क्यों अंबेडकर को 'देश का वाटरमैन' भी कहना चाहिए, नदियों पर क्या था उनका विजन

14 hours ago

हाइलाइट्स

कई नदियों से जुड़े अहम प्रोजेक्ट अंबेडकर ने 40 के दशक में बनाएउन्होंने जल की नीति से जुड़ा एक आयोग तभी बना दिया थावह नदियों के जल के बहुउद्देश्यीय उपयोग की बात करते थे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की दूरदर्शिता और सोच ने देश के जल संसाधनों को मजबूत करने, उनके प्रबंधन और बांध निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने प्रमुख नदी घाटी परियोजनाओं के विकास और केंद्रीय जल आयोग के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. क्या वास्तव में डॉ. अंबेडकर के पास नदियों और उनके जल के उपयोग को लेकर खास विजन था. क्या उन्हें देश का पहला वाटरमैन कहा जा सकता है. तथ्य ये कहते हैं कि डॉ. अंबेडकर भारत में जल और नदी नौवहन नीति के भी निर्माता रहे हैं.

डॉ. अंबेडकर महाराष्ट्र के ऐसे इलाके से आते थे, जो सूखे से सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है. भारत के स्वतंत्र होने से पहले ही डॉ. अंबेडकर ने वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में देश के जल संसाधनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था. उन्होंने 1942 से 1945 तक श्रम, सिंचाई और बिजली के विभागों को संभाला था.

वह जल संसाधन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय इकाई कहते थे, जो अपनी सीमा पार प्रकृति से देश को बांधते हैं. उन्होंने साहसपूर्वक उनकी तुलना रेलवे से की. उन्होंने कहा रेलवे की ही तरह नदियां एक प्रांत से दूसरे प्रांत में बहती हैं.

कैसे किया दामोदर घाटी योजना को साकार
जब दामोदर घाटी योजना (डीवीएस) की योजना बनाई जा रही थी तब बंगाल, बिहार और मध्य प्रांत इसके लिए इच्छुक नहीं थे. आपस में सहयोग नहीं करना चाहते थे. तब डॉ. अंबेडकर सभी को इस मामले पर चर्चा के लिए एक साथ लाने में सफल रहे. यह ऐसे शख्स थे, जिन्होंने न केवल समग्र और दूरगामी जल नीतियां बनाईं, बल्कि अपने दृढ़ विश्वास और शानदार बातचीत कौशल की ताकत से उन्हें हकीकत में बदला.

1993 में जब डॉक्टर बीआर अंबेडकर की जन्म शताब्दी मनाई गई तो उन ‘जल संसाधन विकास में अंबेडकर का योगदान’ किताब प्रकाशित की गई. ये किताब 307 पेजों की है. इसे वर्ष 2016 में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा फिर से प्रकाशित किया गया.

40 के दशक में बनाई थी जल और बिजली नीति
ये किताब कहती है कि डॉ. अंबेडकर ने 1942-46 के दौरान देश के जल संसाधनों के बेहतरीन इस्तेमाल के लिए एक नई जल और बिजली नीति विकसित की. उन्होंने इसके लिए अमेरिका की टेनेसी वैली योजना को मॉडल बनाया. उनका मानना था कि केवल बहुउद्देशीय परियोजना ही नदी के नियंत्रण के लिए एक अच्छी संभावना हो सकती है, जिससे बाढ़ नियंत्रण, बारहमासी सिंचाई और बिजली की जरूरी आपूर्ति की जा सकती है. जिससे भारत के गरीबी से त्रस्त लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद मिलेगी.

देश में जलसंसाधन की नींव रखी
उनके विचार में पानी को अलग-अलग हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता. ये एक जटिल, बहुआयामी संसाधन है जिसे सबसे बेहतर तरीके से संरक्षित और उपयोग किया जा सकता है. उन्होंने देश में जल संसाधन विकास की नींव रखी.उनका ये दृष्टिकोण था कि अतिरिक्त पानी कोई खतरा नहीं है; इसका विनाश नहीं होता है. इसे संरक्षित किया जा सकता है. इसी विचार से बहुउद्देश्यीय जल संसाधन विकास परियोजनाओं की शुरुआत हुई.

अतिरिक्त पानी का उपयोग न केवल बाढ़ के प्रभावों को कम करने के लिए किया गया, बल्कि जलविद्युत उत्पादन, खेतों और खेतों की सिंचाई, मृदा संरक्षण, घरेलू जल आपूर्ति, नौवहन और रोजगार में भी किया गया.

