Last Updated:September 04, 2025, 18:58 IST
Raj Begum: राज बेगम कश्मीर की कोकिला थीं. रेडियो कश्मीर की पहली महिला गायिका राज बेगम के जीवन पर एक फिल्म 'सॉग्स ऑफ पैराडाइज' बनी है. उन्हें पद्मश्री समेत कई पुरस्कार मिले थे.

Radio Kashmir’s first woman singer Raj Begum: बहुत कम कलाकार कश्मीर की कोकिला कही जाने वाली राज बेगम की तरह विभाजनकारी भावनाओं को पाट पाये हैं. उनके गाए गीत घाटी को अपना घर कहने वाले सभी समुदायों के बीच एक साझा सूत्र की तरह प्रवाहित होते हैं. राज बेगम रेडियो कश्मीर (अब ऑल इंडिया रेडियो, श्रीनगर) पर प्रस्तुति देने वाली पहली महिला गायिका थीं. 2016 में जब उनका निधन हुआ तब उनके खाते में कई राष्ट्रीय पुरस्कार और ढेर सारी तारीफ थी. यह उनके करियर की शुरुआत से बिल्कुल अलग नजारा था. क्योंकि उन्हें कड़े विरोध और निंदा का सामना करना पड़ा था. सबा आजाद और सोनी राजदान अभिनीत नई फिल्म ‘सॉन्ग्स ऑफ़ पैराडाइज’ इन्हीं राज बेगम के जीवन पर आधारित है. इस फिल्म का निर्देशन हाफ विडो (2018) फेम दानिश रेंजू ने किया है और इसकी स्ट्रीमिंग अमेज़न प्राइम पर हो रही है.
रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ी
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार राज बेगम का जन्म 1927 में श्रीनगर के मगरमल बाग में एक गरीब और रूढ़िवादी परिवार में हुआ था. उनका बचपन का नाम रेहटी था. उनका विवाह बहुत कम उम्र में ही मोहम्मद अब्दुल्ला नामक एक व्यवसायी से हो गया था. वह कभी स्कूल नहीं गयी, न पढ़-लिख सकती थीं और न ही उन्हें संगीत की कोई शिक्षा मिली थी. लेकिन अपने परिवार की मदद के लिए वह अक्सर विभिन्न समुदायों की शादियों में गाती थीं. एक दिन उनकी आवाज रेडियो कश्मीर के स्टाफ आर्टिस्ट, गायक और सारंगी वादक गुलाम कादिर लांगू को सुनाई दी. वह कभी महाराजा हरि सिंह के दरबारी संगीतकार थे. 1950 में लांगू को नए बने रेडियो स्टेशन के लिए महिला गायिकाओं की तलाश का काम सौंपा गया था. वे इसी तलाश में सड़कों पर घूम रहे थे. कश्मीर लाइफ को दिए एक साक्षात्कार में लांगू ने कहा था कि उन्होंने अपेक्षाकृत गरीब क्षेत्र में घूमना चुना, क्योंकि गायन और संगीत को निम्न वर्ग का पेशा माना जाता था.
