सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम और असामान्य आदेश में एक व्यक्ति को अपने माता-पिता से अलग पत्नी और बेटी के साथ रहने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवाद की जड़ पति के माता-पिता का अत्यधिक दखल और प्रभाव प्रतीत होता है, जिसके चलते पति-पत्नी के रिश्ते में लगातार तनाव बना हुआ है. अदालत के अनुसार, यह व्यवस्था दंपति को अपना रिश्ता दोबारा संवारने का अवसर देने के लिए जरूरी है.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने पिछले हफ्ते दिए अपने आदेश में कहा कि पति अपने माता-पिता के ‘पूरी तरह नियंत्रण में है’ और कोई भी स्वतंत्र फैसला लेने की स्थिति में नहीं है. इस कारण पत्नी और उनकी नौ वर्षीय बेटी खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थीं. बेंच ने सभी पक्षकारों से बातचीत के बाद यह टिप्पणी की.
कोर्ट ने क्यों दिया यह आदेश?
अदालत ने साफ शब्दों में कहा, ‘पहली नजर में दंपति के वैवाहिक जीवन में विवाद की मुख्य वजह पति के माता-पिता का हस्तक्षेप प्रतीत होता है.’ इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि पति, पत्नी और उनकी बेटी अब घर की पहली मंजिल पर अलग रहना शुरू करेंगे. अदालत ने यह भी साफ किया कि पति इस आदेश से इनकार नहीं कर सकता और उसे हर हाल में इस व्यवस्था का पालन करना होगा.
यह मामला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पिछले साल के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील से जुड़ा है. पत्नी ने हाईकोर्ट में भरण-पोषण की मांग के साथ-साथ पति और उसके परिवार पर प्रताड़ना, दुर्व्यवहार और मारपीट के आरोप लगाए थे. इसी के चलते तलाक और घरेलू हिंसा से संबंधित अलग-अलग कानूनी कार्यवाहियां भी चल रही हैं.
माता-पिता को लेकर क्या आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे विवाद को सुलझाने के लिए सभी संबंधित पक्षों से विस्तार से बातचीत की. कोर्ट ने पति, पत्नी, पति की मां, पत्नी के माता-पिता और उनकी नौ साल की बेटी से सुप्रीम कोर्ट के कमिटी रूम में बातचीत की. अदालत ने बच्ची को एक ‘होशियार बच्ची’ बताया, जो चौथी क्लास में पढ़ रही है. पति की ओर से इस मामले में अधिवक्ता पद्मेश मिश्रा ने पैरवी की.
सुलह और समझौते पर जोर देते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि अलग रहने की यह व्यवस्था कम से कम तीन महीने तक जारी रहनी चाहिए. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पत्नी के माता-पिता अपनी नातिन से मिलने आना चाहें तो उन्हें घर आने की पूरी अनुमति होगी.
हालांकि, कोर्ट ने यह भी उम्मीद जताई कि परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के प्रति सम्मान का व्यवहार करेंगे. अलग रहने के बावजूद अदालत ने पत्नी से अपेक्षा जताई कि यदि सास-ससुर बीमार पड़ते हैं या उन्हें रोजमर्रा की किसी सहायता की जरूरत होती है, तो वह उनकी मदद करेगी. आदेश में कहा गया, ‘हम यह भी उम्मीद करते हैं कि पत्नी अपने सास-ससुर की तब मदद करेगी जब वे बीमार हों या उन्हें किसी घरेलू सहायता की आवश्यकता हो.’
किस बात से जज भी रह गए हैरान?
सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आने पर जज भी हैरान रह गए. अदालत को बताया गया कि पत्नी गर्भवती है. इस पर कोर्ट ने पति को स्पष्ट निर्देश दिए कि वह गर्भावस्था के दौरान पत्नी की पूरी चिकित्सकीय देखभाल सुनिश्चित करे, नियमित रूप से स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाए और इस दौरान ससुराल पक्ष से किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो.
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि पति-पत्नी के बीच चल रहे सभी दीवानी और आपराधिक मुकदमों पर अगली सुनवाई तक रोक रहेगी. इसके साथ ही पत्नी के माता-पिता और भाइयों को भी निर्देश दिया गया है कि वे दंपति के वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की बाधा या परेशानी खड़ी न करें.
इस मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल 2026 को होगी. अदालत ने सभी पक्षकारों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया है, हालांकि पत्नी को गर्भावस्था के कारण व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी गई है.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हमें उम्मीद है कि सभी पक्ष हमारे आदेश का पालन करेंगे और एक-दूसरे के लिए आगे कोई नई समस्या पैदा नहीं करेंगे.’ अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह पूरा आदेश किसी कानूनी टकराव को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि दंपति और बच्चों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए पारित किया गया है.
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने पति से यह भी अपेक्षा जताई कि वह गर्भावस्था के दौरान पत्नी की ‘पूरी और सर्वोच्च स्तर की देखभाल’ करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि उसे किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक परेशानी न हो.

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