जिस घोटाले ने लालू की साख की लगाई वाट, उस केस में कितने अफसरों की हुई मौत?

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नई दिल्ली. बिहार की सियासत का वह काला अध्याय, जहां गायों और भैंसों का चारा ही बन गया आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव का सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्मन. 1990 के दशक का बिहार की राजनीति का एक ऐसा नेता, जिसकी मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली रहती थी. 1990 में मुख्यमंत्री का ताज पहना, लेकिन उनकी सत्ता की जड़ों में सड़न पशुपालन विभाग, जो गाय-भैंसों के चारे का इंतजाम करता था, वही विभाग बन गया. चारा घोटाला नाम सुनते ही आज भी बिहार की जनता के कानों में घंटी बज जाती है. यह कोई साधारण भ्रष्टाचार नहीं था.उस समय के हिसाब से यह ₹950 करोड़, जो आज के आज के हिसाब से ₹48 अरब से ज्यादा की लूट थी. फर्जी बिल, नकली सप्लायर और सरकारी खजाने से निकासी ने लालू यादव को कटघरे में खड़ा कर दिया.

सीबीआई जांच में पशु चिकित्सकों, अफसरों, व्यापारियों और राजनेताओं का गठजोड़ का पता चला. बिल भरे जाते थे कि हरियाणा से गायें स्कूटर पर लाई गईं. गायों का चारा हेलीकॉप्टर से गिराया गया. जबकि, हकीकत में न चारा था, न गायें बस कागजों पर लूट होती थी. कहानी की शुरुआत 1995 से शुरू हुई. बिहार सरकार कंगाल हो चुकी थी. वेतन देने लायक पैसे नहीं बचे थे. रांची के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर अमित खरे (वर्तमान में पीएमओ में तैनात) को खजाने से अजीबोगरीब निकासी के कागजात दिखे. पशुपालन विभाग ने बिना कोलेटरल के करोड़ों निकाल लिए थे. खरे ने जिला मजिस्ट्रेट वी.एस. दुबे को रिपोर्ट दी. दुबे ने सीबीआई को चिट्ठी लिखी. जनवरी 1996 में सीबीआई का छापा पड़ा.

लालू यादव कैसे फंसे चारा घोटाला में?

लेकिन असली तूफान मार्च 1996 में आया. एक जनहित याचिका पर पटना हाईकोर्ट ने सीबीआई को केस सौंप दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे मंजूरी दी. जांच शुरू हुई तो धागा लालू प्रसाद यादव तक पहुंचा. लालू जो तब बिहार के मुख्यमंत्री थे, अब घोटाले के केंद्र में थे. सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर उपेंद्र नाथ बिस्वास (यू.एन. बिस्वास) ने बिना डरे तहकीकात की. मई 1997 में सीबीआई ने बिहार के गवर्नर को पत्र लिखा कि लालू यादव पर मुकदमा चलाने की इजाजत दो.

सीबीआई के डायरेक्टर कौन थे?

जुलाई 1997 में लालू को सीबीआई कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा. जनता दल ने दबाव डाला तो लालू ने इस्तीफा दे दिया. लेकिन अलग पार्टी बनाकर पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. लेकिन यही एक राजनैतिक चाल जो बिहार की सियासत को 15 साल तक उनकी जकड़ में रखे रही. सीबीआई ने 1997 में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें लालू और 55 अन्य के खिलाफ आरोप तय हुए. घोटाला 53 मामलों में बंट गया, जिसमें 500 से ज्यादा आरोपी शामिल थे.

लालू यादव पर कितने केस और कितने साल की सजा?

लालू यादव पर चारा घोटाले के अलग-अलग मामलों में पांच केस चले. सीबीआई की जांच ने लालू की मुश्किलें बढ़ाईं, हालांकि सजा मिलने में दशक लग गए. 2013 में पहली सजा चाईबासा ट्रेजरी से ₹37.7 करोड़ के गबन पर 5 साल की कैद हुई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में जमानत दे दी. फिर 2017-2018 में देवघर कोषागार से ₹89 करोड़ निकालने पर 3.5 साल की सजा हुई. चाईबासा के दूसरे केस में ₹33 करोड़ निकासी पर फिर 5 साल की सजा. दुमका में ₹139 करोड़ निकासी पर 5 साल की सजा. 2022 में डोरंडा कोषागार से ₹139 करोड़ निकालने पर 5 साल की सजा. कुल मिलाकर लालू को अबतक 50 साल से ज्यादा की सजा मिल चुकी है, लेकिन जमानतों और अपीलों में वे बाहर हैं.

1996 से 2025 तक की कहानी

चारा घोटाला सामने आने के बाद यानी 1996 से दिसंबर 2025 तक कुल 13 सीबीआई डायरेक्टर बने. ये वो अधिकारी थे जिनके कार्यकाल में केस की जांच चली, चार्जशीट बनीं और सजाएं हुईं. इसमें से अबतक दो सीबीआई डायरेक्टर और लगभग एक दर्जन जांच अधिकारी की मौत हो चुकी है. आईपीएस अधिकारी जोगिंदर सिंह जुलाई 1997 से मार्च 1998 तक सीबीआई के डायरेक्टर रहे. इनके कार्यकाल में ही लालू यादव को सीएम की कुर्सी से इस्तीफा देना पड़ा. साल 2017 में जोगिंदर सिंह की मौत हो गई.

कितने सीबीआई डायरेक्टर की हो चुकी है मौत

इसके बाद एम. नारायणन अप्रैल 1998 से लेकर दिसंबर 1999 तक सीबीआई डायरेक्टर रहे. इसके बाद आर के राघवन दिसंबर 1999 से मार्च 2001 तक सीबआई डायरेक्टर रहे. राजिंदर कुमार, यू.एस. मिश्रा, विजय शंकर तिवारी, अश्विनी कुमार, ए.पी. सिंह इसके बाद सीबीआई डायरेक्टर बने, जो अभी तक जिंदा हैं. लेकिन बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी रंजीत सिन्हा दिसंबर 2012 से मई 2015 तक सीबीआई डायरेक्टर रहे. लेकिन 2024 में इनकी मौत हो गई. इसके बाद अनिल कुमार सिन्हा, आलोक वर्मा, एम. नागेश्वर राव, ऋषि कुमार शुक्ला का कार्यकाल हुआ.

कुलमिलाकर चारा घोटाला के बाद अब तक कुल 13 सीबीआई डायरेक्टर बने. रंजीत सिन्हा के कार्यकाल में लालू यादव को पहली सजा साल 2013 में हुई. सिन्हा के नेतृत्व में सीबीआई ने लालू के खिलाफ मजबूत सबूत जुटाए, जो बाद की सजाओं की नींव बने. वहीं, आलोक वर्मा 2017-2019 के समय लालू यादव को कुछ राहत मिली. वर्मा के कायर्काल में ही लालू को 2018 में मेडिकल बेल मिली. लेकिन उनका कार्यकाल विवादास्पद रहा. आज 2025 में जब लालू यादव बूढ़े हो चुके हैं, चारा घोटाला एक सबक बन चुका है.

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