ईसाइयों के देश पर इस्लाम का कब्जा, 10 साल में सब कुछ बदला, हिटलर के चहेते खुश!

23 hours ago

Last Updated:September 07, 2025, 08:57 IST

ईसाइयों के देश पर इस्लाम का कब्जा, 10 साल में सब कुछ बदला, हिटलर के चहेते खुश!शरणार्थियों की वजह से जर्मनी की सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव हुआ है.

कई बार ऐसा होता है कि सदियों से चली आ रही चीजें महज कुछ वर्षों में पूरी तरह बदल जाती हैं. आमतौर पर हम बेहद तेज गति से हुए ऐसे बदलावों की उम्मीद नहीं करते हैं. लेकिन, चाहे-अनचाहे ऐसा हो जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ है दुनिया के एक बड़े मुल्क के साथ. यह ऐसा मुल्क है जिसकी कभी पूरी दुनिया में तूती बोलती थी. लेकिन, बीते एक दशक में इस देश में भयंकर रूप से बदलाव हुआ है. अब आप सोच रहे होंगे कि ये कौन का मुल्क है. तो आइए बता ही देते हैं. यह जर्मनी है. पहले और द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त यह मुल्क दुनिया के बेताज बादशाह था. उसके बाद के दिनों में भी यह यूरोप की एक सबसे बड़ी ताकत थी. लेकिन बीते एक दशक में यहां बहुत कुछ बदला है. यहां अचानक से इस्लाम मानने वाले मुस्लिम आबादी में भयंकर रूप से इजाफा हुआ है.

दरअसल, 10 साल पहले 2015 में जर्मनी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया था, जब तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने सीरिया, अफगानिस्तान और इराक जैसे युद्धग्रस्त और आर्थिक रूप से अस्थिर देशों से आने वाले लाखों शरणार्थियों के लिए अपने देश के दरवाजे खोल दिए. मर्केल का यह कदम स्वागत संस्कृति के रूप में जाना गया, उस समय वैश्विक सुर्खियों में छाया रहा. लेकिन महज एक दशक बाद इस निर्णय का प्रभाव जर्मनी के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. इससे जर्मनी की राजनीति और सामाजिक धारणाओं को नया आकार मिला है.

मर्केल का निर्णय और शरणार्थियों का आगमन

वर्ष 2015 में जब सीरिया में गृहयुद्ध अपने चरम पर था और अफगानिस्तान व इराक जैसे देश हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहे थे तब लाखों लोग सुरक्षित आश्रय की तलाश में यूरोप की ओर बढ़े. यूरोप में जर्मनी एक ऐसा मुल्क है जो आर्थिक रूप से स्थिर और समृद्धि है. यह देश इन शरणार्थियों का प्रमुख गंतव्य बन गया. 2015 और 2016 में जर्मनी में 11.64 लाख लोगों ने पहली बार शरण के लिए आवेदन किया. इसमें से अधिकांश सीरिया, अफगानिस्तान और इराक से थे. 2015 से 2024 तक यानी नौ वर्षों में कुल 26 लाख आवेदन आए. इस तरह जर्मनी यूरोपीय संघ में ऐसे आवेदन हासिल करने वाला शीर्ष देश बन गया. मर्केल ने यह निर्णय मानवीय आधार पर लिया था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह व्यावहारिकता से भी प्रेरित था.

अमेरिका समाचार चैनल सीसीएनएन ने इसको लेकर एक डिटेल रिपोर्ट छापी है. सीएनएन से बातचीत में हिल्डेशाइम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हानेस शमैन ने कहा- मर्केल का उद्देश्य यूरोपीय शरण प्रणाली को स्थिर करना था, क्योंकि अन्य यूरोपीय देश इस संकट से निपटने के लिए तैयार नहीं थे. हालांकि, इस निर्णय ने जर्मनी के सामने अप्रत्याशित चुनौतियां पैदा कर दी है.

सामाजिक बदलाव

2015 में जर्मनी के लोगों ने शरणार्थियों का स्वागत गर्मजोशी से किया. म्यूनिख में स्थानीय लोग शरणार्थियों को भोजन और पानी बांटने के लिए सड़कों पर उतरे. अनस मोदमानी जैसे शरणार्थी जो 17 साल की उम्र में सीरिया से भागकर जर्मनी पहुंचे, इसे अपने जीवन का सबसे अच्छा पल बताया. लेकिन यह स्वागत संस्कृति ज्यादा समय तक नहीं टिकी. 2016 की नववर्ष की पूर्व संध्या पर कोलोन में महिलाओं पर सामूहिक यौन हमलों की घटना हुई. इसमें शरणार्थियों को दोषी ठहराया गया. इस घटना ने मर्केल की नीतियों पर सवाल उठाए और सामाजिक माहौल को बदल दिया. इस घटना ने दक्षिणपंथी दल अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (AfD) को एक नया मंच प्रदान किया. उस वक्त तक इस दल को जर्मनी में बहुत पसंद नहीं किया जाता था.

