Last Updated:October 23, 2025, 08:16 IST
American Sanction Effect on India : अमेरिका ने रूस की 2 बड़ी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका मकसद भारत सहित दुनिया के अन्य देशों के साथ इनका व्यापारिक रिश्ता खत्म करना है. इससे भारतीय कंपनियों पर कितना असर पड़ेगा.

नई दिल्ली. भारत और रूस की दोस्ती अमेरिका को इस कदर चुभ रही है कि इसमें दीवार खड़ी करने के लिए ट्रंप किसी भी हद तक जा सकते हैं. भारत पर दबाव बनाने के लिए अब तक अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने सारे घोड़े खोल डाले. उन्होंने रूस से तेल खरीदने पर रोक लगाने के लिए कई बार धमकियां दी और पेनाल्टी के रूप में 25 फीसदी का टैरिफ भी लगा दिया. बावजूद इसके न तो भारत झुका और न ही रूस से अपने संबंधों को जरा भी ढील दी. ट्रंप का हाल अब खिसियानी बिल्ली की तरह हो गया है, जो अपनी ताकत दिखाने के लिए खंभे नोच रही है. भारत पर सीधी धमकी से बात नहीं बनी तो ट्रंप ने रूस के बहाने हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिशें शुरू कर दी है. इसका पहला कदम उन्होंने रूस की 2 सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही उठा भी लिया है.
अमेरिका ने बुधवार रात रूस की दो प्रमुख तेल उत्पादन कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) पर प्रतिबंध लगा दिए. वैसे तो इसके पीछे का मकसद यूक्रेन के साथ युद्ध रोकने को लेकर रूस पर दबाव बनाना बताया जा रहा है, लेकिन बात की गहराई में जाएंगे तो आपको असली सच और मकसद दोनों दिख जाएगा. इससे पहले यह जानते हैं कि इन प्रतिबंधों के मायने क्या हैं और इसे लगाने से रूसी कंपनियों पर क्या असर पड़ेगा.
प्रतिबंध के क्या हैं मायने
अमेरिका की ओर से रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाने का मकसद रूस की अर्थव्यवस्था पर चोट करना है. अमेरिका यह मानता आया है कि रूस अपने तेल व्यापार से मिले पैसों का इस्तेमाल यूक्रेन के साथ युद्ध में कर रहा है, जिसका सबसे बड़ा खरीदार भारत और चीन रहे हैं. पहले तो ट्रंप ने सामने से दोनों देशों को तेल न खरीदने की धमकी दी और अब रूस की इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाकर अंतिम दांव भी चल दिया है. इन पर प्रतिबंध का मतलब है कि अगर कोई देश या कंपनी इनसे कारोबार करती है तो उसे भी इन प्रतिबंधों का इसी तरह के अन्य किसी कदम का सामना करना पड़ सकता है. जाहिर है कि ट्रंप ने पिछले दरवाजे से भारत पर रूस के साथ तेल न खरीदने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है.
कितनी बड़ी हैं दोनों कंपनियां और कितना उत्पादन
इन दोनों कंपनियों को रूस के ऊर्जा सेक्टर के दो बाजू कहें तो बिलकुल अतिशयोक्ति नहीं होगी. रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनी रोसनेफ्ट की उत्पादन क्षमता साल 2025 की पहली छमाही के दौरान 36.7 लाख बैरल रोजाना की रही है और कंपनी का मार्केट कैप भी करीब 62 अरब डॉलर (करीब 5.48 लाख करोड़ रुपये) है. दूसरी कंपनी लुकोइल की उत्पादन क्षमता भी 16 लाख बैरल प्रतिदिन से थोड़ी ज्यादा ही रही है. यह कंपनी 22 लाख बैरल हाइड्रोकार्बन का भी रोजाना उत्पादन करती है. मार्केट कैप की बात करें तो अगस्त, 2025 तक कंपनी की वैल्यू 54.41 अरब डॉलर (करीब 4.84 लाख करोड़ रुपये) रही है.
भारत से इसका क्या लेना-देना
अमेरिका को अच्छी तरह पता है कि भारत ने पिछले कुछ सालों से अपना सबसे ज्यादा तेल रूस से ही खरीदना जारी रखा है. खासकर यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद. इन दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने का मकसद भारत और रूस के बीच तेल के व्यापार को बंद कराना है. भारत अभी रोसनेफ्ट से रोजाना करीब 10 लाख बैरल क्रूड का आयात करता है, जो रूस के कुल 19 लाख बैरल आयात का 50 फीसदी हिस्सा है. लुकोइल से भी भारत रोजाना करीब 1 लाख बैरल तेल खरीदता है, जो कुल आयात का 10 फीसदी हिस्सा हो सकता है. अमेरिकी प्रतिबंध लगने के बाद भारत को यह खरीद बंद करनी होगी, वरना अमेरिका भारतीय कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा सकता है या फिर ऐसे ही कुछ और कदम उठा सकता है. दोनों ने भारत को करीब 20 अरब डॉलर का तेल निर्यात किया है.
रूसी कंपनियों का भारत में बड़ा निवेश
रूसी तेल कंपनियां भारत को सिर्फ क्रूड की सप्लाई ही नहीं करती हैं, बल्कि यहां बड़ा निवेश और कई कंपनियों से व्यापारिक साझेदारी भी की है. रोसनेफ्ट की बात करें तो उसने साल 2016 में भारत की कंपनी नायरा एनर्जी में 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी. यह सौदा 13 अरब डॉलर (करीब 1.15 लाख करोड़ रुपये) का था. नायरा एनर्जी भारत की दूसरी सबसे बड़ी प्राइवेट रिफाइनरी कंपनी है. रोसनेफ्ट ने साल 2024 में रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ भी रोजाना 5 लाख बैरल तेल सप्लाई की डील की है. यह सौदा भी करीब 13 अरब डॉलर का है. लुकोइल ने भारत में कोई व्यापारिक साझेदारी या निवेश तो नहीं किया है, लेकिन साल 2025 में दुबई में एक नई ट्रेडिंग आर्म स्थापित की है, जो भारत जैसे देशों को तेल उत्पादों की ट्रेडिंग सुविधा प्रदान कर सकती है.
अन्य देशों पर कितना असर
रोसनेफ्ट सहित रूस की तेल कंपनियों की 63 फीसदी सप्लाई एशिया और प्रशांत क्षेत्र में होता है. चीन इन कंपनियों से सालाना 1.5 करोड़ टन तेल खरीद रहा है, जबकि जर्मनी, अबखाजिया, तुर्की, दक्षिण कोरिया, जापान और अन्य यूरोपीय देश भी रूसी कंपनियों से तेल की खरीद करते रहे हैं. हालांकि, इससे पहले अमेरिका की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से ही यूरोप ने रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम कर दिया. रूसी कंपनी लुकोइल भारत सहित 14 देशों को तेल की आपूर्ति करती है. इसमें चीन, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, इराक, इजिप्ट, घाना, नाइजीरिया, कैमरूप, बुल्गारिया, रोमानिया, नीदरलैंड, बेल्जियम, क्रोएशिया, फिनलैंड, इटली, सर्बिया और तुर्की जैसे देश शामिल हैं.
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...और पढ़ें
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
October 23, 2025, 08:16 IST