Last Updated:May 21, 2025, 09:25 IST
Rajiv Gandhi Death Anniversary: जिस तरह इंदिरा गांधी ने पहले ही अपनी हत्या की आशंका जता दी थी, उसी तरह क्या राजीव गांधी को भी अपने असामयिक अंत का पूर्वाभास हो गया था? ‘द असैसिनेशन ऑफ राजीव गांधी’ किताब की लेखिक...और पढ़ें

आज ही के दिन 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी.
हाइलाइट्स
राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को हुई थी.लिट्टे के इंटरसेप्ट संदेशों में राजीव गांधी को मारने की योजना थी.राजीव गांधी भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने थे.Rajiv Gandhi Death Anniversary: 21 मई 1991 को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की मौत हो गई थी. इस घटना से कुछ घंटों पहले ही नीना ने राजीव गांधी का इंटरव्यू लिया था. उन्होंने राजीव से पूछा था कि क्या उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी खतरे में है? इस पर राजीव गांधी ने खुद एक सवाल किया था: ‘क्या आपने कभी गौर किया है कि दक्षिण एशिया में जब भी कोई महत्वपूर्ण नेता सत्ता पर काबिज होता है या अपने देश के लिए कुछ हासिल करने के करीब होता है, तब उसे कैसे नीचे गिराया जाता है, उस पर हमला किया जाता है, उसे मार दिया जाता है… श्रीमती इंदिरा गांधी को देखिए, शेख मुजीब, जुल्फिकार अली भुट्टो, भंडारनायके को देखिए.’ बकौल नीना, इस इंटरव्यू के कुछ ही देर बाद राजीव की हत्या कर दी गई थी.
जब मिले थे लिट्टे के इंटरसेप्ट संदेश
पड़ोसी देश श्रीलंका में उग्रवादी विद्रोह को समाप्त करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों को भेजना बतौर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बड़े फैसलों में एक था. तत्कालीन प्रधानमंत्री को ये जोखिम भरा और बड़ा कदम उठाने की सलाह कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग, सैन्य कमांडरों और खुफिया एजेंसियों ने दी थी. इस दौरान, कई भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन लिट्टे पर काबू नहीं पाया जा सका. बाद में भारतीय सैनिकों को वापस बुला लिया गया. लेकिन तब तक लिट्टे राजीव गांधी का दुश्मन बन चुका था.
लिट्टे के इंटरसेप्ट किए गए कई संदेशों में राजीव गांधी को खत्म करने के इरादे जाहिर किए गए थे. ये खुफिया इनपुट अप्रैल 1990 से मई 1991 के बीच इंटरसेप्ट किए गए थे. नीना गोपाल ने कर्नल हरिहरन के हवाले से अपनी किताब में लिखा है कि जब उनकी (हरिहरन) टीम ने राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने का संकेत देने वाला लिट्टे का एक कैसेट उन्हें सुनाया, तो वे सन्न रह गए थे. कर्नल हरिहरन के पास जाफना के तमिलों की एक छोटी-सी सेना थी, जो लिट्टे पर नजर रखती थी. इंटरसेप्ट किए गए संदेशों में से कुछ इस प्रकार थे: ‘राजीव गांधी अवारंड मंडालई अड्डीपोडलम’, ‘डंप पन्निडुंगो’ और ‘मारानई वेचिडुंगो.’ इनका संभावित हिंदी आशय यही था कि राजीव गांधी को उड़ा दो या उन्हें खत्म कर दो.
सुरक्षा की भारी अनदेखी…
किसी अनहोनी होने के राजीव के स्वयं के पूर्वाभास ही नहीं, बल्कि खुफिया एजेंसियों के पास लिट्टे के इस तरह के खुले इरादों के जाहिर होने के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर भयावह लापरवाही बरती गई. 1991 में केंद्र में चंद्रशेखर सरकार के नाटकीय पतन के बाद मध्यावधि चुनावों की घोषणा कर दी गई थी. उन दिनों राजीव गांधी तमिलनाडु के चुनावी दौर पर थे. वह 21 मई की रात थी. चेन्नई से करीब 40 किमी दूर जब राजीव श्रीपेरंबुदुर पहुंचे तो रात के 10 बजने वाले थे. उस वक्त वहां सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं था. राजीव रेड कार्पेट पर तेजी से चलते हुए हर किसी से फूलमालाएं स्वीकार कर रहे थे. लेकिन तभी उनकी नजर एक छोटी-सी लड़की कोकिला पर गई, जो कविता सुना रही थी. वह आत्मघाती दस्ते की ही एक सदस्य थी. उसे देखकर राजीव वहीं रुक गए. इतने में उनकी हत्यारिन धनु हाथ में चंदन की माला लेकर आगे बढ़ी. इस बीच राजीव को भी आभास हुआ कि कुछ तो गलत और असामान्य हो रहा है. उन्होंने कांस्टेबल अनुसूया को भीड़ को नियंत्रित करने का इशारा किया. लेकिन तब तक धनु राजीव के चरण स्पर्श करने का बहाना करते हुए झुक गई और अपने शरीर से लिपटे आरडीएक्स विस्फोट से लदे डिवाइस का बटन दबा दिया.
आज राजीव गांधी की पुण्यतिथि है.
दो रिकॉर्ड जो अब तक कायम हैं…
अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला, उस समय वे महज 40 साल के थे. इस तरह उन्होंने भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया और यह रिकॉर्ड आज तक कायम है. प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने तय अवधि से पहले आम चुनावों की घोषणा कर दी. राजीव गांधी के पक्ष में सहानुभूति लहर के बलबूते कांग्रेस 543 लोकसभा सीटों में से 414 पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. यह ऐसा आंकड़ा था, जिसे न तो कभी उनकी मां इंदिरा गांधी और न ही नाना जवाहरलाल नेहरू हासिल कर पाए थे. उसके बाद कोई भी पार्टी यह रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाई. पार्टी की प्रचंड जीत के जश्न मनाने के दौरान यह संभवत: पहला और एकमात्र मौका था, जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का 24 अकबर रोड स्थित मुख्यालय लगातार तीन दिन तक रोशनी से सराबोर रहा.
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के ताले खुलवाने को लेकर अनभिज्ञ थे?
कुछ समकालीन इतिहासकार मानते है कि हिंदू श्रद्धालुओं के लिए राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के ताले खोलने का राजीव गांधी का निर्णय ‘नरम हिंदुत्व’ था, जिसका मकसद शाह बानो मामले में मौलवियों के रुख का समर्थन करने को लेकर हो रही आलोचनाओं से उबरना था.
हालांकि, राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रहे जम्मू-कश्मीर कैडर के आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्ला ने बाद में अपनी किताब में दावा किया था कि प्रधानमंत्री को फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के ताले खोले जाने की जानकारी नहीं थी. अपने संस्मरणों के संग्रह ‘माई ईयर्स विद राजीव गांधी : ट्रंफ एंड ट्रेजेडी’ में हबीबुल्ला ने लिखा है कि जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री से पूछा कि क्या वे ताले खोलने के निर्णय में शामिल थे, तब राजीव ने दो टूक जवाब दिया था, ‘नहीं, किसी भी सरकार को धार्मिक स्थलों के संचालन या अन्य मामलों में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है. मुझे इस घटनाक्रम के बारे में तब तक कुछ भी मालूम नहीं था, जब तक कि आदेश पारित होने और उसके क्रियान्वयन के बाद मुझे इसके बारे में बताया नहीं गया.’
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...और पढ़ें
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...
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