उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी के सुप्रीम कोर्ट जज रहते 5 बड़े फैसले

2 hours ago

विपक्ष यानि इंडिया ब्लॉक ने तेलंगाना के रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज बी सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर बी. सुदर्शन रेड्डी का कार्यकाल छोटा था, लेकिन उन्होंने जो फैसले दिए, वे गहरा असर छोड़ गए. उन्होंने दिखाया कि एक जज सिर्फ कानून का तकनीकी व्याख्याता नहीं होता, बल्कि वह संविधान की आत्मा का संरक्षक भी होता है.

सुप्रीम कोर्ट के कई जज अपने कार्यकाल में ऐसे निर्णय देते हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बन जाते हैं. इन्हीं में से एक नाम है न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी. उन्होंने 2007 से 2011 तक सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में काम किया. कार्यकाल छोटा था, लेकिन इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसे अहम फैसले दिए जो भारतीय लोकतंत्र और संविधान की आत्मा से जुड़े हुए हैं.

न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी का जन्म 8 जुलाई 1946 को हैदराबाद स्टेट (अब तेलंगाना) में एक किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने ओस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से कानून (LL.B.) की डिग्री प्राप्त की. 1971 में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में एडवोकेट के रूप में पंजीकृत हुए.वह मार्च 2013 में गोवा के पहले लोकायुक्त बने लेकिन कुछ महीनों में व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दे दिया.

1. सलवा जुडूम को गैरकानूनी करार दिया (2011)

ये शायद उनके करियर का सबसे चर्चित और ऐतिहासिक फैसला था. छत्तीसगढ़ में माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लंबे समय से संघर्ष चलता रहा है. सरकार ने 2005 में एक प्रयोग शुरू किया – सलवा जुडूम. इसमें स्थानीय आदिवासी युवकों को हथियार देकर “विशेष पुलिस अधिकारी” (SPO) बनाया गया. उनका काम था माओवादियों के खिलाफ लड़ाई में सेना और पुलिस की मदद करना.

सरकार को लगा कि इससे माओवादी आंदोलन की कमर टूट जाएगी लेकिन हुआ उल्टा. इन SPO पर गांवों को जलाने, आम लोगों पर हिंसा करने और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगने लगे.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति सुरेश काटजू की बेंच ने इस पूरे प्रयोग को असंवैधानिक करार दिया. उनका तर्क था, सरकार अपने ही नागरिकों को हथियार देकर उन्हें मौत के मुंह में नहीं धकेल सकती. यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है. आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की है, इसे आदिवासियों पर नहीं डाला जा सकता. कोर्ट ने आदेश दिया कि तुरंत सभी SPOs को निरस्त किया जाए और उनसे हथियार वापस लिए जाएं.

असर – इस फैसले के बाद सलवा जुडूम बंद हो गया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे ऐतिहासिक जीत माना. सरकार को भी यह सीख मिली कि सुरक्षा नीतियों में संवैधानिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

2. काले धन की जांच पर सख्ती (2011)

2008-09 के दौरान स्विस बैंकों और विदेशी टैक्स हेवन में भारतीयों के काले धन का मुद्दा गरमा गया. सुप्रीम कोर्ट में राम जेठमलानी और अन्य लोगों ने याचिका दाखिल की कि सरकार ढंग से जांच नहीं कर रही.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – न्यायमूर्ति रेड्डी की बेंच ने इस पर कड़ा रुख लिया. उन्होंने फैसले में साफ कहा, सरकार ढीला रवैया नहीं अपना सकती.विदेशों में जमा काले धन की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) बनाया जाए. इस जांच दल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करें, ताकि जांच निष्पक्ष हो.

असर – इस फैसले ने सरकार पर भारी दबाव डाला. पहली बार काले धन का मुद्दा केवल राजनीतिक नारा नहीं रहा, बल्कि न्यायपालिका ने उस पर ठोस कार्रवाई की.

3. सेना मेडिकल कॉलेज में आरक्षण नीति रद्द

दिल्ली का आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (ACMS) में MBBS की सीटें सिर्फ सेना के कर्मचारियों के बच्चों, शहीदों की विधवाओं और कुछ खास श्रेणियों के लिए आरक्षित थीं.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – न्यायमूर्ति रेड्डी की बेंच ने कहा, यह शिक्षा के मौलिक अधिकार और समानता के खिलाफ है. मेडिकल कॉलेज को सिर्फ एक वर्ग तक सीमित नहीं किया जा सकता.

असर – इस फैसले से उच्च शिक्षा में अवसरों की समानता को मजबूती मिली. कोर्ट ने दिखाया कि चाहे संस्था कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, संविधान के मूल सिद्धांत सब पर लागू होंगे.

4. जनहित याचिका यानि पीआईएल में सुधार

जनहित याचिका (PIL) भारत में न्याय तक आम लोगों की पहुंच का बड़ा साधन है लेकिन इसके दुरुपयोग भी खूब होते हैं. कई बार लोग अनाम चिट्ठियां लिखकर कोर्ट को गुमराह करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – न्यायमूर्ति रेड्डी ने कहा, हाई कोर्ट को किसी अनाम पत्र को PIL के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए. ना ही ऐसे पत्रों पर सुओमोतो यानि स्वतः संज्ञान लेना चाहिए.

असर – इससे PIL की गंभीरता और विश्वसनीयता बढ़ी. अब अदालतों ने केवल उन्हीं याचिकाओं पर ध्यान देना शुरू किया, जिनमें शिकायतकर्ता जिम्मेदारी के साथ सामने आता है.

5. न्यायिक पारदर्शिता और आरटीआई

RTI एक्ट आने के बाद सवाल उठा कि क्या जजों को अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – न्यायमूर्ति रेड्डी ने इस मुद्दे को बड़े बेंच को भेजा. उन्होंने कहा कि ये सवाल बहुत गंभीर है, एक तरफ न्यायपालिका की स्वतंत्रता है तो दूसरी ओर पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग है.

असर – इससे न्यायिक पारदर्शिता पर बहस तेज हुई. आगे चलकर कई जजों ने स्वेच्छा से अपनी संपत्ति का खुलासा करना शुरू किया.

इन फैसलों से न्यायमूर्ति रेड्डी की सोच साफ झलकती है. मानवाधिकार सबसे ऊपर है. चाहे सरकार हो या सुरक्षा बल, वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकते. पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है. काले धन की जांच हो या जजों की संपत्ति, लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब सत्ता जवाबदेह हो. संविधान सब पर भारी है.

फैसलों का व्यापक असर

– सलवा जुडूम को खत्म करने के फैसले से लाखों आदिवासियों की जान बची. उन्हें कानूनी सुरक्षा मिली.
– काले धन पर जनचेतना आई. उनके आदेश से ये मुद्दा राष्ट्रीय बहस का केंद्र बना.
– सेना कॉलेज मामले से साफ संदेश गया कि शिक्षा पर कोई वर्गीय कब्ज़ा नहीं हो सकता.
– PIL सुधार और पारदर्शिता पर उनकी राय ने अदालत की विश्वसनीयता बढ़ाई.

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