गूगल फॉर्म आया, घबराए टीचर्स! क्या अब कुत्तों की जनगणना भी हम करेंगे?

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Last Updated:December 01, 2025, 13:22 IST

Bengaluru News: बेंगलुरु के निजी स्कूलों में अचानक गूगल फॉर्म आया, जिसमें शिक्षकों से आवारा कुत्तों की गिनती करने को कहा गया. शिक्षक इसे नया विरोध नहीं, पुरानी थकान का विस्फोट बता रहे हैं.अधिकारियों का तर्क हैं कि स्कूलों के आसपास आवारा कुत्तों के हमले लगातार चिंता का कारण बने हुए हैं और किसी भी कार्रवाई के लिए ठोस डेटा जरूरी है.

गूगल फॉर्म आया, घबराए टीचर्स! क्या अब कुत्तों की जनगणना भी हम करेंगे?शिक्षक करेंगे आवारा कुत्तों की गिनती

Bengaluru News: बेंगलुरु के निजी स्कूलों के इनबॉक्स में एक साधारण-सा गूगल फॉर्म आ धमका. एक लिंक आया और उसमे निर्देश था कि स्कूल परिसर के आसपास के आवारा कुत्तों की गिनती करें, विवरण और सबमिट करें. कागज पर यह काम सामान्य सा लग सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और थी. शिक्षक और प्रिंसिपल दोनों ही रुककर निर्देश को दोबारा पढ़ने लगे कि यह सच है या कोई मजाक.

किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि यह सच में हो रहा है. एक निजी स्कूल की शिक्षिका ने कहा कि हले हम घर-घर जाकर सरकारी सर्वे के लिए डेटा इकट्ठा कर रहे थे. अब हमें सड़क के कुत्ते गिनने को कहा जा रहा है. हम शिक्षक हैं या बिना वेतन के नागरिक कर्मचारी? यह सब बेतुका लगता है.

आवारा कुत्तों के हमले लगातार चिंता का कारण

अधिकारियों का तर्क सीधा है, बच्चों की सुरक्षा. स्कूलों के आसपास आवारा कुत्तों के हमले लगातार चिंता का कारण बने हुए हैं और उनका कहना है कि किसी भी कार्रवाई के लिए ठोस डेटा जरूरी है. लेकिन स्कूल प्रबंधन की हैरानी इस चिंता को लेकर नहीं थी, बल्कि उस तरीके को लेकर थी. जिसके तहत ये प्रक्रिया चलाई गई. सवाल यह उठा कि आखिर जिम्मेदारी स्कूलों और शिक्षकों पर ही क्यों डाली गई? वह भी बिना किसी संदर्भ.

शिक्षक इसे नया विरोध नहीं, पुरानी थकान का विस्फोट बता रहे हैं. हर काम अपने आप में छोटा लगता है, लेकिन जब जनगणना, वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन, पल्स पोलियो ड्यूटी, चुनाव ड्यूटी और अब कुत्तों की गिनती सब एक के बाद एक थोपे जाते हैं, तो पढ़ाने का समय और मनोबल दोनों खत्म हो जाते हैं. अब पढ़ाई कक्षा में पूरी तरह पीछे छूट गई है. वह सर्वे, फॉर्म और गैर-शैक्षणिक कामों के बीच कहीं दबकर रह गई है.

शिक्षकों का क्या कहना है?

शिक्षक बताते हैं कि प्रशासन की यह आदत नई नहीं है. यह सुविधा अब उनकी जिम्मेदारियों को बढ़ाने का सिर्फ बहाना बन गई है. आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ, वार्ड-स्तरीय योजना और लगातार चलने वाले कार्यक्रमों की जरूरत है न कि शिक्षकों से डेटा इकट्ठा करवाने की. कुछ स्कूल परेशानी से बचने के लिए फॉर्म अनमने मन से भर रहे हैं.

जबकि कुछ कानूनी आधार पर जवाब तैयार कर रहे हैं. शिक्षकों को डर है कि आज आवारा कुत्तों का काम है, कल कचरे का मैपिंग, परसों स्ट्रीट लाइट ऑडिट हर छोटा काम स्कूलों पर थोप दिया जाएगा.

Location :

Bengaluru,Bengaluru,Karnataka

First Published :

December 01, 2025, 13:22 IST

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