केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 10 दिसंबर को एसआईआर पर बहस भाषण पर कांग्रेस पर उल्टे वोटचोरी का आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी ने नागरिकता पाने से पहले वोट लिस्ट नाम दाखिल कराकर वोट चोरी की है. हकीकत ये है कि सोनिया पर वोट चोरी का ना तो कोई आरोप है और ना ही अदालत में इस संबंध में गए मामले में ऐसा कुछ कहा गया है. जिस समय बिना भारतीय नागरिकता पाए वोटिंग लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम 1980 में शामिल किया गया, तब केंद्र में चौधरी चरण सिंह की सरकार थी. सोनिया ने तब वोट ही नहीं दिया.
इस बारे में जो मामला अदालत में चल रहा है वो वोट चोरी का नहीं है बल्कि ये है कि बिना भारतीय नागरिकता हासिल किए उनका नाम 1980 में वोटिंग लिस्ट में आ गया. ये मामला अदालत में तकनीक रूप से जारी है, उसे पूरी तरह रद्द नहीं किया गया है. अदालत जनवरी 1926 में इस पर फैसला देगी.
हालांकि इससे मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इसे लेकर एफआईआर की मांग वाली शिकायत खारिज कर दी थी. अब उसी आदेश के खिलाफ दायर रिविज़न पर दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने नोटिस जारी करके सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है.
मामला क्या है
आरोप यह है कि सोनिया गांधी का नाम 1980 में नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट में शामिल किया गया, जबकि सार्वजनिक रिकॉर्ड के मुताबिक उन्होंने भारतीय नागरिकता अप्रैल 1983 में ली. शिकायतकर्ता का कहना है कि अगर 1980 की वोटर लिस्ट में नाम था तो कुछ दस्तावेज़ों में जालसाजी या धांधली हुई होगी, इसलिए एफआईआर होनी चाहिए. सितंबर 2025 में राउज़ एवेन्यू की एसीजेएम अदालत ने एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली शिकायत खारिज कर दी थी।.
अदालत ने कहा था कि नागरिकता तय करना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है जबकि मतदाता सूची में नाम जोड़ना या हटाना चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र है, इस पर आपराधिक जांच का आदेश देना अदालत की सीमा से बाहर होगा.
इस खारिज आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता ने क्रिमिनल रिविज़न दायर किया है, जिस पर 8 दिसंबर 2025 को राउज़ एवेन्यू की स्पेशल जज (पीसी एक्ट) कोर्ट ने सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है. अदालत ने अगली सुनवाई 6 जनवरी 2026 की तारीख लगाई है; यानी मामला अब “रिविज़न” के स्तर पर लंबित है, न कि पूरी तरह समाप्त या रद्द.
क्या ‘बिना नागरिकता वोट करने’ का अपराध साबित हुआ
अभी तक किसी भी अदालत ने यह नहीं कहा कि सोनिया गांधी ने गैर-भारतीय नागरिक रहते हुए अवैध रूप से वोट डाला या अपराध साबित हुआ है. हकीकत ये है कि वो उन्होंने तब वोट डाला ही नहीं. उपलब्ध सार्वजनिक जानकारी या अदालती दस्तावेजों में सोनिया गांधी द्वारा 1980 के आसपास किसी चुनाव में वोट डालने का कोई स्पष्ट प्रमाण या रिकॉर्ड नहीं मिला है
आरोप लगाया गया कि वोटर लिस्ट में सोनिया गांधी नाम 1980 में जोड़ा गया लेकिन 1982 में हटाया गया. 1983 में दोबारा तब शामिल किया गया, जब उन्होंने भारतीय नागरिकता हासिल कर ली.
याचिकाकर्ता ने वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने को जालसाजी का आधार बनाया है, लेकिन वोट डालने का कोई ठोस दावा या सबूत पेश नहीं किया गया. फिलहाल ये साबित नहीं हुआ कि उन्होंने बिना नागरिकता के वोट डाला. कांग्रेस पक्ष का तर्क है कि 30 अप्रैल 1983 को नागरिकता मिलने से पहले उन्होंने किसी चुनाव में वोट नहीं किया.
