DNA Analysis: पाकिस्तान-तालिबान के बीच बातचीत करा रहे तुर्किए के प्रतिनिधियों के जरिए शहबाज सरकार ने तालिबान को संदेश भेजा है. इस संदेश में कहा गया है कि तालिबान को पाकिस्तान की सुरक्षा से जुड़ी बातों को कबूल करना चाहिए. यानी तहरीक-ए-तालिबान से समर्थन वापस लेना चाहिए. पाकिस्तान की दूसरी बड़ी डिमांड है कि बॉर्डर पर तालिबान ने जो सैन्य तैनाती बढ़ाई है उसे कम किया जाए और आखिर में कहा गया है अगर तालिबान ने ये शर्तें नहीं मानी तो काबुल में सत्ता परिवर्तन करा दिया जाएगा.शहबाज और मुनीर का मकसद तालिबान पर दबाव बढ़ाना है ताकि पश्तून बागियों को तालिबान से मिलने वाला समर्थन बंद हो जाए और पाकिस्तान में ये दोनों अपनी जीत का डंका बजा सकें. तालिबान को लेकर अचानक पाकिस्तान की नीति किस हद तक बदल गई है. ये समझने के लिए आपको पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का एक हालिया बयान सुनना चाहिए. जिस तालिबान को पाकिस्तान कभी इस्लामिक ब्रदर कहता था. वो आज पाकिस्तानी सरकार की परिभाषा में आतंकियों का झुंड बन गया है. तालिबान को लेकर पाकिस्तानी प्लान सिर्फ जुबानी जमाखर्च तक सीमित नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान के अंदर पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी ISI एक नया एंटी तालिबान फ्रंट खड़ा करने की भी कोशिश कर रही है. तालिबान को सत्ता से हटाने के लिए पाकिस्तान ने किन किरदारों पर दांव खेला है, अब हम आपको उनकी जानकारी देने जा रहे हैं.
तालिबान के खिलाफ नापाक साजिश
इसी साल अगस्त के महीने में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने ताजिकिस्तान के साथ अपने इंटेलिजेंस समझौते को आगे बढ़ाया है. ताजिकिस्तान के जरिए ISI अफगानिस्तान में मौजूद अहमद शाह मसूद के लड़ाकों तक पहुंचना चाहती है. मसूद के लड़ाके लगातार तालिबान विरोधी रहे हैं. पाकिस्तान ने उज्बेक लड़ाकों के सरदार अब्दुल रशीद दोस्तम से भी संपर्क साधा है. दोस्तम और तालिबान के बीच वर्ष 2023 से तनाव बढ़ा हुआ है. वाखन कॉरीडोर के इलाके में तालिबान को चुनौती देने के लिए ISI ने गुलबुद्दीन हेकमतयार के हिज्ब-ए-इस्लामी से भी संपर्क साधा है. यानी मुनीर का मकसद अफगानिस्तान के अंदर दोबारा गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा करना है. मुनीर ने तालिबान को घेरने का प्लान तैयार किया है और इसी प्लान को फुलप्रूफ मानकर पाकिस्तान काबुल में सत्ता परिवर्तन की धमकी दे रहा है लेकिन बड़ी सच्चाई ये है कि चाहे वो अहमद मसूद हो या फिर अब्दुल रशीद दोस्तम. इन सभी का प्रभाव अफगानिस्तान के सुदूर इलाकों में हैं. इनमें से कोई भी मिलिशिया या सरदार काबुल पर हमला करके तालिबान की सत्ता बदलने का दम-खम नहीं रखता. शायद तालिबान को भी ऐसे किसी पाकिस्तानी प्लान की भनक लग चुकी थी. इसी वजह से युद्ध विराम को लेकर चल रही बातचीत में तालिबान ने एक ऐसा प्रस्ताव रखा है जिसने पाकिस्तान को भी चौंका दिया है.
टीपीपी लेगा बदला
तालिबान का कहना है कि युद्ध विराम के लिए वो तहरीक-ए-तालिबान को पाकिस्तान बॉर्डर से दूर करने के लिए राजी है. तालिबान के प्रतिनिधियों ने कहना है कि वो पश्तून बागियों को उत्तरी अफगानिस्तान में शिफ्ट करेंगे. उत्तरी अफगानिस्तान यानी वो इलाके जहां तालिबान विरोधी मिलिशिया मौजूद हैं. इस तरह TTP की शक्ल में तालिबान उन गुटों के सामने एक चुनौती खड़ा कर देगा, जिन्हें पाकिस्तान अपने साथ साधने की कोशिश कर रहा है.
ये शहबाज और मुनीर को भी पता है अगर तहरीक-ए-तालिबान उत्तरी अफगानिस्तान पहुंच गया तो तालिबान पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान के पास कोई हथियार या यूं कहें कि कोई गठबंधन नहीं बचेगा. मुनीर और शहबाज काबुल में तख्तापलट करना चाहते हैं लेकिन पाकिस्तान में हालात इशारा देते हैं कि मुनीर और शहबाज की भी कुर्सी जा सकती है. पाकिस्तान में पंजाब प्रांत को छोड़ दें तो बाकी हर जगह बगावत की आग सुलग रही है. इन्हीं बागियों ने आज एक ऐसा दावा किया है जिसने पाकिस्तानी सरकार और फौज को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
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बलूचिस्तान में पंचायत
पाकिस्तान से आजादी मांग रहे बलोच बागियों के एक गुट ने दावा किया है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज ने केमिकल वेपन यानी रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है. इस बयान में कहा गया है कि बलूचिस्तान के जिन 6 शहरों पर पाकिस्तानी फौज ने ड्रोन अटैक किए थे. वहां रासायनिक हथियारों में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री के संकेत मिले हैं. बलोच गुटों ने इस मामले की इंटरनेशनल इन्वेस्टीगेशन होने की मांग भी उठाई है.अगर जांच हुई और उसमें रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का दावा सही साबित हुआ तो ये पाकिस्तान में जारी बगावत को तेजी से भड़का सकता है. एक तरफ बलोच और दूसरी तरफ पश्तून बागी अपने हथियारों और हौसले से पाकिस्तानी फौज को धूल चटा रहे हैं तो अब पश्तून नेताओं के अंदर भी पाकिस्तान के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा है. अब से 24 घंटे पहले बलूचिस्तान के क्वेटा में पश्तूनों की एक जिर्गा यानी पंचायत हुई थी. बगावत के इन शोलों के साथ ही साथ पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती भारत और तालिबान के बीच बेहतर होते रिश्ते भी बन रहे हैं. कुछ ही वक्त पहले तालिबान के विदेश मंत्री भारत आए थे और अब तालिबान के वाणिज्य मंत्री भारत यात्रा पर हैं. भारत के प्रति तालिबान का ये बदलता रवैया बताता है कि अब पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब मिल रहा है. सालों तक पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को कभी सोवियत हमले तो कभी अमेरिकी हमलों का हवाला देकर दहशत में रखा है. अब तालिबान भारत जैसी शक्ति के साथ आगे बढ़कर पाकिस्तानी सरकार और फौज की दिलों की धड़कन बढ़ा रहा है. इसी वजह से कहा जा रहा है कि शहबाज और मुनीर को काबुल की नहीं बल्कि इस्लामाबाद की कुर्सी की फिक्र करनी चाहिए.

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