जब जनरल सुंदरजी ने इंदिरा से... ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर रशीद किदवई का लेख

1 day ago

Last Updated:June 05, 2025, 09:29 IST

Rasheed Kidwai Article On Operation Blue Star:ऑपरेशन ब्लू स्टार 5 जून 1984 को स्वर्ण मंदिर में उग्रवादियों के सफाए के लिए शुरू हुआ, जिसमें 712 उग्रवादी मारे गए. इंदिरा गांधी ने बिना राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह क...और पढ़ें

जब जनरल सुंदरजी ने इंदिरा से... ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर रशीद किदवई का लेख

24 घंटे चले ऑपरेशन ब्लू स्टार में 700 से अधिक लोग मारे गए थे.

हाइलाइट्स

ऑपरेशन ब्लू स्टार 5 जून 1984 को शुरू हुआ था.इस ऑपरेशन में 712 उग्रवादी मारे गए थे.इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को विश्वास में लिए बिना ऑपरेशन चलाया था.

Rasheed Kidwai Article On Operation Blue Star: आज से ठीक 41 साल पहले यानी 5 जून 1984 को शुरू किए गए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को आजाद भारत के इतिहास की सबसे त्रासद घटनाओं में से एक माना जाता है. यह ऐसी घटना थी, जिससे बचा जा सकता था. और बदतर यह रहा कि इंदिरा गांधी सरकार ने सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थल स्वर्ण मंदिर में कब्जा जमाए अलगाववादियों का सफाया करने के लिए दिन भी गलत चुन लिया था. इस दिन सिख समुदाय अपने पांचवें गुरु अर्जन देव जी का शहीदी दिवस मना रहा था.

तब पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू था. इस ऑपरेशन के बारे में स्थानीय नागरिक प्रशासन को जानकारी देना तो दूर की बात, तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, जो स्वयं एक गौरवशाली सिख और भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर थे, को भी विश्वास में नहीं लिया गया. पश्चिमी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल के. सुंदरजी ने कथित रूप से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आश्वस्त कर दिया था कि दो घंटे के भीतर ही उग्रवादियों के सरगना जरनैल सिंह भिंडरांवाले, जनरल शाहबेग सिंह और अन्य अलगाववादियों का काम तमाम कर दिया जाएगा. ये उग्रवादी कितने उन्नत हथियारों से लैस थे, इसका एहसास उन्हें बाद में हुआ. ऐसा कहा जाता है कि अमृतसर में सेना की बढ़ती गतिविधियों को भांपकर राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव एस. एस. धनोआ ने एक दिन पहले जनरल सुंदरजी को फोन कर पूछा भी था कि क्या उनकी सेना को किसी प्रकार की मदद की दरकार है? तब सुंदरजी ने कहा था कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है.

भारतीय सेना की चुनौती

5 जून 1984 को जब भारतीय सेना के जवानों ने आगे बढ़ने की कोशिश की, तो उन्हें भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा. एक बख्तरबंद गाड़ी को रॉकेट लॉन्चर से उड़ा दिया गया. जब तक सेना के छह मुख्य युद्धक टैंक ‘विजयंत’ भीतर पहुंचे, तब तक मंदिर का सर्वश्रेष्ठ और सबसे पवित्र हिस्सा मलबे में तब्दील हो चुका था. ये छह टैंक संगमरमर की सीढ़ियों और परिक्रमा से नीचे उतरकर 105 मिमी की तोपों से अकाल तख्त में छिपे अलगाववादियों पर गोलाबारी करने लगे.

ऑपरेशन ब्लू स्टार करीब 24 घंटे चला. इस दौरान दोनों तरफ से भारी गोलीबारी हुई. इसमें 712 उग्रवादियों की मौत हुई. यह ऑपरेशन इस मायने में सफल माना गया कि अधिकांश अलगाववादी मारे गए. लेकिन इसे एक बड़ी नाकामयाबी भी माना गया, क्योंकि इसमें हरमंदिर साहिब और अकाल तख्त को भारी नुकसान पहुंचा था.

निर्दोष भक्त बेवजह मारे गए

इस क्रॉसफायर में कितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु और निर्दोष भक्त बेवजह मारे गए, इसका विवरण मार्क टली और सतीश जैकब ने अपनी किताब ‘अमृतसर : मिसेस गांधीज लास्ट बैटल’ (रूपा बुक्स, 1985) में दिया है. इसमें वे लिखते हैं, “सेना ने 60 श्रद्धालुओं को एक कमरे में बंद कर दिया. इसका दरवाजा ही नहीं, बल्कि खिड़कियां भी लगा दी गईं. यहां तक कि बिजली की आपूर्ति भी काट दी गई. 5-6 जून 1984 की वो रात बेहद गर्म थी… 6 जून की सुबह जब 8 बजे कमरे का दरवाजा खोला गया, तब तक 60 में से 50 लोग मर चुके थे.” (पेज 172)

