Last Updated:November 07, 2025, 12:45 IST
Drone Anatomy three Youths inspiring story: थ्री ईडियट्स मूवी का ये डायलॉग तो आपको याद होगा, 'सफलता नहीं काबिलियत के पीछे भागो, कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी'. इसे गाजियाबाद में रहने वाले 3 भारतीय युवा एकदम सही तरीके से साबित कर रहे हैं. बिहार के रहने वाले सौरभ झा, उत्तराखंड के दीपांशु पुरोहित और दिल्ली के मयंक शर्मा ने चाइनीज नहीं बल्कि भारतीय मेटेरियलन से स्वदेशी ड्रोन बना रहे हैं. इनके एग्री ड्रोन को डीजीसीए से मंजूरी मिल गई है और भारतीय सेना के लिए भी ड्रोन विकसित किए जा रहे हैं.
Drone Anatomy Young Indians creating History: करीब 15 साल पहले आई ‘ थ्री ईडियट्स (3 Idiots)’ मूवी में रेंचो इंजीनियरिंग की डिग्री के पीछे भागते अपने अपने दोस्तों से कहता है कि ‘सफलता नहीं काबिलियत के पीछे भागो, कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी’. यह डायलॉग सुना तो बहुत लोगों ने था लेकिन जिन लोगों ने इसे अपने जीवन का मंत्र बना लिया, वे आज दुनिया में छा जाने की तैयारी कर रहे हैं. डिग्री को काफी पीछे छोड़कर 3 राज्यों से आए ये 3 युवा आज ड्रोन टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्र में पीएम मोदी के मेक इन इंडिया से भी एक कदम आगे बढ़कर उस सपने को साकार करने में लगे हैं, जब दुनिया के आसमान में कोई भी ड्रोन उड़े तो उस पर लिखा हो, ‘डिजाइंड, इंजीनियर्ड एंड बिल्ट इन भारत’.
जी हां! 25 से 30 साल की उम्र वाले ये 3 युवा हैं बिहार से आएसौरभ झा, उत्तराखंड से आए दीपांशु पुरोहित और दिल्ली के मयंक शर्मा. साल 2015 में बिहार में स्कूली बच्चों के लिए लगाई गई नेशनल साइंस एक्जीबिशन में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले 15 साल के सौरभ झा ने पहली बार ड्रोन देखा और उसे अपने सपनों का साथी बना लिया. पूरे एक साल तक अपना खुद का ड्रोन बनाने के लिए सौरभ ने दिन-रात मेहनत की, लेकिन अंत तक वह ड्रोन उड़ ही नहीं पाया. अब ड्रोन को छोड़कर आगे पढ़ाई पर ध्यान देने की बारी थी लेकिन सौरभ ने ठीक इसके विपरीत किया और आखिरकार 2016 में नियति ने उन्हें मयंक शर्मा से मिला दिया.
यूपी के गाजियाबाद में ये 3 युवा ड्रोन की डिजाइन तय करने से लेकर बनाने तक का काम खुद ही कर रहे हैं.
मयंक शर्मा जो दिल्ली में एक प्राइवेट नौकरी करते थे और ड्रोन के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी रखते थे, लेकिन एक दिन अपनी नौकरी बचाने के लिए मालिक को ड्रोन बनाकर देने का वादा कर बैठे. मयंक को लगा कि दिल्ली में किसी आईआईटी के प्रोफेसर या इंजीनियर से ड्रोन बनवा लेंगे, लेकिन कई संस्थानों की खाक छानने के बाद भी उन्हें कोई ड्रोन बनाने वाला एक्सपर्ट नहीं मिला और आखिरकार खुद ही ड्रोन बनाने का फैसला किया. कई महीनों की रिसर्च, ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स और सैकड़ों प्रयोगों के बाद ड्रोन बनाने में कामयाब हुए और फिर 2016 में सौरभ के साथ मिलकर ड्रोन बनाने के काम को रफ्तार दे दी.
दो लोगों ने मिलकर साल 2017 तक न केवल ड्रोन बनाए, बल्कि शादियों और फंक्शनों में बारात और मेहमानों के ऊपर फूल गिराने वाले करीब 20 से ज्यादा ड्रोन बेचकर भी दिखाए. साल 2018 में इन्हें एक और साथी मिला दीपांशु पुरोहित और फिर इन्होंने मिलकर ड्रोन एनाटॉमी की स्थापना की. अब इन तीनों को साफ हो चुका था कि उन्हें न केवल ड्रोन ही बनाने हैं, बल्कि एकदम स्वदेशी और मेक इन इंडिया के तहत अलग-अलग जरूरतों के लिए कस्टमाइज्ड ड्रोन बनाने हैं. इन तीनों ने मिलकर रिसर्च एंड डेवलपमेंट किया और ड्रोन के क्षेत्र में आ रहीं रुकावटों, कमियों को पहचानकर ऐसे ड्रोन बनाना शुरू किया जो बाजार में मौजूद ड्रोनों के मुकाबले,कीमतों में सस्ते,पोर्टेबल और वजन में सबसे हल्के, भारी वजन को लेकर उड़ने में सक्षम, ऑपरेट करने में बेहद आसान और लेटेस्ट तकनीक से लैस थे .
