Last Updated:June 24, 2025, 12:09 IST
50 Years of Emergency: लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती और दुश्मनी की कहानी बिहार की सियासत का वो आईना है लालू ने सामाजिक न्याय की राजनीति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया तो नीतीश ने विकास और सुशासन का मॉडल पेश कि...और पढ़ें

लालू यादव और नीतीश कुमार की पुरानी तस्वीर.
हाइलाइट्स
लालू और नीतीश की दोस्ती और दुश्मनी बिहार की राजनीति का आईना है!जेपी आंदोलन में लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती की नींव पड़ी थी.नीतीश कुमार ने 2022 में फिर बीजेपी छोड़ी और RJD संग सरकार बनाई.पटना. 1970 के दशक में आपातकाल के विरोध में जयप्रकाश नारायण (जेपी) आंदोलन की आग में तपकर निकले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक साथ सियासी सफर शुरू किया और राजनीति के आकाश पर भी चढ़े, लेकिन सत्ता की गर्म हवाओं ने उनकी दोस्ती को दुश्मनी में बदल दिया. कभी एक-दूसरे के लिए लाठियां खाने वाले ये सिपाही आज एक-दूसरे के सियासी प्रतिद्वंद्वी हैं. इनकी कहानी बिहार की राजनीति का एक ऐसा दस्तावेज है जो दोस्ती, विश्वासघात और सियासी पलटबाजी की मिसाल पेश करता है. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती और दुश्मनी बिहार की राजनीति की सबसे दिलचस्प दास्तानों में से एक है. दोनों ने एक साथ राजनीति की शुरुआत की, लेकिन समय के साथ उनके रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते रहे. आपातकाल के खिलाफ श आइए जानते हैं कि कैसे दोनों पहले अच्छे दोस्त बने और फिर राजनीतिक दुश्मन बन गए.
जेपी आंदोलन में पड़ी दोस्ती की नींव- 1970 के दशक में जब देश आपातकाल की ओर बढ़ रहा था तो उसी दौरान बिहार में जेपी आंदोलन ने एक नई राजनीतिक पीढ़ी को जन्म दिया. पटना विश्वविद्यालय के गलियारों में लालू यादव और नीतीश नीतीश कुमार की मुलाकात हुई. लालू की हाजिरजवाबी और नीतीश की रणनीतिक सोच ने इन दोनों को ही जेपी के करीबी बना दिया. वर्ष 1974 में भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे तो ये दोनों युवा भी जेल गए.इस आंदोलन के दौरान दोनों ने लाठियां खाईं और एक-दूसरे के लिए ढाल भी बने. 25 जून 1975 को आपातकाल लागू होने की घोषणा की गई तो आंदोलन उग्र होता गया. जेपी की अगुवाई में आंदोलन ने दम दिखाया और वर्ष 1977 में देश में आपातकाल हटा लिया गया. यहां से दोनों की इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में शुरुआत हुई और जनता पार्टी की जीत ने दोनों को सियासी मंच दिया. लालू यादव की लोकप्रियता और नीतीश कुमार की मेहनत ने उन्हें जनता दल में अहम जगह दिलाई.
लालू का उभार और दरार की शुरुआत
1990 में जनता दल की जीत के बाद लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने. नीतीश ने उनके लिए विधायकों को जोड़ने में दिन-रात एक किया. लालू की सोशल इंजीनियरिंग, खासकर मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण ने उन्हें सत्ता का बेताज बादशाह बना दिया. लेकिन सत्ता की गर्मी ने दोस्ती में दरार डाल दी. लालू की जातीय राजनीति और नीतीश की विकास-केंद्रित सोच में टकराव बढ़ा. 1994 में नीतीश ने जनता दल से बगावत कर समता पार्टी बनाई जो लालू के खिलाफ खुला विद्रोह था. यह पहला मौका था जब दोस्ती सियासी दुश्मनी में बदली.
चारा घोटाला और नीतीश कुमार का उदय
वर्ष 1996 में चारा घोटाले ने लालू की सियासी जमीन हिला दी. इस्तीफे के बाद उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया जिसे नीतीश ने परिवारवाद का तमगा दिया. इसके बाद नीतीश कुमार ने ‘जंगलराज’ के खिलाफ सुशासन का नारा बुलंद किया और 1999 में बीजेपी के साथ गठबंधन किया. वर्ष 2005 में नीतीश ने लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन को उखाड़ फेंका. सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था में सुधारों ने नीतीश को ‘सुशासन बाबू’ की उपाधि दिलाई. दूसरी ओर चारा घोटाले की सजा ने लालू की सियासी ताकत को कमजोर किया. दोनों की राहें अब पूरी तरह अलग हो चुकी थीं.
महागठबंधन बना और फिर दोस्ती हुई
वर्ष 2013 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ा, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में हार ने उन्हें कमजोर किया. 2015 में बीजेपी को हराने के लिए लालू और नीतीश ने महागठबंधन बनाया. यह दोस्ती की वापसी थी, लेकिन सत्य यही था कि दोनों के बीच अब पुराना भरोसा गायब था. नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने पर लालू के बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के साथ वह तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे. वर्ष 2017 में भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला देकर नीतीश ने महागठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ लौट आए. लालू यादव ने इसे ‘विश्वासघात’ करार दिया.
नीतीश कुमार की पलटबाजी का सिलसिला
नीतीश कुमार की पलटबाजी नहीं रुकी. वर्ष 2022 में उन्होंने फिर बीजेपी छोड़ी और RJD के साथ सरकार बनाई, जिसमें तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने. लेकिन 2024 में नीतीश एक बार फिर एनडीए में लौट आए. लालू यादव ने तंज कसते हुए कहा, नीतीश का कोई भरोसा नहीं. तेजस्वी ने नीतीश को ‘पलटू राम’ का तमगा दिया. ये उतार-चढ़ाव बिहार की जनता के लिए सियासी तमाशा बन गए, लेकिन नीतीश की कुर्सी बरकरार रही.
बिहार की सियासत का क्या है सबक?
आज लालू सक्रिय राजनीति से दूर हैं और तेजस्वी RJD की कमान संभाल रहे हैं. नीतीश कुमार 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए का चेहरा बनकर एक बार फिर सत्ता बचाने की जंग में हैं. लालू और नीतीश की सियासी जंग का अगला अध्याय 2025 के चुनाव में लिखा जाएगा. नीतीश के चेहरे और तेजस्वी की युवा अपील के बीच बिहार की जनता किसे चुनेगी यह बड़ा सवाल है. लेकिन एक बात साफ है कि लालू और नीतीश की यह कहानी साबित करती है कि सियासत में न कोई स्थायी दोस्त होता है और न दुश्मन. जेपी आंदोलन की गर्मी में शुरू हुई यह दोस्ती सत्ता की चालों में दुश्मनी बन गई, लेकिन बिहार की सियासत में इन दोनों का नाम हमेशा गूंजता रहेगा.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...
और पढ़ें