भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के वरिष्ठ अधिकारी बी. रमन ने अपनी आत्मकथा “The Kaoboys of R&AW – Down Memory Lane” में एक ऐसा चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसने भारत के खुफिया इतिहास के एक कम चर्चित लेकिन बेहद महत्वपूर्ण अध्याय से पर्दा उठाया है. यह खुलासा उस समय का है जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक से व्यक्तिगत वार्ताओं में इतना रम गए थे कि एक दिन उन्होंने भारत की सबसे गोपनीय जासूसी सफलता — पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रम की जानकारी — खुद जिया को बता दी. रमन इस घटनाक्रम को “एक खुफिया एजेंसी के लिए सबसे खतरनाक परिस्थिति: अविवेकी राजनीतिक नेतृत्व” का जीवंत उदाहरण मानते हैं.
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई और मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने, तो देश की खुफिया एजेंसी R&AW (Research and Analysis Wing) का भविष्य अचानक संकट में पड़ गया. मोरारजी देसाई, जिनकी छवि एक सख्त अनुशासक और पारदर्शिता के समर्थक की थी, R&AW को संदेह की नजर से देखते थे. वो इस एजेंसी को कांग्रेस की “गोपनीय हथियारशाला” मानते थे और इसका बजट तथा क्रियाकलाप सीमित करना चाहते थे.
लेकिन समय के साथ दो घटनाएं ऐसी हुईं, जिन्होंने मोरारजी देसाई का नजरिया बदल दिया. पहली – एक सफल खुफिया ऑपरेशन जिसकी रिपोर्ट R&AW अधिकारी Suntook ने प्रधानमंत्री को भेजी. देसाई ने इस पर एक लम्बा और गर्मजोशी भरा धन्यवाद पत्र लिखा और स्वीकार किया कि उनका दृष्टिकोण बदल रहा है.
दूसरी बड़ी वजह बनी R&AW के Science and Technology Division (S&T) की TECHINT (Technical Intelligence) कामयाबी, जिसे डॉ. के. संतनम के नेतृत्व में अंजाम दिया गया. इस डिवीजन ने पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रम की परतें खोल दी थीं — विशेषकर कहूटा (Kahuta) में बन रहे यूरेनियम संवर्धन संयंत्र का भंडाफोड़.
R&AW की इस शानदार जासूसी ने भारत सरकार को पाकिस्तान के परमाणु खतरों की सटीक जानकारी दी. और यही थी वह सफलता, जिसने मोरारजी देसाई की सोच में बदलाव लाया और उन्हें R&AW की अहमियत समझाई.
लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह एक क्लासिक राजनीतिक चूक थी — एक चापलूसी के जाल में फंसी खुफिया भूल.
पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक, जिन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टो को अपदस्थ किया था, भारत से तनाव नहीं चाहते थे. उन्होंने मोरारजी देसाई को निजी कॉल करने शुरू किए — बहाने के तौर पर देसी चिकित्सा और मूत्रपान चिकित्सा पर चर्चा करते.
जिया की मीठी-मीठी बातें और “Excellency, सुबह का मूत्र पीना चाहिए या दिन में कभी भी?” जैसे सवाल, देसाई को बहुत भाते थे. बातों ही बातों में एक दिन मोरारजी देसाई ने जिया-उल-हक को एक बड़ा राज बता डाला कि “भारत को पता चल चुका है पाकिस्तान चोरी-छिपे परमाणु हथियार बना रहा है”!
एक प्रधानमंत्री द्वारा शत्रु राष्ट्र के नेता को अपने देश की जासूसी सफलताओं का पर्दाफाश करना — यह R&AW जैसी खुफिया एजेंसी के लिए गहरी चिंता की बात थी.
बी. रमन अपनी किताब “The Kaoboys of R&AW: Down Memory Lane” में लिखते हैं कि, “Indiscreet political leaders are the unavoidable occupational hazards of the intelligence profession.” यानी “अविवेकी राजनीतिक नेता, खुफिया एजेंसियों के काम में हमेशा एक बड़ी चुनौती होते हैं”
इस एक चूक के बावजूद, R&AW ने अपनी प्रतिष्ठा और कार्यक्षमता बनाए रखी. लेकिन यह घटना हमेशा एक सबक के तौर पर याद की जाती है — कि राजनेताओं की लापरवाही, कभी-कभी राष्ट्र की सबसे गोपनीय उपलब्धियों को भी दांव पर लगा सकती है. यह पूरी घटना केवल एक खुफिया चूक नहीं थी, बल्कि यह उस समय की राजनीतिक नासमझी और कूटनीतिक अपरिपक्वता की भी प्रतीक बन गई.
R&AW जैसी एजेंसियां दशकों की मेहनत से सूचनाएं जुटाती हैं, जिन पर देश की सुरक्षा और रणनीतिक बढ़त निर्भर करती है. बी. रमन का यह खुलासा आज भी हमें यह सिखाता है कि खुफिया जानकारी सिर्फ तकनीक या नेटवर्क से नहीं, बल्कि राजनीतिक विवेक और संयम से भी सुरक्षित रहती है.