंकियों के बीच सूचना और हथियार साझा करने का एक गुप्त तरीका है. लेकिन इस पॉलिसी के साथ कुछ सख्त नियम भी जुड़े थे.
क्या है आतंकियों का डेड ड्रॉप पॉलिसी?
डेड ड्रॉप पॉलिसी वह तरीका है जिसमें दो आतंकी एक-दूसरे को बिना अपनी पहचान बताए जानकारी और हथियार साझा करते हैं. टूलकिट में इस पॉलिसी की कुछ शर्तें भी बताई गई हैं:
खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक, टूलकिट में इसी तरह की अन्य बातों का भी जिक्र है. आतंकियों द्वारा इस टूलकिट को एक सुरक्षित ऐप के जरिए एक-दूसरे तक पहुंचाया जाता था. जांच एजेंसियां अब इस टूलकिट में मौजूद हर एक जानकारी को खंगालने में जुटी हैं, ताकि पहलगाम हमले की पूरी साजिश और उसमें शामिल आतंकियों के नेटवर्क का पता लगाया जा सके.
‘गुमनाम’ मुलाकात के खतरनाक नियम:
सामान या जानकारी सौंपने के लिए ऐसी सुनसान जगह चुनी जाए, जहां लोगों की ज्यादा आवाजाही न हो. यह जगह सरकारी इमारतों से दूर होनी चाहिए, जैसे कि कोई पार्क या कब्रिस्तान. सामान या हथियार छोड़ने से पहले पूरी तैयारी कर ली जाए. समय का पाबंद रहना बेहद जरूरी है, यानी तय समय पर ही सामान पहुंचाया जाए. दोनों आतंकियों के हाथ में घड़ी और आरामदायक जूते होने चाहिए. सामान छोड़ने से पहले वहां एक खास निशान बनाया जाए, जिसे उठाने वाला पहचान सके. पहनावा पश्चिमी या आधुनिक होना चाहिए, ताकि किसी को शक न हो. अपने साथ किसी साथी या दोस्त को न लाया जाए. सामान या हथियार छोड़ने की जगह अपने रहने की जगह से दूर होनी चाहिए.चौंकाने वाली बात यह है कि इस टूलकिट में ‘डेड ड्रॉप पॉलिसी’ के लिए चार खुफिया ‘कोड वर्ड’ भी बताए गए थे, जिन्हें निशानी की 4 किस्म’ कहा जाता था:
बिजी: यानी किसी वजह से सामान नहीं पहुंचाया जा सका. खतरा: यानी ड्रॉप की जगह के पास खतरा है, न तो वहां आना है और न ही सामान उठाना है. इसका मतलब है कि आप सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर हैं. ड्रॉप: यानी सामान सुरक्षित रूप से पहुंचा दिया गया है. पिक्ड अप: यानी सामान सफलतापूर्वक उठा लिया गया है.सिर्फ सामान पहुंचाना ही नहीं, बल्कि साजिश को अंजाम देने के लिए आतंकियों को अपनी आवाजाही (ट्रेवलिंग) में भी खास सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए थे. इस टूलकिट में यात्रा के दौरान अपनी पहचान छुपाने और शक से बचने के लिए विस्तृत गाइडलाइन दी गई थी:
पहनावा: यात्रा के दौरान इस्लामी लिबास पहनने से बचने की सख्त हिदायत थी. पेंट को टखनों से ऊपर न रखने और एक आम पर्यटक की तरह दिखने को कहा गया था. कपड़ों का रंग भी एकदम साधारण न रखने और स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार पहनने के निर्देश थे. सामान: अपने साथ कोई भी इस्लामी साहित्य या धार्मिक वस्तुएं, जैसे कुरान, मिस्वाक, तस्बीह आदि न रखने की चेतावनी दी गई थी. खुशबू और अंदाज: इस्लामी इत्र की जगह सामान्य परफ्यूम इस्तेमाल करने, घड़ी दाहिने हाथ में न पहनने और सुन्नत के अनुसार अंगूठी न पहनने के निर्देश थे. यहां तक कि गैर-इस्लामी दिखने वाला सामान्य हेयरस्टाइल रखने को भी कहा गया था. हथियार: चाकू या पिस्तौल जैसी खतरनाक चीजें साथ न रखने और अगर बहुत जरूरी हो तो उसे किसी और के पास रखने की सलाह दी गई थी, ताकि तलाशी में शक न हो.यात्रा के दौरान ‘सतर्कता ही सुरक्षा’
