राष्ट्रपति भवन का सीक्रेट जोन: जहां शाही घोड़े रहते हैं, पहली बार अंदर का नजार

46 minutes ago

Last Updated:November 22, 2025, 16:22 IST

राष्ट्रपति भवन के PBG अस्तबलों में फर्स्‍टपोस्‍ट को दुर्लभ एक्सेस मिला. यह 250 साल पुरानी माउंटेड यूनिट के सेरिमोनियल घोड़े हैं. ये अनुशासन और नेतृत्व परंपरा का जीवंत प्रतीक है. साल 1773 में स्थापित यह दस्ता विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के स्वागत में भारत की पहली झलक तय करता है. विराज जैसे दिग्गज घोड़े इसकी शान हैं. PBG अब पोलो परंपरा भी जगा रहा है.

आपने राष्‍ट्रपति भवन की बहुत से तस्‍वीरें देखी होंगी लेकिन क्‍या कभी अंदर मौजूद प्रेसिडेंट के घुड़सवार दस्‍ते को देखा है. किस तरह रॉयल अंदाज में राष्‍ट्रपति भवन के अंदर मौजूद अस्‍तबल में उन्‍हें रखा जाता है. नेटवक-18 ग्रुप की वेबसाइट फर्स्‍टपोस्‍ट की टीम ने राष्ट्रपति भवन के अत्यंत सुरक्षित क्षेत्र प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड यानी PBG का दौरा किया. वेबसाइट को लाइंस और उनके विशिष्ट अस्तबलों तक दुर्लभ पहुंच मिली. यहीं देश की सबसे पुरानी माउंटेड यूनिट अपनी रोजमर्रा की परंपराओं को जीवित रखती है. गेट नंबर 24 के भीतर स्थित इन अस्तबलों में घोड़े सिर्फ सैन्य संपत्ति नहीं बल्कि विरासत के जिंदा प्रतीक हैं. यहां से वही शान और अनुशासन पैदा होता है जो दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों के सामने भारत की पहचान बनता है. इस स्थान का भावनात्मक और संस्थागत महत्व PBG की आत्मा है.

राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड देश की सबसे पुरानी सैन्य इकाई है जिसकी शुरुआत 1773 में राजा चैत सिंह द्वारा 50 सवार और 50 घोड़ों की टुकड़ी उपलब्ध कराने से हुई. तब यह वॉरेन हेस्टिंग्स के लिए बनाई गई थी. आज यह ‘राइट ऑफ द लाइन’ की प्रतिष्ठा रखती है और स्वतंत्र भारत में 1950 से राष्ट्रपति की औपचारिक सुरक्षा का प्रतीक है. विदेशी राष्ट्राध्यक्षों की आगवानी से लेकर राष्ट्रीय आयोजनों तक, इसकी सेरिमोनल भूमिका भारतीय लोकतंत्र की गरिमा का पहला दृश्य प्रस्तुत करती है, जिसे दुनिया सबसे पहले देखती है.

PBG की पहचान उसके सेरिमोनियल घोड़े हैं जो किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के स्वागत में सबसे प्रमुख दृश्य बनते हैं. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सामने राष्ट्रीय सलामी, दो-ढाई मिनट का परफेक्ट एस्कॉर्ट और घोड़ों की एक जैसी चाल–हर तत्व भारत की मर्यादा दिखाता है. कमांडेंट कर्नल अमित बेरवाल के अनुसार इस पल में भारत कैसा दिखता है, यह पूरी तरह इन घोड़ों के संतुलन, अनुशासन और भव्यता पर निर्भर करता है. पूरी दुनिया के सामने भारत की पहली झलक इन्हीं माउंट्स की पेशकश से तय होती है.

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PBG की पहचान उसके सेरिमोनियल घोड़े हैं जो किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के स्वागत में सबसे प्रमुख दृश्य बनते हैं. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सामने राष्ट्रीय सलामी, दो-ढाई मिनट का परफेक्ट एस्कॉर्ट और घोड़ों की एक जैसी चाल–हर तत्व भारत की मर्यादा दिखाता है. कमांडेंट कर्नल अमित बेरवाल के अनुसार इस पल में भारत कैसा दिखता है, यह पूरी तरह इन घोड़ों के संतुलन, अनुशासन और भव्यता पर निर्भर करता है. पूरी दुनिया के सामने भारत की पहली झलक इन्हीं माउंट्स की पेशकश से तय होती है.

PBG में शामिल होने वाला घोड़ा सामान्य नहीं होता. ये हनोवरियन और वार्मब्‍लड नस्ल के बड़े, संतुलित और आकर्षक माउंट्स हैं, जो भीड़, कैमरे, तेज आवाज और तनाव के बीच भी शांत रहते हैं. इनका कद–काठी पोलो हॉर्स से लगभग 250 किलो अधिक होता है. इसलिए वे तेजी और फुर्ती की जगह स्थिरता और गरिमा के लिए बनाए जाते हैं. सेरिमोनियल प्रदर्शन में इनकी धीमी, एक-सी चाल और सामूहिक तालमेल ही वह प्रभाव पैदा करती है जिसे देखकर कोई भी अतिथि भारत की अनुशासित ताकत से प्रभावित हो.

