गार्ड बनना था, रूस ने जंग में झौंका, जंतर-मंतर पर बैठे परिवार मांग रहे इंसाफ

3 hours ago

Last Updated:November 04, 2025, 23:58 IST

रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे भारतीय युवाओं के परिजनों का दर्द अब सड़कों पर छलक पड़ा है. हरियाणा के सोनू कुमार और अमन पुनिया जैसे युवक एजेंटों के झांसे में आकर गार्ड की नौकरी के नाम पर रूस भेजे गए, लेकिन मोर्चे पर लड़ने को मजबूर हुए. कई लापता हैं, कुछ की लाशें लौटीं. परिजन जंतर मंतर पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं.

गार्ड बनना था, रूस ने जंग में झौंका, जंतर-मंतर पर बैठे परिवार मांग रहे इंसाफरूस यूक्रेन जंग में लगातार भारतीय फंस रहे हैं.

नई दिल्ली. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अब भारत के कई परिवार मातम और उम्मीद के बीच झूल रहे हैं. किसी का बेटा लौटा नहीं, किसी का हफ्तों से कोई अता-पता नहीं. जो लौटे, वे ताबूत में बंद थे. जो जिंदा हैं, वे रूस के मोर्चे पर जबरन बंदूक थामने को मजबूर. हर कहानी की शुरुआत एक जैसे झांसे से होती है. ऊंची तनख्वाह और सुरक्षित नौकरी का वादा. एजेंटों ने इन युवाओं को सिक्योरिटी गार्ड या वेयरहाउस जॉब का झांसा देकर रूस भेजा, जहां पहुंचते ही उन्हें रूसी सेना में भर्ती कर मोर्चे पर धकेल दिया गया.

जला हुआ शव लौटा
हरियाणा के हिसार के सोनू कुमार को एजेंटों ने भरोसा दिलाया था कि उसे किसी भी युद्ध क्षेत्र में नहीं भेजा जाएगा. वह पढ़ाई के बाद स्टडी वीजा पर रूस गया था. आखिरी कॉल में उसने बताया था कि उसे फ्रंटलाइन पर भेजा जा रहा है और फोन छीन लिया जाएगा. 19 सितंबर को परिवार को टेलीग्राम पर संदेश मिला “सोनू लापता है, उसका शव मिल गया.” परिवार ने किसी तरह खर्च जुटाकर उसका शव भारत मंगवाया. वह इतना जला हुआ था कि पहचान कंप्यूटर स्कैन से हुई. शव के साथ रूसी झंडा और यूनिफॉर्म भी भेजा गया.

‘शायद जिंदा ना लौटूं’
इसी जिले के एक और युवक अमन पुनिया की कहानी भी भयावह है. एजेंटों ने उसे स्थायी नौकरी और रेजिडेंसी का लालच दिया. 15 अक्टूबर को अमन ने परिवार को आखिरी बार फोन किया था कि मुझे फ्रंटलाइन पर भेजा जा रहा है, शायद जिंदा ना लौटूं. बाद में वह घायल हुआ और बंकर में तीन दिन तक तड़पता रहा, लेकिन इलाज नहीं मिला. उसका वीडियो सामने आया जिसमें वह प्रधानमंत्री मोदी से घर लाने की गुहार लगा रहा था.

युद्ध में जा रही गाड़ी से कूदकर बचाई जान
हैदराबाद के मोहम्मद अहमद पहले बाउंसर का काम करते थे. उन्‍हें गोदाम में नौकरी का झांसा दिया गया. 25 अप्रैल को वह मुंबई से रूस रवाना हुआ. वहां एक महीने तक उसे कोई काम नहीं मिला, फिर 30 अन्य लोगों के साथ हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई. जब फ्रंटलाइन पर भेजा गया, तो वह गाड़ी से कूदकर भागने की कोशिश में पैर तोड़ बैठा. उसने बताया, “मेरे साथ के 17 साथी मर चुके हैं, मुझे धमकी दी जा रही है कि लड़ो या मर जाओ.”

भारत सरकार ने भी माना रूस का सच
अहमद की भतीजी ने कहा, “वह परिवार का अकेला कमाने वाला था. उसकी पत्नी अस्पताल में है. उसने बस बेहतर जिंदगी का सपना देखा था.” दिल्ली के जंतर मंतर पर अब इन सभी परिवारों की आंखों में सिर्फ एक सवाल है. हमारे बच्चे किसी और की जंग में क्यों मर रहे हैं?  भारत के विदेश मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि उसने रूस से भारतीय नागरिकों की भर्ती रोकने को कहा है.

जयशंकर जता चुके आपत्ति
प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “हमने नागरिकों को बार-बार चेताया है कि यह रास्ता खतरनाक है.” विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी रूसी अधिकारियों से इस पर आपत्ति जताई है. रूस पर आरोप है कि वह विदेशी नागरिकों को धोखे से भर्ती कर अपने युद्ध में झोंक रहा है. रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि कुछ भारतीयों को यूक्रेन ने बंदी बनाया है. जंतर मंतर पर विरोध कर रहे एक परिजन ने कहा कि हमारे भाई सुरक्षा गार्ड बनने गए थे, सैनिक नहीं. बस, उन्हें वापस लाया जाए.

Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...

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First Published :

November 04, 2025, 23:52 IST

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