Ratan Tata : देश के दिग्गज उद्योगपति और परोपकारी रतन टाटा के व्यक्तित्व से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं, जो उन्हें अलग बनाती हैं. एक बड़े उद्योगपति परिवार में बड़े होने के बावजूद टाटा को बचपन से ही सादगी की सीख मिली. बीबीसी के अनुसार, टाटा की जवानी के उनके दोस्त याद करते हैं कि अपने शुरुआती दिनों में रतन को अपना सरनेम बोझ लगता था. हालांकि अमेरिका में वह बेफिक्र महसूस करते थे, क्योंकि उनके सहपाठियों को उनके फैमिली बैकग्राउंड के बारे में कुछ भी मालूम नहीं होता था.
रतन टाटा ने सीनियर जर्नलिस्ट कूमी कपूर को दिए इंटरव्यू में बताया था कि अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में उन्हें कई बार अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए बर्तन तक धुलने पड़ते थे. वह बताते हैं कि उन दिनों विदेश में पढ़ने के लिए रिजर्व बैंक बहुत कम विदेशी मुद्रा इस्तेमाल करने की अनुमति देता था. टाटा के पिता कानून तोड़ने के हक में बिल्कुल नहीं थे. इसलिए वह टाटा के लिए ब्लैक में डॉलर नहीं खरीदते थे. ऐसे में अक्सर होता था कि महीना खत्म होते-होते सारे पैसे खत्म हो जाते थे. कभी-कभी दोस्तों से पैसे उधार लेना पड़ता था. साथ ही अतिरक्त पैसे के लिए बर्तन भी धुल लिया करते थे.
दादी और चाचा के कहने पर लौट आए भारत
रतन टाटा अमेरिका में सात साल रहे. उन्होंने यहां की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के कॉर्नेल कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर से बीएससी आर्किटेक्चर किया. इसके बाद लॉस एंजिलिस में उनके पास एक अच्छी नौकरी और शानदार घर भी था. लेकिन फिर अपनी दादी नवाज़बाई टाटा और चाचा जेआरडी टाटा के कहने पर भारत लौट आए.
टाटा स्टील में मजदूर की तरह करते थे काम
सीनियर जर्नलिस्ट गिरीश कुबेर अपनी किताब ‘द टाटास: हाउ ए फैमिली बिल्ट ए बिजनेस एंड ए नेशन’ में लिखते हैं, ” रतन टाटा ने साल 1962 में जमशेदपुर में टाटा स्टील में काम करना शुरू किया. यहां वह छह साल तक रहे. शुरुआत में एक शॉपफ़्लोर मज़दूर की तरह नीला ओवरऑल पहनकर अप्रेंटिसशिप की. इसके बाद वह प्रोजेक्ट मैनेजर बने. इसके बाद वह प्रबंध निदेशक एसके नानावटी के विशेष सहायक हो गए. उनकी कड़ी मेहनत की ख्याति बंबई तक पहुंची और जेआरडी टाटा ने उन्हें बंबई बुला लिया.”
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FIRST PUBLISHED :
October 10, 2024, 13:18 IST