जिस जगह जा रहे हैं, उसकी पूरी जानकारी पहले से जुटाने के निर्देश थे. यात्रा के दौरान धार्मिक उपदेश देने या बुराई से रोकने जैसी गतिविधियों से बचने को कहा गया था. किसी से बहस या लड़ाई से बचने की हिदायत थी, क्योंकि इससे लोगों या पुलिस का ध्यान आकर्षित हो सकता था. टिकट खुद खरीदने और गंतव्य पर पहुंचने के बाद उसे नष्ट करने के निर्देश थे. यात्रा की शुरुआत से लेकर गंतव्य तक आसपास के लोगों पर नजर रखने और उनके चेहरे याद रखने की कोशिश करने को कहा गया था, ताकि पीछा करने वालों का पता चल सके. संभव हो तो अपनी असली मंजिल से पहले उतरकर यह जांचने की सलाह दी गई थी कि कोई पीछा कर रहा है या नहीं.होटल में ‘छिपने’ के खतरनाक तरीके
होटलों को अक्सर खुफिया एजेंसियों से जुड़ा बताया गया था, इसलिए सोच-समझकर होटल चुनने की सलाह दी गई थी. गरीब या छात्र होने पर महंगे होटल में न रुकने के निर्देश थे. कमरे में घुसते ही छिपे हुए कैमरे या संदिग्ध उपकरणों की अच्छी तरह जांच करने की हिदायत थी, खासकर पेंटिंग, टीवी, घड़ी और बिस्तर के आसपास.’ संवेदनशील बातचीत या कॉल करने के लिए टीवी की आवाज तेज करने या पार्क जैसी खुली जगह पर जाने की सलाह दी गई थी. अगर तलाशी का खतरा हो तो छोटे शहरों के सीमित होटलों से बचने और एयरबीएनबी जैसे निजी विकल्पों को चुनने के निर्देश थे, जहां खुफिया जांच कम होती है. अगर पीछा किया जा रहा हो तो सीसीटीवी कैमरों के रास्ते से बचने और लंबी सीधी यात्रा से बचने की सलाह दी गई थी. यात्रा को छोटे हिस्सों में बांटकर सुरक्षित सवारी या लिफ्ट लेने के निर्देश थे. तलाशी होने पर इस्तेमाल किया हुआ मोबाइल न रखने और किसी और के फोन से घर या संपर्क को कॉल न करने की हिदायत थी. होटल या बस/ट्रेन स्टेशन पर न रुकने और जरूरत होने पर बड़े सरकारी अस्पतालों में मरीजों के तीमारदारों के साथ विश्राम करने की सलाह दी गई थी, जहां सीसीटीवी कैमरे कम हों. अगर तलाशी हो रही हो तो कुछ नकदी रखने, अपनी यात्रा की जानकारी किसी को न देने और सुरक्षित जगह पहुंचने के बाद नया फोन लेकर बैकअप संपर्क से जुड़ने के लिए वाई-फाई ढूंढने के निर्देश थे.इस टूलकिट से साफ है कि आतंकी संगठन न सिर्फ हमलों की साजिश रचते हैं, बल्कि पकड़े जाने से बचने के लिए भी पूरी तैयारी करते हैं. जांच एजेंसियां अब इस ‘आतंकी मैनुअल’ के हर एक ‘चैप्टर’ को बारीकी से खंगाल रही हैं, ताकि पहलगाम नरसंहार के पीछे के हर चेहरे और हर साजिश का पर्दाफाश किया जा सके. यह टूलकिट आतंकियों की मानसिकता और उनके काम करने के तरीकों पर भी रोशनी डालता है, जिससे भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने में मदद मिल सकती है.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
April 30, 2025, 17:38 IST