क्या सोनिया ने वोटर बनने के लिए आवेदन किया
नहीं, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अदालती दस्तावेजों, चुनाव आयोग रिकॉर्ड या समाचार स्रोतों में सोनिया गांधी द्वारा 1980 की वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए फॉर्म 6 या कोई औपचारिक आवेदन का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड सामने नहीं आया.
याचिकाकर्ता विकास त्रिपाठी ने केवल 1980 की वोटर लिस्ट की फोटोकॉपी का हवाला दिया है, जिसमें नाम शामिल होने का आरोप लगाया, लेकिन आवेदन फॉर्म या दस्तावेजों का कोई प्रमाण पेश नहीं किया. उन्होंने जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करने का संदेह जताया पर आवेदन का रिकॉर्ड नहीं दिखाया
क्या कह सकते हैं कि सोनिया ने वोट चोरी की
नहीं, 1980 की वोटर लिस्ट में नाम शामिल होने के आधार पर यह कहना सही नहीं होगा कि सोनिया गांधी ने “वोट चोरी” की. कोई स्रोत यह साबित नहीं करता कि उन्होंने 1980 या उसके आसपास वोट डाला. विवाद केवल नाम की मौजूदगी पर है, जो बाद में हटाया गया. वोट चोरी साबित करने के लिए वास्तविक मतदान का प्रमाण जरूरी होता है, जो उपलब्ध नहीं है.
तब केंद्र में किसकी सरकार थी
1980 के लोकसभा चुनाव से संबंधित वोटिंग लिस्ट तैयार करने का काम चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के कार्यकाल के दौरान हुआ था. 1980 का लोकसभा चुनाव 3-4 जनवरी 1980 में हुआ था. चुनाव की घोषणा से पहले केंद्र में जनता पार्टी के गठबंधन की सरकार थी. प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जुलाई 1979 में इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद लोकदल के चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई. हालांकि ये सरकार अल्पमत में थी. कांग्रेस ने जल्द ही अपना समर्थन वापस ले लिया.
समर्थन वापस लेने के बाद चौधरी चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा को भंग कर दिया. अगस्त 1979 में नए चुनावों की घोषणा कर दी लेकिन अगले लोकसभा चुनाव होने और नई सरकार बनने तक चरण सिंह कार्यवाहक तौर पर प्रधानमंत्री का काम करते रहे.
तब चुनाव आयुक्त कौन थे
1980 के लोकसभा चुनाव के समय भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त एस. एल. शकधर थे. उनका पूरा नाम श्यामालाल शकधर था. उनका कार्यकाल 18 जून 1977 से शुरू होकर 17 जून 1982 तक था. उनकी नियुक्ति जनता पार्टी सरकार के दौर में राष्ट्रपति के जरिए की गई थी.
कैसे किसी का नाम वोटर लिस्ट में शामिल होता है
चुनाव आयोग किसी व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट में खुद शामिल नहीं करता है ना ही कोई व्यक्ति अपना नाम खुद लिस्ट में शामिल करा सकता है. किसी व्यक्ति द्वारा किए गए आवेदन के सत्यापन के बाद होता है.
नया वोटर बनने के लिए व्यक्ति को फॉर्म 6 भरना पड़ता है, जिसमें नाम, पता, जन्मतिथि, फोटो और पहचान दस्तावेज (जैसे आधार, पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र) जमा करने होते हैं. बूथ लेवल ऑफिसर स्थानीय स्तर पर आवेदन प्राप्त करता है, क्षेत्र सत्यापन करता है और निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी को भेजता है, जो अंतिम मंजूरी देता है.
1980 के संदर्भ में वोटर लिस्ट प्रक्रिया मैनुअल थी, जहां BLO या स्थानीय अधिकारी आवेदन सत्यापित करते थे, लेकिन नागरिकता जांच केंद्र सरकार का मामला था.

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