ये भी पढ़ें- दरिया-ए-नूर है कोहिनूर का साथी हीरा, क्यों रहस्य बनी हुई है बांग्लादेश में इसकी मौजूदगी, जानें पूरी कहानी
अच्छा नहीं माना जाता था गाना- बजाना
उस समय के रूढ़िवादी कश्मीरी समाज में घर के बाहर गाना खासकर महिलाओं के लिए सम्मानजनक नहीं माना जाता था. लैंगू को रेहटी के पिता और पति को उसे गाने की अनुमति देने के लिए मनाने में काफी समय लगा. उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि उनकी जगह उनकी बेटी का नाम इस्तेमाल किया जाए, ताकि किसी को पता न चले कि रेडियो पर कौन गा रहा है. लांगू ने ही उन्हें सुर और उच्चारण का प्रशिक्षण दिया. एनएफडीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘राज बेगम: द मेलोडी क्वीन ऑफ कश्मीर’ में राज बेगम कहती हैं, “डर के मारे हम चुपके से रेडियो स्टेशन गए. लोगों ने हमें बेशर्म कहकर तिरस्कृत किया. उन्हें लगता था कि उनकी बेटियां हमारा पीछा करेंगी और उन्हें बदनाम करेंगी… हमने इन वर्जनाओं का विरोध किया. हम (वह और नसीम अख्तर, जो उनके बाद शामिल हुए) अडिग रहे और आगे बढ़ते रहे ”
ये भी पढ़ें- किस देवता के मुंह से पैदा हुए ब्राह्मण, क्यों डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ सलाहकार ने की उनकी बात
उनकी आवाज पर कश्मीर का प्रभाव
कश्मीरी गायक और संगीतकार वहीद जिलानी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उनके गाने के फैसले को हिम्मतभरा बताया. वह कहते हैं, “यह उनके लिए बहुत साहसपूर्ण था. उन्होंने सामाजिक बहिष्कार का सामना किया और फिर भी गाना जारी रखा. यह सिर्फ एक महिला की आवाज नहीं थी, बल्कि एक जोशीली आवाज थी जो हम तक पहुंची और पूरे कश्मीर ने ध्यान से सुना.” राज बेगम की प्रख्यात कश्मीरी कवि मकबूल शाह क्रलावारी द्वारा फारसी से अनुवादित प्रेम कहानी गुलरेज़ (बिखरे हुए फूल) गाई तो उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति ने दिल को छू लिया. दिल चुरा रहा है, दिल निवुं शमां (जिसने अंधेरे की आड़ में मेरा दिल चुरा लिया) में जो लालसा थी, रम गएम शीशास (मेरा दर्पण टूट गया) में जो टूटने की भावना थी वह कश्मीरियों के दिलों में बनी रही. उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक कश्मीरी कवि रसा जाविदानी की कविता “मश्रावतस जनन” (मेरे प्रिय, तुम मुझे भूल गए हो) थी. यह एक ऐसे पिता का विलाप था जिसका बेटा विभाजन के दौरान पाकिस्तान में खो गया था. यह गाना आज भी कई कश्मीरियों की सामूहिक स्मृति में गूंजता है.
ये भी पढ़ें- बाढ़ से हर साल भयंकर तबाही झेलता था नीदरलैंड, फिर उसने बना डाले पानी में तैरते घर, भारत को सीखने की जरूरत
महिलाओं के लिए बनाया रास्ता
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एनएफडीसी की डॉक्यूमेंट्री में कवि और उपन्यासकार गुलाम नबी गौहर कहते हैं, “राज बेगम ने कश्मीर की लंबे समय से ठहरी हुई सांस्कृतिक विरासत को फिर से जीवंत कर दिया. हमारी सांस्कृतिक परंपराएं सो गई थीं. राज बेगम की आवाज ने उन्हें जगा दिया.” आलोचना से लेकर सम्मान अर्जित करने तक राज बेगम की यात्रा ने उनके बाद आने वाली कई महिला गायिकाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया. जिनमें नसीम अख्तर, शमीमा देव आजाद, आशा कौल और नीरजा पंडित शामिल हैं. 70 और 80 के दशक में जब राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ रही थी, तब भी राज बेगम का नियमित रेडियो प्रसारण रेडियो पर सुनाई देता था. उनकी गरिमामय आवाज में यह एकमात्र नियमित कार्यक्रम था जो बच हुआ था. वह 1986 में रिटायर हो गईं.
ये भी पढ़ें- समृद्ध है इस शराब का इतिहास, दवा के तौर पर हुई शुरुआत, कैसे बनी इलीट क्लास की ड्रिंक
पुलिस अधिकारी से किया दूसरा विवाह
राज बेगम का विवाह बाद में कादिर गंदेरबली से हुआ जो कश्मीर पुलिस के डीआईजी पद से रिटायर हुए. ऐजाज अशरफ वानी की किताब ‘कश्मीर में शासन का क्या हुआ?’ के अनुसार 1953 में अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के बाद गंदेरबली ने गुलाम मोहम्मद के नेतृत्व में एक विशेष पुलिस इकाई का नेतृत्व किया. वह अपनी किताब में लिखते हैं, “गंदेरबली ने आतंक का राज चलाया, खासकर भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ. पुलिस हिरासत में उन्होंने ऐसे क्रूर तरीकों का इस्तेमाल किया जो किसी भी कानून के तहत जायज नहीं थे. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि कादिर गंदेरबली कश्मीर में ज़ुल्म (उत्पीड़न) का पर्याय बन गए.”
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 04, 2025, 18:58 IST