जैसा पाकिस्तान में चलन है, आरोप लगते हैं, सजा होती है, जेल जाते हैं फिर कोर्ट से बेल मिलती है और इलाज के लिए विदेश चले जाते हैं. बांग्लादेश में पूर्व पीएम खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान ने भी ऐसा ही किया था. शेख हसीना की सरकार के समय कई मामलों में सजा हुआ. भ्रष्टाचार के मामले में 2007 में गिरफ्तारी भी हुई. बाद में हेल्थ इशू का हवाला देकर कोर्ट से बेल ली और इलाज के लिए लंदन गए फिर नहीं लौटे. अब करीब दो दशक बाद खालिदा जिया का बेटा ढाका लौटा है. ऐसे समय में जब देश की राजनीतिक फिजा बदली है, शेख हसीना ने भारत में शरण ली हैं और उनकी पार्टी को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलने वाले, ऐसे में लोग मान रहे हैं कि तारिक ही देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं. ढाका की सड़कों पर तारिक का इस्तकबाल करने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ी है. ऐसे में सवाल यह है कि भारत विरोधी कही जाने वाली खालिदा के बेटे का बांग्लादेश में उभरना भारत के लिए क्या संकेत दे रहा है?
एक समय तारिक रहमान को बांग्लादेश की राजनीति का डार्क प्रिंस कहा जाता था. वह ढाका में नहीं थे लेकिन बीएनपी के पोस्टर पर दिखते रहे. अब उनकी आवाज भी गूंजेगी. हिंसा से ग्रस्त अशांत बांग्लादेश को फरवरी में होने वाले चुनावों का इंतजार है. दो साल में ही मोहम्मद यूनुस का मैनेजमेंट गड़बड़ाया हुआ है. हत्याओं के पीछे गंभीर आरोप लग रहे हैं. हिंदुओं पर हमले हुए हैं. पूरी दुनिया बांग्लादेश की सड़कों पर मानवता पर जुल्म की तस्वीरें देख रही है. भारत चाहता है कि बांग्लादेश में शांति रहे और इसके लिए वहां स्थिर सरकार बनना जरूरी है. ऐसे में तीन महत्वपूर्ण प्वाइंट्स पर गौर करना जरूरी हो जाता है.
1. भारत से रिश्तों की हिमायती अवामी लीग का क्या होगा?
फिलहाल अवामी लीग की सबसे बड़ी नेता शेख हसीना का फ्यूचर अधर में है. वह भारत में हैं और फिलहाल लौटने के संकेत नहीं दिख रहे हैं. इधर, यूनुस सरकार के समय कई गंभीर आरोप लगा दिए गए. अब हसीना की पार्टी को चुनाव लड़ने से भी रोक दिया गया है. अब बांग्लादेश में बीएनपी और कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी ही बचती है. जमात-ए-इस्लामी के पीछे खुलकर पाकिस्तान की आईएसआई का सपोर्ट रहता है. हसीना के समय में इसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया था. मोहम्मद यूनुस के समय में भारत विरोधी माहौल और भड़काया गया है. आरोप लगे कि यूनुस और उनके समर्थक चुनाव में देरी चाहते हैं. ऐसे में चुनाव के लिहाज से बीएनपी का उभरना मौजूदा समय में ठीक ही होगा.
2. बीएनपी और जमात- ए इस्लामी
मौजूदा सियासी गेम में खालिदा जिया की भारत विरोधी पॉलिटिक्स से रहमान निकलना चाहेंगे. उन्होंने ट्रंप की तरह बांग्लादेश फर्स्ट का नारा बुलंद किया है. रहमान ने कहा है कि वह न तो दिल्ली के हिसाब से चलेंगे न रावलपिंडी के हिसाब से, देश बांग्लादेश के हिसाब से चलेगा. हाल में एक ओपिनियन पोल में बताया गया है कि रहमान की पार्टी चुनाव में जीत हासिल कर सकती है. एक समय जमात पार्टी बीएनपी की सहयोगी हुआ करती थी, लेकिन अब वह अपना आधार बढ़ाना चाहती है. जिस बात को लेकर भारत चिंतित है वो ये है कि ढाका यूनिवर्सिटी के चुनावों में जमात के स्टूडेंट विंग ने जीत हासिल की है.
इस तरह से बांग्लादेश के माहौल का विश्लेषण करें तो भारत BNP को ज्यादा लिबरल और लोकतांत्रिक विकल्प के तौर पर देख रहा है. भले ही पहले रिश्ते तनावपूर्ण क्यों न रहे हों. भारत को उम्मीद है कि रहमान की वापसी से खालिदा जिया की पार्टी के नेताओं में जोश आएगा और पार्टी अगली सरकार बनाएगी. आरोप यह भी लगने लगे हैं कि BNP अवामी लीग के सदस्यों को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है.
3. भारत और बांग्लादेश के रिश्ते
हसीना के समय बांग्लादेश ने भारत के साथ करीबी रिश्ते बनाए रखे. चीन को लेकर सावधानी बरती. हसीना पाकिस्तान से भी दूर ही रहीं. यूनुस के आने के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई है. पाकिस्तानी अफसरों के दौरे तेज हो गए हैं. बांग्लादेश भारत से दूर हटकर पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करता दिख रहा है. अगर बीएनपी सत्ता में लौटती है तो भारत उम्मीद करेगा कि बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव आए. हाल में ऐसे संकेत मिले हैं कि भारत और BNP रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
हां, एक दिसंबर को ही पीएम नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से गंभीर रूप से बीमार खालिदा जिया के लिए चिंता जताई थी. उन्होंने भारत की ओर से मदद की पेशकश भी की. BNP ने शुक्रिया कहते हुए जिस तरह से प्रतिक्रिया दी उससे लगा कि सालों के खराब रिश्तों के बाद अब बीएनपी का नेचर भी बदला है. यह भी गौर करने वाली बात है कि रहमान और यूनुस सरकार के बीच मतभेद रहे हैं. उन्होंने अंतरिम प्रमुख के लंबे समय तक विदेश नीति के फैसले लेने के अधिकार पर भी सवाल उठाए हैं. वह जमात की आलोचना भी करते हैं. रहमान ने चुनाव में जमात से हाथ मिलाने से साफ इनकार किया है.

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