औरंगजेब के शासनकाल में बना 'चमत्कारी' मदन मोहन मंदिर कर रहा वाटर हार्वेस्टिंग

1 day ago

Last Updated:April 14, 2025, 17:09 IST

Amazing News: पानी अनमोल है...इसे बचाना बेहद जरूरी है. इस बात को लेकर आज जगह जागरूक्ता अभियान चलाए जा रहे हैं. लेकिन, आप चौंक जाएंगे...जब हम आपको यह बताएंगे कि पानी को लेकर ज्यादा जागरुकता आज से करीब 400 साल प...और पढ़ें

औरंगजेब के शासनकाल में बना 'चमत्कारी' मदन मोहन मंदिर कर रहा वाटर हार्वेस्टिंग

जल संरक्षण का संदेश दे रहा रांची में 400 साल पुराना चमत्कारी मंदिर

हाइलाइट्स

रांची के मदन मोहन मंदिर में 400 साल पुराना जल संरक्षण मॉडल. प्राचीन चमत्कारी मंदिर भीषण गर्मी में भी कम नहीं होता यहां भूजल. रांची मदन मोहन मंदिर में 400 साल पुराना जल संरक्षण मॉडल प्रभावी.

रांची. बिन पानी सब सून… आज इस कहावत को कोई भी अनसुना करने को तैयार नहीं दिखता, क्योंकि सभी को मालूम है कि बिना पानी के जिंदगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती. लेकिन, गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत हमें पानी के मोल को समझने को और भी मजबूर करती है. लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि आज से 360 साल पहले रांची में पानी बचाने को लेकर इससे ज्यादा जागरूकता थी. अगर आपको भरोसा न हो तो चले आइये रांची के कांके प्रखंड के बोड़ेया में बना मदन मोहन मंदिर. यहां के प्रबंधन की अद्भुत सोच, उस समय के लोगों की इंजीनियरिंग माइंड के बारे में जान-समझकर हैरान रह जाएंगे.

मदन मोहन मंदिर के पुजारी प्रमोहित पांडेय बताते हैं कि 1665 में बने मदन मोहन मंदिर का निर्माण नागवंशियों के शासन काल में एक ब्राह्मण लक्ष्मी नारायण तिवारी ने कराया था. खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण से पहले ही यहां वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर प्लानिंग कर ली गयी थी. वाटर हार्वेस्टिंग का यह करीब चार सौ पुराना मॉडल आज भी नये मॉडल पर भारी नजर आता है.दरअसल, गर्मियों में उस समय भी पानी की किल्लत महसूस होती होगी, लिहाजा मंदिर की छत को कुछ इस तरह बनाया गया था कि बारिश के पानी को एक कोने से नीचे हौज की शक्ल में पनसोखे में गिराया जाता था, ताकि, बारिश की हर बूंद को बचाया जा सके.

रांची के मदन मोहन मंदिर प्रांगण के साथ इसके आसपास के क्षेत्र में भीषण गर्मी में भी भूजल कम नहीं होता

इसका गवाह है मंदिर परिसर में बना एतिहासिक कुआं जिसका पानी भीषण गर्मी में भी आज तक नहीं सूखा.मदन मोहन मंदिर के पास ही रहने वाले सुकेश तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि 1665 में ग्रेनाइट पत्थर से बना मदन मोहन मंदिर भले ही 358 साल पुराना हो, लेकिन जल संरक्षण को लेकर नागवंशियों की सोच करीब 400 साल पुरानी मानी जाती है. वंशजों की मानें तो पानी बचाने को लेकर ही लक्ष्मी नारायण तिवारी ने इस कॉन्सेप्ट का निर्माण मंदिर की छत पर किया था.

माना जाता है कि इस हौज में गिरने वाला पानी पास के ही एक तालाब में जाकर मिल जाता है जो आसपास के पूरे इलाके में जलस्तर को आज भी मेंटेन रखता है. आज इसी का नतीजा है कि बोड़ेया में मदन मोहन मंदिर के आसपास के इलाके में किसी भी घर में जलस्तर को लेकर कभी समस्या नहीं हुई. हालांकि, मंदिर की खासियत में रोमांच पैदा करती है दो लिपि. इसमें कैथी भाषा में लिपि तो पढ़ ली गयी है, लेकिन पास में लिखी दूसरी लिपि को आजतक डी कोड नहीं किया जा सका.

Location :

Ranchi,Jharkhand

First Published :

April 13, 2025, 16:14 IST

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औरंगजेब के शासनकाल में बना 'चमत्कारी' मदन मोहन मंदिर कर रहा वाटर हार्वेस्टिंग

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