Last Updated:October 08, 2025, 06:35 IST
Cough Syrup Death: कोल्ड्रिफ (Coldrif) कफ सिरप से कई मासूम बच्चों की मौत के बाद चौंकाने वाला सच सामने आया है. Sresan Pharmaceutical एक ऐसा सच, जिस पर अधिकारी 14 साल से आंखें मूंदे हुए थे.

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 15 मासूम बच्चों की जान ले लेने वाले कोल्ड्रिफ (Coldrif) कफ सिरप की हकीकत बेहद चौंकाने वाली है. यह सिरप बनाने वाली कंपनी स्रेशन फ़ार्मास्यूटिकल (Sresan Pharmaceutical) पिछले 14 साल से तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में एक जर्जर और गंदगी से भरी इमारत से काम कर रही थी.
इस फैक्ट्री में न दवा बनाने की बुनियादी सुविधाएं थीं, न साफ-सफाई का कोई इंतजाम, न ही कानून के मुताबिक निरीक्षण की प्रक्रिया अपनाई जाती थी. इतनी खतरनाक लापरवाही के बावजूद कंपनी को 2011 से लाइसेंस मिला हुआ था और दवाइयों का उत्पादन जारी रहा.
मौत के बाद खुला कारखाने का काला सच
छिंदवाड़ा में बच्चों की मौत की खबर ने आखिरकार तमिलनाडु की दवा नियंत्रण एजेंसियों को जगा दिया. मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोल विभाग के पत्र के बाद तमिलनाडु टीम ने 1 अक्टूबर को जांच शुरू की और 2 अक्टूबर की छुट्टी के बावजूद अगले ही दिन जांच कर 3 अक्टूबर को फैक्ट्री को सील कर दिया.
जांच रिपोर्ट में 364 गंभीर और बड़े पैमाने की खामियां पाई गईं. इनमें कच्चे माल की खरीद से लेकर दवा बनाने, जांचने और पैकिंग तक लगभग हर चरण में नियमों की अनदेखी सामने आई.
जहरीला केमिकल बना मौत की वजह
प्रयोगशाला जांच में कोल्ड्रिफ सिरप में 48.6% डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) पाया गया. यह एक औद्योगिक केमिकल है, जो शरीर में पहुंचने पर गुर्दे (किडनी) को नुकसान पहुंचाता है और कई बार मौत का कारण भी बन सकता है.
तमिलनाडु के डिप्टी डायरेक्टर ऑफ ड्रग्स कंट्रोल एस. गुरुबरेथी ने कंपनी को दवा के निर्माण, बिक्री और वितरण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया.
गंदगी और लापरवाही का अड्डा निकला प्लांट
सीनियर ड्रग इंस्पेक्टर पी. नितिन कुमार और आर. ससिकुमार ने जांच में पाया कि कंपनी ने गैर-फार्मास्यूटिकल ग्रेड का प्रोपलीन ग्लाइकोल खरीदा था और उसकी कोई बिल या इनवॉइस तक नहीं थी. यहां दवाइयां गलियारों में रखी जा रही थीं, जहां एयर हैंडलिंग यूनिट, पेस्ट कंट्रोल, साफ पानी की व्यवस्था कुछ भी नहीं था. फैक्ट्री में सफाई और सैनिटाइजेशन के कोई इंतजाम नहीं थे. मशीनें जंग लगी हुई, टूटी-फूटी और लीक कर रही थीं. पैकिंग और लैबलिंग भी अस्वच्छ जगहों पर की जा रही थी.
रिपोर्ट में दर्ज है कि ऐसे माहौल में बनी दवाएं संक्रमण और दूषण (contamination) के खतरे से भरी थीं.
14 साल से सो रहे थे जिम्मेदार अधिकारी
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 2011 में लाइसेंस मिलने के बाद से अब तक किसी ने इस यूनिट की गंभीरता से जांच नहीं की. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व राज्य ड्रग कंट्रोलर एम. भास्करण ने सवाल उठाया, ‘अगर एक बार की जांच में इतनी खामियां मिलीं, तो इतने सालों तक यह फैक्ट्री चलने कैसे दी गई?’ उन्होंने बताया कि कानून के तहत हर साल फैक्ट्री का निरीक्षण अनिवार्य है, लेकिन अधिकारियों ने कभी ध्यान नहीं दिया.
भास्करण ने यह भी खुलासा किया कि कंपनी के मालिक जी. रंगनाथन पहले भी विवादों में रह चुके हैं. 1980 के दशक में उन्हें लाइसेंस के बिना खून की कमी की दवा बेचने के आरोप में पकड़ा गया था. इसके बावजूद कंपनी को बाद में लाइसेंस मिल गया और कामकाज चलता रहा.
दवा नियंत्रण विभाग के अनुसार, एमपी से सूचना मिलते ही उन्होंने 48 घंटों के भीतर जांच, सैंपलिंग और उत्पादन पर रोक की कार्रवाई पूरी कर दी. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थानीय ड्रग इंस्पेक्टरों ने समय पर जिम्मेदारी निभाई होती, तो मासूम बच्चों की जान बचाई जा सकती थी.
मासूमों की मौत से उठे सवाल
छिंदवाड़ा के 17 बच्चों की मौत ने न सिर्फ दवा बनाने वाली कंपनी, बल्कि नियामक तंत्र की नाकामी को भी उजागर कर दिया है. मासूमों के परिजनों की पीड़ा यह सवाल उठाती है कि आखिर इतने वर्षों तक गंदगी और जहरीली दवाओं का कारोबार चलता रहा और जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे क्यों बैठे रहे?
लोग अब दोषी कंपनी के मालिक के साथ-साथ लापरवाह अफसरों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, ताकि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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Location :
Chennai,Tamil Nadu
First Published :
October 08, 2025, 06:35 IST