Last Updated:November 07, 2025, 12:53 IST
Vande Mataram: आजादी के बाद इस बात को लेकर बहस थी राष्ट्रगीत किसे चुना जाए. संविधान सभा ने धार्मिक विवाद के कारण 'जन गण मन' को राष्ट्रगान और 'वंदे मातरम' को राष्ट्रगीत चुना. वंदे मातरम को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था.
भारत की आजादी के आंदोलन से जुड़े कई नेताओं ने इसे राष्ट्रीय गीत या राष्ट्रगान का दर्जा देने की वकालत की थी.Vande Mataram: ‘वंदे मातरम’ और ‘जन गण मन’ को लेकर समय-समय पर विवाद सामने आते रहे हैं. जब 1947 में आजादी के बाद राष्ट्रीय प्रतीक तय किए जा रहे थे तब भी बहस छिड़ी था कि ‘वंदे मातरम’ या ‘जन गण मन’ में से कौन राष्ट्रगान बने. वंदे मातरम गीत 1870 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बांग्ला में लिखा था. 1882 में बंकिम द्वारा प्रकाशित उनके उपन्यास आनंदमठ के बाद यह गीत सार्वजनिक रूप से प्रसिद्ध हुआ. इसने बंगाल के राष्ट्रवादियों में प्रबल देशभक्ति की भावनाएं जगाईं और जल्द ही अंग्रेजों से आजादी के संघर्ष का पर्याय बन गया. वंदे मातरम स्वतंत्रता से पहले और बाद की कई पीढ़ियों के लिए एक गहन भावनात्मक नारा बन गया. हालांकि इसका विवादास्पद इतिहास और अर्थ समय-समय पर सार्वजनिक बहसों में सामने आते रहे.
किसने की राष्ट्रगान बनाने की मांग
1905 से 1947 तक कई भारत की आजादी के आंदोलन से जुड़े कई नेताओं ने इसे राष्ट्रीय गीत या राष्ट्रगान का दर्जा देने की वकालत की थी. बाल गंगाधर तिलक इसके बड़े समर्थक थे. उन्होंने इसे ‘राष्ट्रीय प्रार्थना’ कहा था. जबकि अरविंदो घोष ने इसे ‘मंत्र’ बताया जो भारतीय आत्मा को जगाता है. रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘जन गण मन’ लिखा था, लेकिन वह ‘वंदे मातरम’ के प्रति गहरा सम्मान रखते थे. महात्मा गांधी ने भी इसे ‘राष्ट्रीय गीत’ कहा और हर सभा में गवाने की परंपरा रखी. नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फोज के शिविरों में ‘वंदे मातरम’ को सैन्य सलामी के रूप में अपनाया. स्वतंत्रता संग्राम के हर चरण में यह गीत नारे की तरह गूंजा. ‘वंदे मातरम’ बोलने पर क्रांतिकारियों को जेल या फांसी तक दी गई. भगत सिंह, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल सभी इस गीत से भावनात्मक रूप से जुड़े थे.
क्यों नहीं बन सका राष्ट्रगान
वंदे मातरम की कुछ पंक्तियां हिंदू देवी-देवताओं (दुर्गा, सरस्वती आदि) से प्रेरित थीं. मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे मुस्लिम प्रतिनिधियों ने इसे धार्मिक भावना से जुड़ा बताकर विरोध किया. इसलिए समझौता हुआ कि ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान और ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रगीत घोषित किया जाए. यह निर्णय 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से लिया. ‘वंदे मातरम’ को संविधान में राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी गई है. संविधान में इस बात पर लंबी बहस हुई कि किसे राष्ट्रगान और किसे राष्ट्रगीत बनाया जाए. संसद में, स्कूलों में, सरकारी समारोहों में ‘वंदे मातरम’ और ‘जन गण मन’ दोनों को समान सम्मान देने की परंपरा है.
मातृभूमि का दुर्गा के रूप में चित्रण
वंदे मातरम गीत के बाद के कुछ छंदों में मातृभूमि को हिंदू देवी दुर्गा के रूप में चित्रित किया गया है. मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने इस पर आपत्ति जतायी क्योंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा और देवी-देवताओं की पूजा की मनाही है. उनका मानना था कि गीत इस प्रकार भारतीय राष्ट्रवाद को एक धर्म विशेष के हिसाब से परिभाषित करता है. कुछ सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध संगठनों ने भी समान आधार पर आपत्तियां उठायी थीं.
नेहरू और ‘सेंसर’ को लेकर विवाद
देश आजाद होने से पहले ही ‘वंदे मातरम’ और ‘जन गण मन’ को विवाद शुरू हो गया था. इस बढ़ते विवाद को हल करने के लिए 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, अबुल कलाम आजाद और सुभाष चंद्र बोस की एक समिति का गठन किया. समिति ने आपत्तियों पर विचार किया और यह निर्णय लिया गया कि राष्ट्रीय गीत के रूप में ‘वंदे मातरम’ के केवल पहले दो छंद ही गाए जाएंगे, जिनमें कोई धार्मिक या मूर्ति पूजा से संबंधित पहलू नहीं है. इस निर्णय को ही अक्सर गीत को ‘काटने-छांटने’ या ‘सेंसर’ करने के रूप में देखा जाता है. यह कदम मुख्य रूप से सांप्रदायिक आधार पर विभाजन को रोकने और सभी धर्मों को राष्ट्रीय आंदोलन में एकजुट रखने के उद्देश्य से लिया गया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस मुद्दे पर नेहरू को पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रश्न पर आर्थिक प्रश्नों को अधिक महत्वपूर्ण बताया था. लेकिन साथ ही सांप्रदायिक तत्वों की आपत्तियों को ज्यादा महत्व न देने की बात भी कही थी.
पहली बार कब सामने आया ‘वंदे मातरम’
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के ‘वंदे मातरम’ गीत की रचना की तिथि 7 नवंबर 1876 मानी जाती है. यह गीत पहली बार उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882) के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ. ‘वंदे मातरम’ पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था. इस गीत को रवींद्रनाथ टैगोर ने स्वरबद्ध किया था. बंकिम ने यह गीत बंगाल के कांतलपाड़ा गांव में या सियालदह से नैहाटी की ट्रेन यात्रा के दौरान लिखा था.
पहली बार कब गाया गया राष्ट्रगान
इसे पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा आयोजित कोलकाता अधिवेशन के दूसरे दिन रवींद्रनाथ टैगोर ने हिंदी और बांगला दोनों भाषाओं में गाया था. इसे मूल तौर पर बांग्ला भाषा में लिखा गया था. ‘जन गण मन’ में पांच छंद हैं. इन छंदों में भारतीय संस्कृति, सभ्यता समेत स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन किया गया है. ‘जन गण मन’ के पहले छंद को संविधान सभा द्वारा आधिकारिक रूप से 24 जनवरी, 1950 को मान्यता दी गई थी. 28 फरवरी, 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘जन गण मन’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया. इसका टाइटल मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया रखा था. जबकि इसका हिंदी-उर्दू रूपांतरण तत्कालीन इंडियन नेशनल आर्मी के कप्तान आबिद अली द्वारा किया गया था.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
November 07, 2025, 12:53 IST

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