2013 में स्थापित यह पार्टी हाशिए पर थी. यह पार्टी की नीतियां काफी हद तक हिटलर की नीति से प्रभावित है. यह अब जर्मनी की दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन चुकी है. AfD ने शरणार्थी-विरोधी और आप्रवासन-विरोधी भावनाओं को हवा दी, जिसका असर हाल के चुनावों में साफ दिखाई देता है.

इस बात की पुष्टि इस रिपोर्ट से होती है कि 2015 में केवल 38 फीसदी जर्मन शरणार्थियों की संख्या कम करने के पक्ष में थे, लेकिन 2025 तक यह आंकड़ा 68 फीसदी तक पहुंच गया है. यानी अब जर्मन जनता शरणार्थियों को पसंद नहीं कर रही है.

राजनीतिक उथल-पुथल और नीतिगत बदला

वमर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) के वर्तमान चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने शरणार्थी नीति में व्यापक बदलाव की घोषणा की है. मर्ज लंबे समय से मर्केल की नीतियों के खिलाफ थे. अब उन्होंने सीमा पर हजारों अतिरिक्त गार्ड तैनात करने और शरणार्थियों को सीमा पर ही रोकने की नीति अपनाई है. हालांकि, बर्लिन की एक अदालत ने इस कदम को गैरकानूनी ठहराया. मर्ज ने स्वीकार किया कि जर्मनी 2015 के संकट से निपटने में विफल रहा और अब इसे ठीक करने की कोशिश कर रहा है.

2024 में सीरिया में बशर अल-असद शासन के पतन के बाद AfD की सह-नेता एलिस वाइडेल ने मांग की कि जर्मनी में रह रहे सीरियाई शरणार्थी तुरंत अपने देश लौटें. यह बयान दर्शाता है कि आप्रवासन-विरोधी भावनाएं अब मुख्य धारा की राजनीति का हिस्सा बन चुकी हैं.

शरणार्थियों का अनुभव और भविष्य की अनिश्चितता

अनस मोदमानी जैसे शरणार्थियों की कहानियां इस संकट के मानवीय पहलू को उजागर करती हैं. मोदमानी अब जर्मनी में आईटी पेशेवर हैं और टिकटॉक पर हजारों फॉलोअर्स के साथ सक्रिय हैं. उन्होंने 2015 में मर्केल के साथ ली गई सेल्फी से वैश्विक सुर्खियां बटोरी थीं. लेकिन वह कहते हैं कि जर्मनी में माहौल अब बदल गया है. पहले लोग हमारा स्वागत करते थे, लेकिन अब राजनेता हर समय टीवी पर कहते हैं कि हमें सीरिया या अफगानिस्तान वापस भेज देना चाहिए. वह यह भी कहते हैं कि अगर स्थिति और खराब होती है तो वह जर्मनी छोड़कर किसी ऐसे देश में जाना चाहेंगे जहां उन्हें स्वीकार किया जाए.

क्या है जर्मनी का भविष्य?

जर्मनी का शरणार्थी संकट न केवल इस देश की राजनीति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरे यूरोप में आप्रवासन नीतियों पर बहस को तेज कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि मर्केल का निर्णय उस समय की परिस्थितियों में अपरिहार्य था, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणामों ने जर्मनी को एक कठिन स्थिति में ला खड़ा किया है. प्रोफेसर डैनियल थाइम के अनुसार- जर्मनी में शरण आवेदनों की संख्या में हाल के वर्षों में कमी आई है, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक तनाव कम नहीं हुआ है. 2025 में जर्मनी में शरण आवेदनों की संख्या में और कमी देखी गई, लेकिन यह मर्ज की नई नीतियों का परिणाम है या शरणार्थियों के लिए जर्मनी की आकर्षकता कम होने का, यह अभी स्पष्ट नहीं है. जो स्पष्ट है, वह यह कि जर्मनी का सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य स्थायी रूप से बदल गया है. AfD जैसी पार्टियों का उदय और आप्रवासन-विरोधी भावनाओं का बढ़ना इस बात का संकेत है कि मर्केल की दरियादिली अब अतीत की बात हो चुकी है. जर्मनी अब एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां उसे अपने मानवीय मूल्यों और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाना होगा. शरणार्थी संकट ने न केवल जर्मनी की नीतियों को बदला है, बल्कि इसने देश की आत्म-छवि और यूरोप में इसकी भूमिका पर भी गहरा प्रभाव डाला है.

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First Published :

September 07, 2025, 08:57 IST

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