क्यों दुर्योधन के पैदा होते ही चीखने लगे गधे, सियार और उल्लू, तब क्या कहा गया

7 hours ago

जब दुर्योधन पैदा हुआ तो गधे चीखने लगे. सियार और उल्लू भी उनकी चीख के साथ खुद चीखना लगे, इसे देखकर हर कोई घबरा गया. लोगों को लगा कि ये तो बहुत बड़ा अपशगुन है. जब ज्योतिषियों ने तुरंत पंचांग निकालकर ग्रह नक्षत्र की गणनाएं कीं, तो उनके पसीने छूट गए. उन्होंने हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से कहा कि आप अपने इस पुत्र से पीछा छूटा लें. जंगल में जाकर छोड़ आएं. धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया.

बाद में ज्योतिषियों ने जिस विनाश की भविष्यवाणी की वो सच निकला. चलिए अच्छे से जानते हैं कि दुर्योधन के जन्म कौन कौन सी डराने वाली बातें हुई थीं.

व्यास ने गांधारी को 100 पुत्रों का वर दिया था. गांधारी सही समय से गर्भवती भी हो गईं. इस बीच 9 महीने निकल गए. साल निकल गया लेकिन गांधारी को कोई बच्चा नहीं हुआ. इस बीच वनविहार में पांडु की पत्नी कुंती ने युधिष्ठिर को जन्म दे दिया. इसने गांधारी को विचलित कर दिया. ऐसे में चिंतिति गांधारी ने अपना गर्भपात कराया तो देखा कि लोहे के समान एक ठोस मांस का पिंड निकला.

तब महर्षि व्यास ने गांधारी से क्या कहा

वह उसे फेंकने जा रही थी. तभी वहां महर्षि व्यास आ गए. उन्होंने कहा, मेरा कहना कभी गलत साबित नहीं होता. व्यास की सलाह पर गांधारी ने शीतल जल में उस मांस के पिंड को भिगोने के लिए रख दिया. उससे अंगूठे के बराबर एक सौ एक भ्रूण अलग हुए. उन सभी भ्रूणों को अलग अलग घी से भरे घड़ों में रख दिया. इससे एक वर्ष के बाद एक घड़े से दुर्योधन का जन्म हुआ.

क्या अपशकुन होने लगे तब

दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह कर्कश चीखने लगे. उसी समय गिद्ध, सियार, कौवे भी बोलने लगे. उल्लू भी चीख रहे थे. यानि ऐसी अजीब और भयंकर आवाजें आने लगीं कि जिसने उसको सुना, उसका दिल दहल गया. ये सभी बहुत बुरे लक्षण थे. आसमान एकदम काला हो गया. यानि दिन में ही अंधेरा सा लगने लगा. कई जगहों पर आग लग गई. ये देखकर हर कोई डर ही गया. धृतराष्ट्र भी डर गए. उन्होंने डरकर विदुर और भीष्म से पूछा – मेरे पुत्र को राज्य तो मिलेगा ना, उनके ये पूछते ही सियार और दूसरे जानवर फिर चिल्लाने लगे.

ब्राह्रणों और ज्योतिषियों ने क्या सलाह दी 

तब ब्राह्मणों और ज्योतिषियों ने दुर्योधन के पैदा होने के समय की गणना की. पता चला कि दुर्योधन का जन्म इतने खराब समय में हुआ है कि वह पूरे कुल और परिवार के लिए नाश की वजह बनेगा. उसकी वजह से आपस युद्ध और कलह होती रहेगी.

ज्योतिषियों ने धृतराष्ट्र को सलाह दी कि इस पुत्र को अपने दूर कर दीजिए. इसे जंगल में ले जाकर छोड़ आइए. अगर इसको अपने पास रखा तो जिंदगी भर परेशान रहेंगे, कोई ना कोई मुश्किल आती रहेगी. पुत्रमोह में पड़े धृतराष्ट्र ने ऐसा करने से मना कर दिया. इसके बाद में एक माह के अंदर ही 99 पुत्र और एक बेटी दुशला का जन्म हुआ.

कैसे नाम पड़ा दुर्योधन

कुछ कथाओं के अनुसार, दुर्योधन का नाम जन्म के समय नाम सुयोधन था जिसका अर्थ होता है ‘एक महान योद्धा’ लेकिन बाद में उसने खुद अपना नाम बदलकर दुर्योधन कर लिया.

क्या होता है दुर्योधन का अर्थ

कुछ मान्यताओं के अनुसार, दुर्योधन नाम ‘दुर्जय’ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है जिसे जीतना मुश्किल हो. ये नाम उसके स्वभाव को दिखाता है, क्योंकि वह बहुत ही कठिन और जिद्दी व्यक्ति था.