पंजाब के निर्माण के खिलाफ थीं इंदिरा

इंदिरा गांधी भाषाई आधार पर पंजाब राज्य का निर्माण करने के विचार की घोर विरोधी थीं. लेकिन जब मार्च 1966 में उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला, तो उस समय पंजाबी सूबा बनाए जाने की मांग को स्वीकार कर लिया. साल 1980 में प्रकाशित अपनी किताब ‘माई ट्रुथ’ (विजन बुक्स) में उन्होंने 1965 के दौरान की अपनी चिंताओं को याद किया है, जब वे लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं और तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली एक समिति ने पंजाबी सूबे के गठन के पक्ष में सिफारिश की थी. इंदिरा ने लिखा कि वे भाषा के आधार पर पंजाब राज्य के गठन के खिलाफ थीं, क्योंकि इससे कांग्रेस के हिंदू समर्थकों को निराशा होती. उनके शब्दों में, “अकालियों की मांग को मानना उस स्थिति को छोड़ने जैसा होता, जिसके प्रति वह (कांग्रेस) प्रतिबद्ध थी और यह प्रस्तावित पंजाबी सूबे में अपने हिंदू समर्थकों को निराश करने जैसा भी होता. कांग्रेस की नीति में यह चौंकाने वाला बदलाव पूरी तरह अप्रत्याशित था.”

1947 में देश के बंटवारे के समय पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया था. एक पाकिस्तान में चला गया, दूसरा भारत के हिस्से में आया. यहां के सिखों ने पंजाबी भाषा के आधार पर राज्य का गठन करने की मांग जोर-शोर से उठानी शुरू की, लेकिन 1956 में न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में गठित पहले राज्य पुनर्गठन आयोग ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. इसके बाद फतेह सिंह और तारा सिंह जैसे प्रभावी अकाली नेताओं ने एक ऐसे अलग राज्य के निर्माण के लिए आंदोलन छेड़ दिया, जिसमें सिखों की धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान सुरक्षित रह सके. 1961 की जनगणना के दौरान अकाली नेताओं ने आरोप लगाया था कि अधिकांश हिंदुओं ने पंजाबी भाषी राज्य के गठन को बाधित करने के मकसद से अपनी मातृभाषा हिंदी दर्ज करवाई, जबकि सिख कुल आबादी का करीब 58 फीसदी थे. अंतत: 1966 में मूल पंजाब राज्य को तीन हिस्सों में बांट दिया गया. एक मौजूदा पंजाब बन गया, जबकि दो अन्य हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आए.

हिंदू समुदाय के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील

इंदिरा गांधी के कुछ जीवनी लेखकों/लेखिकाओं, जैसे कैथरीन फ्रैंक, एस. एस. गिल और पुपुल जयकर ने गौर किया था कि जब इंदिरा 1980 में दोबारा सत्ता में लौटीं, तो वे मुस्लिमों या सिखों की तुलना में हिंदू समुदाय के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील हो गई थीं. 1984 की शुरुआत में जब पंजाब में उग्रवाद और अलगाववाद चरम पर था, तब वहां हिंदुओं की हत्याओं के प्रतिशोध में हरियाणा में सिख-विरोधी दंगे भड़क उठे थे. मार्क टली और सतीश जैकब अपनी किताब ‘अमृतसर’ में लिखते हैं कि किस तरह हिंदू भीड़ ने पानीपत में एक गुरुद्वारे को जला डाला और सिखों को बसों से उतारकर तथा उनकी दाढ़ी-मूछें मुंडवाकर उनकी हत्या कर दी. इंदिरा इस सबकी मूक दर्शक बनी रहीं, वैसे ही जैसे उन्होंने पंजाब में अलगाववादियों द्वारा हिंदुओं की हत्याओं को भी खामोशी से देखा था. लेकिन जब मोटरसाइकिलों पर सवार हत्यारे गिरोह मध्यमार्गी सिखों और निर्दोष लोगों को मारने लगे, तब इंदिरा का धैर्य टूट गया और उन्होंने जनरल सुंदरजी को बुलाकर भिंडरांवाले को स्वर्ण मंदिर से हटाने के लिए कहा.

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद थक चुकी थीं इंदिरा!

लेखिका मैरी सेटन उस समय भारत में थीं और उन्होंने महसूस किया था कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद प्रधानमंत्री थक चुकी थीं. “अब वे चुनौतियों का सामना नहीं कर पा रही थीं, जबकि यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी. वे हमेशा परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेती थीं. अब वे संवाद से पीछे हट रही थीं. उन्होंने इसे घुटन की स्थिति कहा था. वे कहने लगी थीं, ‘मैं अब घुटन महसूस कर रही हूं, पूरी तरह, अंदर तक.’”

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रशीद किदवई

रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...और पढ़ें

रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...

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