कई बार आपको लगता है कि जिन मित्रों के साथ आपने कभी कुछ गलत नहीं किया, वे अचानक बिना किसी स्पष्ट कारण के शत्रु बन जाते हैं. आखिर इसके पीछे वजह क्या है? अगर आपका समय अच्छा है तो आपके सबसे बुरे दुश्मन भी आपके दोस्तों जैसा व्यवहार करने लगते हैं.
कभी-कभी आपको लगता है कि आपने अपने वर्तमान जीवन में किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है, या किसी के बारे में बुरा नहीं सोचा है, फिर भी आप पीड़ित हैं और दुख से गुजर रहे हैं. ये सवाल बहुत आम है. हम अक्सर अपने जीवन के बारे में बहुत सीमित समझ रखते हैं, और सोचते हैं कि जीवन केवल 50-60 वर्षों का एक छोटा सा समय है. आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि लोगों के विचार, भावनाएं और राय बदलती रहती हैं. सब कुछ बदलता है . कई मित्र शत्रु बन जाते हैं और शत्रु मित्र बन जाते हैं. आप किसी के मित्र हैं और अचानक बिना किसी स्पष्ट कारण के वे आपके शत्रु बन जाते हैं. आपने किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं किया है, फिर भी वे आपके प्रति मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हैं. कभी-कभी ऐसे लोग आपकी मदद के लिए आएंगे जिन्हें आप जानते भी नहीं हैं. आपने उन पर कोई बड़ा उपकार नहीं किया है, फिर भी वे आपकी सहायता करते हैं. यह दोस्ती और दुश्मनी कर्म नामक एक गहरे सिद्धांत पर काम करती है.
अगर आपका समय अच्छा है तो आपके सबसे बुरे दुश्मन भी आपके दोस्तों जैसा व्यवहार करने लगते हैं. और अगर आपका समय अच्छा नहीं है तो आपके सबसे करीबी दोस्त भी आपको गलत समझेंगे और आपके दुश्मनों जैसा व्यवहार करने लगेंगे. यदि आप पीछे मुड़कर देखें तो आपको एहसास होगा कि कहीं न कहीं आपने कांटों के पेड़ के लिए बीज बोए हैं. तो आज या कभी बाद में आपको उस पेड़ के कांटे काटने पड़ेंगे.
एक कहावत है, “कष्टस्य सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता” – आपके सुख और दुख का कारण कोई और नहीं है. आपके जीवन में दुख इसलिए नहीं आता कि ईश्वर आपको सजा दे रहे हैं या आपकी परीक्षा लेना चाहते हैं. वह आपके कर्मों के कारण आता है. आपके सुख ईश्वर के दिए हुए उपहार हैं. यह अनुग्रह है, यह आशीर्वाद है. कर्मों की गति न्यारी है और यह सबसे अधिक वैज्ञानिक भी है. यह आपके मन को सुरक्षित रखता है. यदि आप कर्मों के सिद्धांत को थोड़ा भी समझ लें तो यह आपकी चेतना को ऊपर उठाता है और आपको अपने आस-पास हो रही चीजों से प्रभावित नहीं होने देता.
हमारे आस-पास अगर छोटी सी बात भी हो जाती है तो हमारा धैर्य जवाब देने लगता है. किसी से गालियाँ सुननी पड़ीं, बस हम परेशान हो जाते हैं. यह सब आपके कर्म की वजह होता है. आपको नहीं पता कि आपने किसको कब, किस जन्म में, कितनी गाली दी है, अभी उनमें से थोड़े बहुत वापस आ रहे हैं. यदि इस दृष्टिकोण से देखेंगे और स्वीकार कर लेंगे तो मन में ताजगी बनी रहती है और आपकी चेतना फूल जैसी खिली रहती है. आप कीचड़ से ऊपर उठे रहते हैं. लेकिन अगर हम यह नहीं समझते हैं तो लगता है कि ‘देखो, उसने बुरा किया है; मैं अच्छा हूँ और ये सब बुरे हैं’, और आप उसी धारणा में फंस जाते हैं.
यह समझना बुद्धिमत्ता की बात है कि हमारे साथ जो बुरा होता है, वह हमारे कर्म से और जो भला होता है, वह ईश्वर की मेहर से होता है. यह धारणा आपको ऊपर रखेगी और आपमें चमक बनाए रखेगी. लेकिन अगर यह धारणा छोड़कर यह सोचेंगे कि ‘जो मैंने पाया वह मेरा अधिकार है; मैं सुखी हूँ तो यह मेरा अधिकार है और जो दुख मिल रहा है वह नाइंसाफी है’, तो यह आपके भीतर नकारात्मकता भर देती है.
बुद्धिमान व्यक्ति अपने आप को इन सब से ऊपर रखेंगे. इसका मतलब यह नहीं है कि अगर कोई आपको ठोकर मारता है तो आप यह सोचें कि ‘मेरे कर्म हैं, जो भी मुझे मार रहा है, मारने दो, मैं बैठा रहूँ’, ऐसा नहीं होना चाहिए. यदि कोई आपको मारता है और आप भी उसे मारना चाहते हैं तो आप मार सकते हैं, मगर अपनी चेतना में ग़ुस्सा, दुःख, यह सब लेकर नहीं मारना है.
अगर मारना ही है तो जब आपकी चेतना खिली हुई है, तब मारिए. मारने का अधिकार उसी को है जो मस्त है! जब एक मस्त व्यक्ति किसी को थप्पड़ मारता है तो उससे लाभ ही लाभ है. लेकिन अगर दुखी और क्रोधित व्यक्ति किसी को थप्पड़ मारता है तो उस थप्पड़ से दूसरे को जो नुकसान होता है, वह तो है ही, लेकिन जो मारने वाला है वह खुद भी नुक़सान उठाता है. इसलिए अगर लड़ना हो तो लड़िए, मगर उस लड़ाई को अपने भीतर मत बसाइए क्योंकि उससे आप नकारात्मकता से भर जाते हैं. यह धर्मयुद्ध है.
महाभारत में इसका उल्लेख मिलता है. महाभारत के युद्ध में दोनों पक्षों के लोग दिन में लड़ते थे और शाम को जाकर एक-दूसरे का हालचाल पूछते थे। इसे कमल के पत्ते जैसा होना कहते हैं. कमल के पत्ते पानी में हैं, फिर भी पत्ते पर पानी की बूंदें पत्ते से चिपकती नहीं हैं। अगर यह चीज़ हमारे जीवन में आ जाए तो हम जीत गए! मन जीते तो जग जीते.
अपनी चेतना को बिल्कुल कमल के पत्ते जैसा रखें. संसार को छोड़कर भागना नहीं है. संसार में रहते हुए, सब तरह के लोगों के बीच में बातचीत करते हुए भी कमल के पत्ते जैसे अलिप्त रहें. सब कुछ छोड़-छाड़ के भागना कोई बड़ी बात नहीं. आप कहाँ भागेंगे, वह परिस्थिति फिर कभी न कभी दोबारा आएगी. अनुकूल परिस्थिति तो सबके लिए अनुकूल है, उसमें क्या करना है? लेकिन यदि आप प्रतिकूल परिस्थिति को साधन बना देते हैं तो आप मज़बूत हो जाते हैं. फिर दुनिया की कोई ताक़त आपके भीतर नकारात्मकता नहीं भर सकती.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।