इन अस्तबलों का सबसे चमकता सितारा 25 वर्षीय विराज है. ये PBG का सबसे सम्मानित और चर्चित सेरिमोनियल घोड़ा है. उसने 13 गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लिया और 45–50 दिनों की कठोर अभ्यास दिनचर्या झेली. उसकी श्रेष्ठ सेवाओं के लिए उसे COAS रिकमंडेशन कार्ड मिला और 26 जनवरी समारोह में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने मंच पर उसे व्यक्तिगत रूप से थपथपाकर सम्मानित किया. 22 की उम्र में रिटायर होने के बाद भी उसकी प्रतिष्ठा बनी हुई है और वह आज भी PBG की गौरवशाली परंपरा का जीवंत प्रतीक है.

आधुनिक युद्ध तकनीक के बावजूद घुड़सवारी को सेना नेतृत्व प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा मानती है. कर्नल बेरवाल बताते हैं कि हार्स राइडिंग में डर पर काबू, आत्मविश्वास, संवेदनशीलता, धैर्य और सूझबूझ की गुणवत्ता पनपती है. बिना बोले संवाद करने वाले पशु के साथ तालमेल विकसित करने से नेतृत्व की वह सूक्ष्म क्षमता बनती है जो किसी कमांडर को चाहिए. मसूरी आईएएस अकादमी तक में घुड़सवारी इसी कारण शामिल है. अच्छे घुड़सवार अक्सर शांत, संतुलित और दयालु माने जाते हैं, उनका व्यवहार घोड़ों के साथ बने भावनात्मक रिश्ते को दर्शाता है.

PBG में polo सिर्फ खेल नहीं, बल्कि घुड़सवार सेना की पुरानी युद्ध परंपरा के विस्तार का तरीका है. यह वही खेल है जिसने सदियों तक भारतीय सेना में सवारों और घोड़ों की जंग जैसी परिस्थितियों में प्रतिक्रिया क्षमता विकसित की. तेज मोड़, त्वरित रोक, संतुलन और क्षणभर में निर्णय—ये सभी कौशल युद्धक्षेत्र प्रशिक्षण के समान माने जाते हैं. कर्नल बेरवाल के नेतृत्व में अब यूनिट में पोलो को फिर से जीवंत किया जा रहा है. राष्ट्रपति भवन परिसर में हर साल खेला जाने वाला प्रेसिडेंट पोलो कप इसी निरंतरता का मुख्य प्रतीक है.

पोलो खेल के लिए सेरिमोनियल माउंट्स नहीं चल सकते क्योंकि वे भारी और स्थिर होते हैं. पोलो घोड़े बेहद फुर्तीले, हल्के, तेज और तुरंत मुड़ने–रुकने की क्षमता वाले होने चाहिए. इसलिए PBG अब नए ब्रीडिंग कार्यक्रम में शुद्धरक्त लाइनों पर ध्यान दे रहा है. सेना पहले अपनी नस्ल के घोड़े ही प्रयोग करती थी. पर अब प्रतियोगी स्तर बढ़ाने के लिए तेज और चुस्त ब्‍लड-लाइन शामिल की जा रही हैं. उद्देश्य यह है कि PBG के खिलाड़ी वही गति और स्तर हासिल कर सकें जो शहर के शीर्ष पोलो क्लबों में देखने को मिलता है.

PBG के अस्तबलों में सवार और घोड़े का रिश्ता पूरी तरह भरोसे और जिम्मेदारी पर टिका है. कर्नल बेरवाल कहते हैं कि घोड़े की देखभाल बच्चे जैसी होती है. वह पूरी तरह मानव पर निर्भर है. घोड़े के पास शिकारी पशुओं जैसी पंजे या कैनाइन नहीं होते, उसका स्वभाव लड़ने का नहीं, भागने का है. इसलिए तनावपूर्ण परिस्थितियों में उसकी सुरक्षा और दिशा राइडर ही तय करता है. दोनों के बीच थोड़ा सा भी डिस्‍कनेक्‍ट होने पर प्रदर्शन गिर जाता है और घोड़ा असुरक्षित हो जाता है. यही कारण है कि PBG में बॉन्डिंग सर्वोच्च प्राथमिकता है.

सेवा पूरी होने पर PBG के घोड़ों को कभी बेचा या मारकर हटाया नहीं जाता. यह सबसे बड़ा भ्रम है जिसे कर्नल बेरवाल स्पष्ट रूप से नकारते हैं. सेना के पुराने घोड़े वापस अपने डिपो भेजे जाते हैं, जहां वे बिना काम के आरामदायक जीवन बिताते हैं. पूरा राशन, खुली चराई और बिना दबाव के वृद्धावस्था. वे शांति से प्राकृतिक मृत्यु पाते हैं और अंतिम सम्मान के तौर पर उन्हें दफनाया जाता है. यह परंपरा इस घुड़सवार रेजिमेंट की उस संवेदनशीलता को दर्शाती है जो घोड़े को सिर्फ संपत्ति नहीं, बल्कि सेवा-सहयोगी मानती है.

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First Published :

November 22, 2025, 16:22 IST

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