… विनाश की भविष्यवाणी सच साबित हुई

विदुर की भविष्यवाणी सच साबित हुई, क्योंकि दुर्योधन की महत्वाकांक्षाओं और जिद के कारण महाभारत का युद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कौरवों का विनाश हुआ. दुर्योधन को कलयुग का अवतार भी माना जाता है, जिसमें वे सभी गुण थे जो कलयुग में स्वार्थ के लिए अपनाए जाते हैं

कौरवों का अंत हो गया

दुर्योधन को अक्सर उसके अहंकार और पांडवों के प्रति द्वेष के लिए जाना जाता है. उस समय के ऋषि-मुनियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक अपने अहंकार, ईर्ष्या और अधर्म के कारण एक बड़े युद्ध को जन्म देगा, जिसमें हजारों योद्धा मारे जाएंगे. कौरवों का अंत हो जाएगा. आखिर में ऐसा ही हुआ.

क्या थी दुर्योधन की उम्र

दुर्योधन और भीम एक ही दिन पैदा हुए थे. महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में 3139 ईसा पूर्व (अनुमानित) हुआ. युद्ध के समय भीम और दुर्योधन की उम्र करीब 64-65 वर्ष रही होगी. जब पांडवों का वनवास हुआ (12 वर्ष का वनवास + 1 वर्ष अज्ञातवास), तब दुर्योधन की उम्र करीब 50-52 वर्ष रही होगी. जब दुर्योधन ने युवराज के रूप में हस्तिनापुर की राजनीति संभाली, तब वह लगभग 30-35 वर्ष का रहा होगा.

कैसा प्रशासक था वह

महाभारत में दुर्योधन को मुख्य रूप से एक अहंकारी, अधर्मी और ईर्ष्यालु व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है. हालांकि अगर उसके प्रशासनिक कौशल की बात करें, तो वह एक कुशल, लेकिन पक्षपाती और अत्याचारी शासक माना जा सकता है. दुर्योधन को अपनी क्षमताओं पर पूरा विश्वास था. वह अपने राज्य को मजबूत करने के लिए लगातार कोशिश करता था. किसी चुनौती से पीछे नहीं हटता था.

वह कुशल रणनीतिकार जरूर था

दुर्योधन ने अपनी सेना और मित्र राज्यों से संबंध मजबूत किए. उसने शकुनि, कर्ण, अश्वत्थामा और जयद्रथ जैसे शक्तिशाली योद्धाओं को अपने पक्ष में कर लिया. उसे कुशल रणनीतिकार भी माना जाता है. उसे अपने मित्रों के प्रति खासा वफादार माना जाता है, खासकर कर्ण के प्रति. हालांकि पांडवों को लेकर उसने हमेशा छल-कपट का सहारा लिया. दुर्योधन को अपनी प्रजा का उतना समर्थन प्राप्त नहीं था, जितना धर्मराज युधिष्ठिर को.  हालांकि वह काफी वीर योद्धा था.

गधे, उल्लू और सियार एक साथ चीखें तो ज्योतिष क्या कहती है

भारतीय ज्योतिष और शगुन शास्त्र के अनुसार, गधे, उल्लू और सियार जैसे जानवरों का एक साथ या असामान्य तरीके से आवाज़ करना अशुभ घटनाओं या अपशकुन का संकेत माना जाता है. इन तीनों जानवरों से जुड़ी मान्यताएं अलग-अलग हैं, लेकिन जब ये एक साथ आवाज़ करते हैं, तो इसे विशेष रूप से नकारात्मक माना जाता है.
गधे का चीखना, खासकर यदि वह घर के पास या किसी यात्रा के दौरान सुनाई दे, तो इसे अशुभ यात्रा, काम में बाधा या किसी अनहोनी का सूचक माना जाता है. कुछ मान्यताओं में इसे लड़ाई-झगड़े या अपमान का भी संकेत माना जाता है.

उल्लू को आमतौर पर रात का जीव माना जाता है. कई संस्कृतियों में इसे ज्ञान या रहस्य से जोड़ा जाता है.भारतीय ज्योतिष में इसके असामान्य समय पर बोलने पर मृत्यु, बीमारी, या गंभीर दुर्भाग्य से जोड़कर देखते हैं. इसे अक्सर बुरी आत्माओं या नकारात्मक ऊर्जा से भी जोड़ा जाता है.

सियार का चीखना, जिसे अक्सर “हुआं-हुआं” की आवाज़ के रूप में माना जाता है. इसे किसी खतरे या किसी अप्रिय घटना का सूचक माना जाता है. इसे अक्सर किसी बड़े नुकसान, चोरी या किसी की मृत्यु से पहले की चेतावनी के रूप में देखा जाता है.

जब गधे, उल्लू और सियार एक साथ असामान्य रूप से आवाज़ करते हैं, तो इसे बहुत गंभीर अपशगुन माना जाता है. यह एक बड़ी विपत्ति, प्राकृतिक आपदा, महामारी, या किसी सामूहिक दुर्भाग्य का संकेत हो सकता है. ये संकेत देता है कि कोई बहुत बड़ी नकारात्मक ऊर्जा या घटना घटित होने वाली है जो कई लोगों को प्रभावित कर सकती है.

Read Full Article at Source