सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में आरक्षण (Reservation) में अनुसूचित जाति (scheduled Caste) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के उप-वर्गीकरण (सब कोटा) की अनुमति दी, जिससे कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को व्यापक सुरक्षा मिल सके. तेलंगाना (Telangana) में 59 एससी उपजातियों में मडिगा सबसे बड़ी है, इसके बाद माला आती है. पिछली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के अनौपचारिक अनुमान के अनुसार, एससी राज्य की आबादी का लगभग 19 फीसदी हैं.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक तरह से मंदा कृष्णा मडिगा के लिए बड़ी जीत है, जो मडिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति (एमआरपीएस) के प्रमुख हैं और दशकों से सब कोटा के मुखर समर्थक रहे हैं. मंदा कृष्णा मडिगा ने कहा कि शीर्ष अदालत का आदेश एससी और एसटी के बीच हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए एक बड़ी जीत है. पिछले साल तेलंगाना विधानसभा चुनावों के दौरान सिकंदराबाद में मंदा कृष्णा मडिगा उस मंच पर भावुक हो गए थे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करने पहुंचे थे. पीएम मोदी को मंच पर एमआरपीएस नेता से बात करते देखा गया, जहां मंदा कृष्णा मडिगा रो पड़े थे. इसके बाद पीएम मोदी ने मडिगा का हाथ पकड़कर उन्हें सांत्वना दी थी.
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कौन हैं मंदा कृष्णा मडिगा?
मंदा कृष्णा मडिगा का जन्म 1965 में येलैया में हुआ था. वह एक नेता और कार्यकर्ता हैं, जो हाशिए पर मौजूद मडिगा समुदाय के अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं. मडिगा समुदाय में ऐतिहासिक रूप से चमड़े के श्रमिकों और मैनुअल मैला ढोने वालों की बहुतायत है. 1980 के दशक में, वह एक जाति-विरोधी कार्यकर्ता थे और उन्होंने जुलाई 1994 में मडिगा आरक्षण पोराटा समिति की स्थापना की. अपने समुदाय के समर्थन के लिए उन्होंने अपने नाम के साथ मडिगा उपनाम जोड़ा. वह हमेशा जाति भेदभाव, बच्चों के स्वास्थ्य और विकलांगता अधिकारों जैसे मुद्दों के लिए लड़ते रहे हैं.
कार्यकर्ता के रूप में की शुरुआत
मंदा कृष्ण मडिगा ने 1980 के दशक की शुरुआत में वारंगल में जाति-विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी यात्रा शुरू की. उन्होंने उच्च जाति के व्यक्तियों के खिलाफ़ कार्रवाई की, जो निचली जातियों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे. इस दौरान उन्हें एक नक्सली गुट पीपुल्स वार ग्रुप से समर्थन मिला. हालांकि, बाद में उन्होंने कानूनी तरीकों से हाशिए पर पड़े दलित समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए उग्रवाद का रास्ता छोड़ दिया. इसके बाद, मंदा कृष्णा दलित आंदोलन में शामिल हो गए. उसी दौरान दलितों के खिलाफ दो बड़े नरसंहार हुए जिससे वह एकबारगी निराश हो गए थे.
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एक दशक से थे मोदी के संपर्क में
एमआरपीएस की स्थापना आंतरिक आरक्षण यानी सब कोटा लागू करने के उद्देश्य से आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एडुमुडी गांव में की गई थी. 2013 से, पीएम मोदी मंदा कृष्णा मडिगा के साथ बातचीत कर रहे थे, जिनका संगठन एमआरपीएस अनुसूचित जाति वर्ग के भीतर आंतरिक आरक्षण की मांग कर रहा था. मंदा कृष्णा के साथ हुई बैठक के बाद, भाजपा ने अपने 2014 के घोषणापत्र में आंतरिक आरक्षण का वादा किया था.
‘हमें वो मिल गया, जो चाहते थे’
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रभाव के बारे में मंदा कृष्णा मडिगा ने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “मडिगा लोगों का दशकों पुराना आंदोलन समाप्त हो गया है क्योंकि हमें वह मिल गया जो हम चाहते थे. 1994 में शुरू हुआ यह आंदोलन 30 साल के लंबे अंतराल के बाद अपने अंजाम पर पहुंचा है. फैसले से हमें बहुत खुशी मिली है.’ उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव आए और कई बार इसे पटरी से उतारने की कोशिश की गई. इस प्रक्रिया के दौरान हमें बहुत कष्ट सहना पड़ा, लेकिन हमें हर वर्ग के लोगों का समर्थन मिला. हम इससे खुश हैं.”
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कहा, इससे सौ पीढ़ियों को होगा फायदा
मंदा कृष्णा मडिगा ने कहा कि हमारा बलिदान व्यर्थ नहीं गया है. इस फैसले से मडिगा और अन्य दलित जातियों की सौ पीढ़ियों को लाभ होगा. उन्होंने कहा, “मैं इस जीत का श्रेय तीन तरह के लोगों को देता हूं. एक वे जिन्होंने आरक्षण के लिए अपनी जान दे दी. दूसरे, एमआरपीएस कार्यकर्ता जो सभी बाधाओं को पार कर पार्टी के साथ खड़े रहे. मैं इस आंदोलन को विभिन्न जातियों के लोगों द्वारा दिए गए समर्थन के लिए भी धन्यवाद देता हूं.”
मंदा कृष्णा यह बात बखूबी जानते हैं कि ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने एमआरपीएस के लिए जान दे दी. उन्होंने कहा कि हम उनके परिवार के सदस्यों की सहायता के लिए समितियां बनाएंगे. एमआरपीएस शासी निकाय में चर्चा के लिए मामला लाने के बाद हम उन्हें वह सब देंगे जो उन्हें चाहिए.
Tags: Caste Reservation, PM Modi, SC Reservation, Supreme Court, Telangana News
FIRST PUBLISHED :
August 3, 2024, 12:54 IST