पटना. बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के साथ ही अब निगाहें एग्जिट पोल पर टिक गई हैं. पटना से लेकर पूर्णिया, दरभंगा से गया तक हर नुक्कड़ पर चर्चा एक ही सवाल पर ठहरी है कि-इस बार कौन? सियासी गलियारों में कयासों का दौर तेज है और नेताओं से लेकर आम मतदाता तक सभी अपने-अपने हिसाब से नतीजों की दिशा टटोल रहे हैं. माहौल में सन्नाटा भी अपनी आवाज में बहुत कुछ बोल रहा है, वहीं लोगों के बीच एग्जिट पोल के बीच एग्जिट पोल के नतीजों को लेकर उत्सुकता भी बहुत है.
गांव-शहर की चाय दुकानों पर चर्चा का माहौल गर्म है. दिल्ली ब्लास्ट की खबरों के बीच टीवी स्क्रीन पर लोग बिहार चुनाव के पुराने चुनाव नतीजों के ग्राफ का विश्लेषण कर रहे हैं और हर किसी के पास अपनी जानकारी है. कहीं कोई कह रहा है कि इस बार जातीय समीकरण बदले हैं तो कोई दबी आवाज में कहता है-इस बार मुद्दा चेहरे से बड़ा है. हर इलाके में एक किस्म की बेचैनी है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी कि क्या बिहार की राजनीति किसी भी वक्त करवट ले सकती है?
उत्तर बिहार में समीकरण, दक्षिण में विकास और नेतृत्व का सवाल
दरअसल, इस बार बिहार चुनाव के संभावित परिणामों को लेकर कोई भी पूर्ण विश्वास से कोई कुछ नहीं कह पा रहा है. सामाजिक समीकरणों के आधार पर इलाकावार चर्चाएं भी अलग-अलग हैं. उत्तर बिहार यानी मिथिला और सीमांचल हमेशा से चुनावी गणित का केंद्र रहा है. यहां परंपरागत वोट बैंक इस बार भी सक्रिय रहे, लेकिन युवा मतदाताओं की चुप्पी ने सभी खेमों की चिंता बढ़ा दी है. दरभंगा, मधुबनी और अररिया जैसे जिलों में मतदाताओं ने स्थानीय उम्मीदवारों से ज्यादा राज्य स्तर के मुद्दों पर वोट किया है. वहीं दक्षिण बिहार-गया, नवादा, औरंगाबाद में वोटिंग जारी है और इन इलाकों में विकास और नेतृत्व का मुद्दा ज्यादा असरदार दिखा रहा है.
शहरी मतदाताओं की नई और बड़ी भूमिका
पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर जैसे शहरों में पहली बार शहरी मतदाता निर्णायक बनते दिख रहे हैं. पिछले चुनाव की तुलना में इस बार युवाओं की भागीदारी अधिक रही. जानकारों का कहना है कि सोशल मीडिया और डिजिटल प्रचार ने शहरों के मूड को काफी हद तक प्रभावित किया है. एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, इस बार शहरों में सिर्फ जाति नहीं, परफॉर्मेंस भी मुद्दा बना है. जनता देख रही है कि किसने काम किया और किसने सिर्फ वादा.
राजनीतिक जानकारों की राय-नतीजों में बड़ा पेंच
राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि इस बार के नतीजे किसी एकतरफा लहर के नहीं होंगे. पटना के वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि- यह चुनाव सत्ता परिवर्तन या सत्ता पुनरावृत्ति से ज्यादा, दिशा तय करने वाला है. जनता ने इस बार ‘कौन’ से ज्यादा ‘क्यों’ पर वोट दिया है. वहीं चुनाव विश्लेषक प्रेम कुमार का कहना है कि- बिहार का मतदाता अब बहुत गणनात्मक हो गया है. अब वह स्थानीय जातीय समीकरणों के साथ विकास और भरोसे के संतुलन पर वोट करता है.
एग्जिट पोल से पहले हर खेमे में बेचैनी
एग्जिट पोल आने से पहले हर पार्टी अपने-अपने सर्वे और बूथ रिपोर्ट्स खंगाल रही है. किसी को अंदरूनी रिपोर्ट में बढ़त का भरोसा है, तो किसी को ‘साइलेंट वोटर’ का डर. हालांकि, इस बार यह भी साफ दिख रहा है कि ग्रामीण इलाकों में मतदान के रुझान पहले से अधिक खुले और आत्मविश्वासी रहे हैं-यानी मतदाता अब छिपकर नहीं, सोच-समझकर मतदान कर रहा है.
एग्जिट पोल से पहले का वो सन्नाटा जो सबसे मुखर है!
2025 बिहार चुनाव ने एक बार फिर यह साबित किया है कि यहां की राजनीति केवल नेताओं की नहीं, मतदाता की भी परीक्षा होती है. एग्जिट पोल आने से पहले जो सन्नाटा दिख रहा है, दरअसल वही सबसे ज्यादा बोल रहा है, क्योंकि इसमें उम्मीदें भी हैं, डर भी और एक नई राजनीति के संकेत भी. एग्जिट पोल चाहे जो दिखाए, बिहार के इस चुनाव की असली कहानी मतदाताओं के मिजाज ने पहले ही एक ऐसी कहानी लिख दी है जिसमें – परंपरा और परिवर्तन दोनों आमने-सामने खड़े हैं!

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