रिपोर्ट- श्रेयश शर्मा
India China Relaion: चीन हमेशा से भारत को लेकर आक्रमक रहा है. लेकिन नए भारत में अब सब खेल बदल चुका है. भारत ने एक ऐसी नीति अपनाई है जिससे चीन अब डिफेंसिव मोड में आ गया है और भारत से नजदीकी बढ़ा रहा है. यह नीति है डराकर रखो की. इसका ताजा उदाहरण है भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का चीन दौरा. जयशंकर तीन दिवसीय यात्रा पर चीन जा रहे हैं. लेकिन असल में यह डराकर रखों नीति है क्या. क्यों चीन अब भारत से नजदीकी बढ़ाने को मजबूर है. दरअसल पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया. पाकिस्तान ने भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जवाब में नागरिक इलाकों को भी निशाना बनाया. इस हमले ने भारत की रक्षा नीति की वास्तविक परीक्षा ली. भारत ने सटीक और ठोस जवाब दिया. यह जवाब न सिर्फ सैन्य रूप से सही था बल्कि यह दिखाने के लिए भी काफी था कि भारत किसी भी दुस्साहस को बर्दाश्त नहीं करेगा.
लेकिन इस छोटे से ऑपरेशन ने एक बड़ी बात फिर से साफ की सेना की तैयारियां हमेशा बनी रहनी चाहिए. क्योंकि हालात बदलने में वक्त नहीं लगता, और किसी भी क्षण बड़ा तनाव खड़ा हो सकता है. यह मान लेना कि क्षेत्रीय शांति हमेशा बनी रहेगी, एक गंभीर भूल हो सकती है.
महाभारत से एक सीख
अगर हम इतिहास में झांकें तो महाभारत में कई उदाहरण मिलते हैं जहां लड़ाई के ‘नियम’ तोड़े गए. जैसे कृष्ण द्वारा जयद्रथ के लिए नकली सूर्यास्त दिखाना, शिखंडी की आड़ लेकर भीष्म को परास्त करना, या फिर अश्वत्थामा द्वारा रात में सोते हुए पांडवों के पुत्रों की हत्या करना. यानी जब रणनीति की बात आती है, तो नियम अक्सर ताक पर रख दिए जाते हैं. यही बात आज की भू-राजनीति (geopolitics) पर भी लागू होती है खासकर चीन की रणनीति में.
चीन की चालबाजी: जमीन नहीं, दबाव चाहिए
चीन का मकसद शायद अब भारत की जमीन हथियाना नहीं है. वो अब सीमित संघर्षों के ज़रिए भारत को राजनीतिक और रणनीतिक रूप से झुकाना चाहता है. ऐसे में भारत की सबसे बड़ी ताकत यही होगी कि वह दबाव में भी अपनी स्थिति बनाए रखे. आज भारत को सीमा पर तेज, फुर्तीली और आधुनिक सेना की जरूरत है. ऐसा नहीं हुआ तो चीन की रणनीति सफल हो सकती है वो बिना युद्ध जीते ही भारत को कमजोर दिखा सकता है.
चीन का मकसद शायद अब भारत की जमीन हथियाना नहीं है.
भारत की सीमित क्षमताएं और रणनीतिक खतरा
भारत के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं… चाहे वो सीमित सड़कों के कारण मूवमेंट हो, कम्युनिकेशन सिस्टम की कमजोरी हो, या ऊंचाई पर युद्ध के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी. चीन यदि इलेक्ट्रॉनिक और सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम पर अटैक कर देता है, तो हमारी सेनाएं अलग-अलग टुकड़ों में बिखर सकती हैं. ऐसे में न केवल हमारा जवाब कमजोर हो जाएगा, बल्कि राजनीतिक दबाव भी बढ़ेगा.
