आपके दादा-परदादा जिन ट्रेनों से करते थे यात्रा,इंजन कैसा होता था?यहां देखें

6 hours ago

Last Updated:August 27, 2025, 20:29 IST

नई दिल्‍ली. आपके दादा-परदादा जिन ट्रेनों से सफर करते थे, उनकी कहानी शायद ही आपने सुनी होगी. तो आइए बताते हैं कि पहले के जमाने में ट्रेनों को खींचने वाले इंजन कैसे होते थे, उनका कितना वजह होता था कितना कोयला लगता था और पानी की स्‍टोरेज की क्षमता कितनी होती थी?

आपके दादा-परदादा जिन ट्रेनों से सफर करते थे, उनकी कहानी शायद ही आपने सुनी होगी. तो आइए बताते हैं कि पहले के जमाने में ट्रेनों को खींचने वाले इंजन कैसे होते थे, उनका कितना वजह होता था कितना कोयला लगता था और पानी की स्‍टोरेज की क्षमता कितनी होती थी?

लोको शेड ने संरक्षित इंजीनो का नाम रखें हैं जैसे की अशोका, अंगद , अकबर, साहिब, सिंध, सुल्‍तान, शेर ए पंजाब, रेवाड़ी किंग, आजाद,अश्विनी आदि. खास बात यह है कि 1855 में बना विश्‍व को सबसे पुराना इंजन फेरी क्‍वीन के दीदार आप यहां पर कर सकते हैं. यहाँ डब्ल्यू जी, डब्ल्यू पी, ए डब्ल्यू सी, एक्स ई, डब्ल्यू एल, याई जी और याई जी श्रेणी का स्टीम लोको संरक्षित कर के रखे गए हैं.

132 साल पुराना ये स्टीम इंजन लोको शेड, 1893 में बना गया है. निर्माण के समय यह बाम्‍बे बड़ोदा और सेंट्रल इंडिया रेलवे के तहत था. अपने समय में यह बड़ा रेलवे जंक्‍शन था. मीटर गेज लोको शेड में उस समय करीब 500 कर्मचारी और इंजीनियर काम करते थे. पहले यहां पर 365 लोको पायलट थे.

करीब 100 साल तक लोको शेड चला. इसके बाद 1993 में बंद कर दिया गया. फिर कुछ समय के लिए यहाँ डीजल इंजन का मेंटीनेंस किया गया. 1996 इसे भी बंद कर दिया गया. दिल्ली -रेवाड़ी लाइन के मीटर गेज से ब्रॉड गेज होने के बाद यहाँ ब्रॉड गेज के संरीक्षित स्टीम इंजन को लाया गया और मीटर गेज के इंजनो के साथ दोबारा स्‍टीम शेड को एक हेरिटेज शेड के रूप में शुरू किया गया.

यह स्‍टैंडर्ड इंजन है जो 1958 में तैयार हुआ है, इसकी अधिकतम स्‍पीड 100 से लेकर 105 किमी. प्रति घंटे की है. पैंसेजर ट्रेनों के लिए यह इंजन था. 175 टन वजनी यह इंजन पोलैंड से बनकर भारत आया था. इसमें 15 टन कोयला और 25000 लीटर पानी की क्षमता है. इसे चलाने के लिए दो फायरमैन और एक लोको पायलट की जरूरत पड़ती थी.

यहां पर इंजन गुड्स ट्रेनों के लिए है. इनमें साहिब 1960 में बना है. इस तरह के तीन इंजन साहिब, सिंध और सुल्‍तान है. ये तीनों 1853 में देश में चली पहली ट्रेन को समर्पित कर बनाए गए हैं. 100 टन वजन और 65 किमी. प्रति घंटे की स्‍पीड है. सिंध गुड्स ट्रेन का इंजन 1960 में बना है. अधिकतम स्‍पीड 65 किमी. प्रति घंटे की थी. कोयला 9.5 टन और पानी 13600 लीटर की क्षमता थी. सुल्‍तान यह 1953 में बना इंजन है, जिसका वजन 100 टन है. अधिकतम स्‍पीड 65 किमी. प्रति घंटे की रही है.

<br />यहां पर इंजन गुड्स ट्रेनों के हैं. इनमें साहिब 1960 में बना है. इस तरह के तीन इंजन साहिब, सिंध और सुल्‍तान है. ये तीनों 1853 में देश में चली पहली ट्रेन को समर्पित कर बनाए गए हैं. 100 टन वजन और 65 किमी. प्रति घंटे की स्‍पीड है. सिंध गुड्स ट्रेन का इंजन 1960 में बना है. अधिकतम स्‍पीड 65 किमी. प्रति घंटे की थी. कोयला 9.5 टन और पानी 13600 लीटर की क्षमता थी. सुल्‍तान यह 1953 में बना इंजन है, जिसका वजन 100 टन है. अधिकतम स्‍पीड 65 किमी. प्रति घंटे की रही है.

फ्रंटियर मेल किसी जमाने में सबसे वीआईपी ट्रेन होती थी. यह कभी लेट नहीं होती थी. इसका नाम बाद में बदलकर गोल्‍डेन टेंपल कर दिया गया.

40 से अधिक लोगों की टीम इन स्‍टीम इंजनों को संरक्षित करने में जुटी है. इन सभी का इन इंजनों से दिल से जुड़ाव हो गया है.

First Published :

August 27, 2025, 20:25 IST

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