Last Updated:August 23, 2025, 07:59 IST
Kali Prasad Pandey: काली प्रसाद पांडेय...एक ऐसा नाम जिसने बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई. जेल से संसद तक का उनका सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था. बाहुबली छवि और राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच उन्होंने...और पढ़ें

गोपालगंज. “क्या पता… मौत का कब पैगाम आ जाये. मेरे जिंदगी का आखिरी शाम आ जाये. मैं ढूंढता हूं ऐसा मौका, ऐ गोपालगंज के वासियों कब काली की ज़िंदगी आपके काम आ जाये…” यह आखिरी पैगाम उस बाहुबली नेता का है, जो 80 के दशक में उत्तर भारत की सियासत में अपने दबदबे के लिए जाने जाते थे. हम बात कर रहे हैं पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय की जो आज हम सब के बीच नहीं रहें. शुक्रवार देर शाम दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका निधन हो गया.
जेल से संसद तक का सफर
गोपालगंज जिले के कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र के रमजीता गांव में जन्मे काली प्रसाद पांडेय का राजनीतिक जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था. वर्ष 1980 से 1984 तक वह बिहार विधानसभा के सदस्य रहे. 1984 का लोकसभा चुनाव उन्होंने उस वक्त लड़ा, जब वह जेल में थे.उस समय देशभर में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस लहर चल रही थी. लेकिन इसी लहर के बीच निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में काली पांडेय ने बड़ी जीत हासिल की और सीधे संसद पहुंच गए. उन दिनों उनके समर्थकों का नारा बहुत मशहूर हुआ था— “जेल का फाटक टूटेगा, काली पांडेय छूटेगा.” यही नारा उस दौर की राजनीति का प्रतीक बन गया और उनके व्यक्तित्व में एक अलग किस्म का आकर्षण जोड़ गया.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गंधी के साथ काली प्रसाद पांडे की तस्वीर.
बाहुबली छवि और फिल्मी किरदार
काली पांडेय का नाम राजनीति से ज्यादा उनकी बाहुबली छवि के लिए चर्चित रहा. 80 और 90 के दशक में उन्हें बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत का सबसे बड़ा बाहुबली माना जाता था. यहां तक कि उनकी छवि इतनी चर्चित हुई कि 1987 में आई निर्देशक एन. चंद्रा की फिल्म “प्रतिघात” के खलनायक “काली प्रसाद” का किरदार उन्हीं से प्रेरित बताया गया. हालांकि, यह दावा कभी पुख्ता तौर पर साबित नहीं हो पाया, लेकिन गोपालगंज और आसपास के इलाकों के लोग यही मानते रहे कि यह किरदार काली पांडेय की वास्तविक छवि का ही सिनेमाई रूपांतरण था. उन्होंने न्यूज-18 इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में इसका जिक्र भी किया था.
काली की राजनीति में उतार-चढ़ाव
काली पांडेय का राजनीतिक सफर कई उतार-चढ़ावों से गुजरा. निर्दलीय जीत के बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए. कांग्रेस छोड़कर लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी से जुड़े और फिर दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) का हिस्सा बने. एलजेपी में रहते हुए भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने दोबारा कांग्रेस का दामन थाम लिया. आखिरी चुनाव 2020 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लड़ा, लेकिन उसके बाद सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली.
काली पांडे का विवादों से रहा गहरा नाता
काली पांडेय का नाम कई विवादों से भी जुड़ा रहा. 1989 में पटना जंक्शन पर नगीना राय पर बम से हुए हमले में उनका नाम उछला. कई और गंभीर आरोप भी लगे, लेकिन अदालत में कोई भी आरोप साबित नहीं हो सका. इसके बावजूद उनकी साख और राजनीतिक पकड़ बनी रही. बिहार की सियासत के जानकार कहते हैं कि 80-90 के दशक में वह तमाम बाहुबलियों के ‘गुरु’ माने जाते थे.
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के साथ काली पांडे की तस्वीर. (फाइल फोटो)
अधूरी ख्वाहिश और आखिरी संदेश
काली पांडेय ने न्यूज-18 के मशहूर शो “भैयाजी कहिन” में इंटरव्यू देते हुए खुद स्वीकार किया था कि वह कभी नेता नहीं, बल्कि शिक्षक बनना चाहते थे. उनका सपना था बच्चों को पढ़ाना और समाज को ज्ञान से बदलना. लेकिन किस्मत ने उन्हें राजनीति की राह पर ला खड़ा किया. यही कारण था कि अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों में उन्होंने यह पैगाम दिया कि-“मैं चाहता हूं कि मेरी जिंदगी कभी आपके काम आ जाये.”
निधन पर शोक के साथ श्रद्धांजलि
पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे काली पांडेय का इलाज दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में चल रहा था. शुक्रवार को जब उनके निधन की खबर आई, तो राजनीतिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गयी. सांसद डॉ. आलोक कुमार सुमन, विधायक अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय, विधायक कुसुम देवी, पूर्व विधायक मंजीत सिंह, राजद जिलाध्यक्ष दिलीप कुमार सिंह, कांग्रेस जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश गर्ग समेत सैकड़ों नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.
काली के निधन से शोक की लहर
कभी उत्तर भारत के सबसे बड़े बाहुबली कहे जाने वाले काली प्रसाद पांडेय अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी, उनका संघर्ष और उनका नाम बिहार की राजनीति और समाज में लंबे समय तक याद किया जाएगा.काली प्रसाद पांडेय का निधन की खबर से गोपालगंज समेत पूरे बिहार और देशभर के राजनीतिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गयी है.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...
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Location :
Gopalganj,Gopalganj,Bihar
First Published :
August 23, 2025, 07:59 IST