तेज और फुर्तीली सेना ही भविष्य है
भारत को अब पुरानी भारी-भरकम सेना की सोच से आगे बढ़ना होगा. ऊंचाई वाले इलाकों में लड़ाई का फैसला सेना की ताकत से नहीं, बल्कि उसकी फुर्ती, समझदारी और नए हथियारों की तकनीक पर होगा. भारत के सैनिक जज्बे में कमी नहीं है वे किसी भी हालत में लड़ने को तैयार रहते हैं. लेकिन समस्या जज्बे की नहीं, क्षमता की है. जब टेक्नोलॉजी फेल हो जाए और सेना को अकेले लड़ना पड़े, तब ताकतवर से ताकतवर देश भी मुश्किल में आ जाता है.
चीन की योजना: जीत नहीं, भारत को थकाना
चीन को जरूरत नहीं कि वह युद्ध में भारत को हराए. अगर वह भारत को ऑपरेशनल तौर पर थका दे, अगर चीन भारत की कम्युनिकेशन और सामान पहुंचाने की ताकत को नुकसान पहुंचा दे, तो वह हमारे फैसले लेने की राजनीतिक ताकत को भी कमजोर कर सकता है. यही वजह है कि भारत को युद्ध जीतने की नहीं, बल्कि उसे झेल पाने की तैयारी करनी चाहिए.
डिटरेंस का मतलब है ऐसा डर पैदा करना कि दुश्मन कोई भी हमला करने से पहले कई बार सोचे.
डिटरेंस यानी दुश्मन को डराना, लेकिन स्मार्ट तरीके से
डिटरेंस का मतलब है ऐसा डर पैदा करना कि दुश्मन कोई भी हमला करने से पहले कई बार सोचे. ये डर हथियारों से नहीं, रणनीति और तैयारी से पैदा होता है. अगर चीन को ये लगे कि भारत हर हाल में जवाब देगा तो वह खुद ही पीछे हट जाएगा. इसके लिए जरूरी है कि भारत की सीमावर्ती टुकड़ियां सिर्फ तैनात न हों बल्कि हर समय युद्ध के लिए तैयार भी हों. तैयारी का मतलब सिर्फ हथियार नहीं, बल्कि कम्युनिकेशन , तेज मूवमेंट, और अलग-अलग टुकड़ियों का आपस में तालमेल भी है.
रक्षा खर्च बढ़ाना भी जरूरी
भारत का रक्षा बजट लगातार गिर रहा है जबकि खतरे बढ़ते जा रहे हैं. पाकिस्तान और चीन दोनों से खतरे को देखते हुए विशेषज्ञ मानते हैं कि रक्षा खर्च जीडीपी का कम से कम 2.5% होना चाहिए. लेकिन अभी यह उससे कम है. इससे हमारी युद्ध-सामग्री, रोड नेटवर्क, और एयरलिफ्ट जैसी जरूरी चीजों पर असर पड़ता है.
राजनीतिक फायदे के लिए सैन्य तैयारी
एक मजबूत और संगठित सेना सिर्फ जंग नहीं लड़ती, वह देश को राजनीतिक फायदा भी दिलाती है. जब सेना का मनोबल ऊंचा होता है और वह दबाव में भी काम करती है, तब सरकार के पास फैसला लेने के लिए वक्त होता है. यही असली रणनीतिक ताकत है. इसलिए भारत को भारी सैन्य शक्ति नहीं, बल्कि न्यूनतम और असरदार डिटरेंस की जरूरत है. हमें ऐसा सिस्टम चाहिए जो चीन को साफ-साफ संदेश दे: “अगर कुछ किया तो जवाब मिलेगा और वो जवाब आसान नहीं होगा.”
अब कल्पना और चतुराई का वक्त है
चीन ऐसा देश है जो चालाकी और भ्रम को अपनी रणनीति का हिस्सा मानता है. वह धोखा देने की कला को कला नहीं, नीति मानता है. ऐसे में भारत को सिर्फ ताकत नहीं, कल्पना और चतुराई की जरूरत है. आज के दौर में युद्ध जमीन की जीत से नहीं, बल्कि नियंत्रण की हानि से तय होता है. भारत को अपनी रणनीति ऐसी बनानी होगी कि चीन को झटका लगे कि भारत को हिलाना आसान नहीं.