खूब हुआ एडवेंचर
ड्रोन एनाटॉमी की 14 युवाओं की टीम दिन रात मेहनत कर सेना के लिए भी ड्रोन तैयार कर रही है.
कोरोना के दौरान इन्होंने बिहार और छत्तीसगढ़ में 30 से ज्यादा जिलों में खुद के बनाए ड्रोनों से सेनिटाइजेशन का काम किया. इसी दौरान इन्हें उत्तर भारत के एक राज्य के घने जंगल में ड्रोन से सर्विलांस और मैपिंग का भी काम मिला, जिसकी कठिनाइयों को देखते हुए 30 कंपनियां पहले ही इस प्रोजेक्ट के लिए मना कर चुकी थीं, लेकिन इन जुझारू युवाओं ने 8 महीने की कड़ी मेहनत में सिर्फ चावल और पत्तियां खाकर उसे अंजाम दिया.
छोड़ दी डिग्री की पढ़ाई
ड्रोन बनाने की इस जर्नी में सबसे दिलचस्प है कि इन तीनों ही युवाओं ने 12वीं तक अच्छी तरह पढ़ाई की लेकिन अपनी डिग्री की पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी. यहां तक कि सौरभ झा का नंबर एनआईआईटी में भी आ गया, लेकिन ड्रोन की यात्रा को बाधित करना उन्होंने ठीक नहीं समझा और इंजीनियरिंंग छोड़ दी. मयंक ने रिटेल की जॉब और कॉमर्शियल डिग्री छोड़ दी, जबकि दीपांशु ने मैनेजमेंट की डिग्री बीच में छोड़कर ड्रोन में प्रयोग करना जारी रखा.
डीजीसीए से मिली मंजूरी
इस एग्री ड्रोन को डीजीसीए ने मंजूरी दी है.
कृषि और डिफेंस दो क्षेत्रों को प्रमुखता से लेकर आगे बढ़ रहे इन युवाओं ने अपनी टीम बढ़ाकर 14 कर ली और देखते ही देखते सबसे हल्के एग्री ड्रोन को बना लिया. इस ड्रोन की खास बात है कि यह चाइनीज फ्रेम के बजाय भारत में मौजूद एल्यूमिनियम जैसी धातु से बना है. इसमें 80 फीसदी सामान भारत का लगा है. इसकी खासियतों को देखते हुए करीब 3 महीने पहले ही डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने इसे मंजूरी दी है और अब इसे सुरक्षित ड्रोन की तरह खेतों में फर्टिलाइजर के छिड़काव के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जहां 5 एकड़ खेत में दवा के छिड़काव के लिए मैन्यूअली 200 लीटर पानी लगता है और पूरा दिन लगता है, यह ड्रोन महज 7 मिनट में 10 पानी में इतना काम कर देता है.
भारतीय सेनाओं के लिए बना रहे ड्रोन
ड्रोन एनाटॉमी के फाउंडर सौरभ झा ने बताया कि उन्होंने भारतीय सेनाओं के लिए भी कई तरह के ड्रोन बनाए हैं, कुछ सेनाओं में इस्तेमाल हो रहे हैं और कुछ अभी नई तकनीक और अपडेशन के साथ डिजाइन किए जा रहे हैं. ये ड्रोन वजन भी लेकर जा सकते हैं. इंडियन आर्मी के साथ मिलकर ड्रोन इनोवेशन में बड़ा काम किया जा रहा है.
गाजियाबाद में छोटी सी जगह से की शुरुआत
ड्रोन सिर्फ शादियों में नहीं उड़ते, ये सेना की भी बड़ी ताकत बनने जा रहे हैं.
आज ड्रोन के क्षेत्र में जहां सैकड़ों करोड़ टर्नओवर वाली कंपनियां जुटी हुई हैं, वहीं गाजियाबाद में एक छोटी सी जगह में ड्रोन एनाटॉमी की शुरुआत कर ये युवा देश के भविष्य को और बेहतरीन करने और मेक इन इंडिया व स्वदेशी तकनीक के क्षेत्र में भारत को आगे ले जाने के लिए दिन रात जुटे रहते हैं.
priya gautamSenior Correspondent
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ एंड लाइफस्...और पढ़ें
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ एंड लाइफस्...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
November 07, 2025, 12:45 IST

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