तब उन्होंने बनाए कई रिवर प्रोजेक्ट्स
डॉ. अम्बेडकर ने नदी घाटी बेसिन के आधार पर जल संसाधन विकास के लिए बहुउद्देशीय दृष्टिकोण विकसित करने और नदी घाटी प्राधिकरण की अवधारणा को प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसे आजकल एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के रूप में जाना जाता है. उन्हीं की वजह से 1944-46 के दौरान श्रम विभाग जिन नदी घाटी परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से विचार कर रहा था, वे थीं दामोदर नदी घाटी परियोजनाएं, सोन नदी घाटी परियोजनाएं, महानदी (हीराकुंड परियोजना) तथा चंबल नदी और दक्कन की नदियों पर कोसी और अन्य परियोजनाएं.

इन परियोजनाओं की परिकल्पना “मुख्य रूप से बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नौवहन, घरेलू जल आपूर्ति, जल विद्युत और अन्य उद्देश्यों के साथ बहुउद्देशीय विकास के लिए की गई. दामोदर नदी घाटी परियोजनाएँ और हीराकुंड बहुउद्देशीय परियोजनाएं डॉक्टर अंबेडकर की देन कही जाती हैं.

नदियों के जल के विवाद पर कानून बनवाया 
डॉ. अंबेडकर पहले से जानते थे कि अधिकतम पानी तक पहुंचने के लिए नदियां समुदायों, शहरों, क्षेत्रों और राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा अक्सर विवादों और संघर्षों का कारण बनती हैं. ये स्थिति बाद में नजर भी आने लगी. राज्यों के बीच जल विवाद को निपटाने के लिए बने कानून अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 और नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 अंतरराज्यीय नदियों के मामलों से निपटने के लिए डॉ. अंबेडकर की ही देन मानी जाती है.

दामोदर घाटी प्रोजेक्ट पर लॉर्ड वेवेल से भिड़ गए
हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक दुर्गादास ने अपनी किताब इंडिया – इंडिया—कर्जन टू नेहरू एंड ऑफ्टर दैट में लिखा, बिहार में दामोदर घाटी निगम में बाढ़ नियंत्रण की योजना तैयार करने संबंधी आयोग का नेतृत्व करने के लिए एक मुख्य अभियंता की जरूरत थी. तब वायसराय लार्ड वेवेल एक ब्रिटिश विशेषज्ञ को इस पद पर रखने के पक्ष में थे. वह मिस्र में असवान बांध परियोजना पर सलाहकार था. अंबेडकर चाहते थे कि टेनेसी वैली प्रोजेक्ट पर काम कर चुका एक अमेरिका इस पोजिशन पर लाया जाए.

कैसे वायसराय को माननी पड़ी उनकी बात
उन्होंने अपनी मांग के समर्थन में तर्क दिया कि ब्रिटेन में कोई बड़ी नदियां नहीं हैं. इसके इंजीनियरों को बड़े बांध बनाने का अनुभव नहीं है. उनके जोरदार तर्क से वायसराय को उनकी बात माननी पड़ी. डॉ अंबेडकर ने इस प्रोजेक्ट के लिए तकनीकी विशेषज्ञ डब्ल्यूएल वूर्डुइन को नियुक्त किया, जिन्हें टेनेसी घाटी प्राधिकरण का गहरा अनुभव था. जिन्होंने ना केवल प्रोजक्ट स्थल का दौरा किया बल्कि जरूर सुझाव भी दिए.

डॉक्टर अंबेडकर लगातार दामोदर घाटी परियोजना और उड़ीसा की नदियों के बहुउद्देशीय विकास संबंधी प्रोजक्टस की समीक्षा करते रहे. 1943 में दामोदर नदी पर आई विनाशकारी बाढ़ के बाद दामोदर घाटी प्रोजेक्ट की ज़रूरत विशेष रूप से महसूस की गई थी.

केंद्रीय जल आयोग उन्हीं की देन था
वर्ष 1945 में स्थापित केंद्रीय जल, सिंचाई और नौवहन आयोग डॉक्टर अंबेडकर की देन कहा जाता है, इसे अब केंद्रीय जल आयोग कहा जाता है, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला केंद्रीय जल आयोग आज सरकार की राष्ट्रीय जल नीति के निर्माण, मार्गदर्शन और कार्यान्वयन का अगुआ है.

Tags: B. R. ambedkar, Central water commission, Dr. Bhim Rao Ambedkar, Dr. Bhimrao Ambedkar, Rivers flooded

FIRST PUBLISHED :

December 26, 2024, 14:32 IST

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