नई दिल्ली. अजीब बात है कि अच्छी बातों यानी सकारात्मकता की चर्चा कम ही होती है और बुरी या नकारात्मक बातों पर मीडिया कई-कई दिन तक डिबेट कराता रहता है. अभी दीपावली पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 70 साल या इससे ज्यादा उम्र के सभी बुजुर्गों को पीएम आयुष्मान योजना के दायरे में लाने का ऐलान कर उन्हें सेहतमंद रहने का तोहफा दिया, लेकिन जिस दिन यह ऐलान किया गया, सिर्फ उस दिन ही इसे ले कर हेडलाइन बनीं. बाद में मीडिया स्वभावत: इसे भले ही भूल गया हो, देश के बुजुर्गों के बीच पीएम की ओर से दी गई दीपावली की इस सौगात को ले कर चर्चा जरूर हो रही है.
हर बार की तरह दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की सरकारें यह योजना लागू नहीं कर रही हैं. संभव है कि भविष्य में सभी गैर-बीजेपी राज्य सरकारें केंद्र की इस योजना को लागू करने से इनकार कर दें. केंद्र सरकार की इस योजना का लाभ एक अनुमान के अनुसार देश के करीब छह करोड़ बुजुर्गों को मिलेगा. वे आयुष्मान वय वंदन कार्ड बनवा कर सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम से जुड़े सभी सरकारी अस्पतालों से पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त में करवा सकेंगे.
केंद्र से टकराव की राजनीति
अब बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली औऱ पश्चिम बंगाल की सरकारों ने वहां रह रहे बुजुर्गों को इस बड़ी और लाभकारी योजना से अपने बुजुर्गों को दूर क्यों रखा है? जवाब बहुत सीधा सा है कि केंद्र से टकराव की राजनीति ही इसका मूल कारण है. लेकिन क्या कुछ राज्यों में दलगत राजनैतिक मतभेदों की वजह से सभी केंद्रीय कल्याणकारी योजनाओं के लाभों से लोगों को वंचित रखा जाना सही है? मेरी राय में तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है.
वोट बैंक की राजनीति
हो सकता है, दिल्ली और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने बुजुर्गों की सेहत से जुड़े बीमा कवर की और ज्यादा बेहतर विकल्पों वाली योजना लागू कर रखी हों, लेकिन लोग अगर उस योजना का फायदा उठा रहे हैं, तब भी उन्हें केंद्र की ओर से मिलने वाले पांच लाख रुपये के सेहत बीमा कवर से दूर रखना क्या अच्छी और नागरिकों के हित की बात हो सकती है? केंद्र की कल्याणकारी योजनाएं लागू नहीं करने के मूल में वोट बैंक की राजनीति ही है. क्या दिल्ली और पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टियों को लगता है कि अगर वे केंद्र की योजनाएं लागू करेंगी, तो वहां भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ सकता है? अगर कुछ राजनैतिक पार्टियां ऐसा सोचती हैं, तो उनकी सोच बेहद संकीर्ण और गैर-लोकतांत्रिक ही कही जा सकती है.
सभी भारत के नागरिक
यह सही है कि भारतीय लोकतंत्र के संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के अपने-अपने स्पष्ट अधिकार हैं. लेकिन राज्यों में रह रहे लोग क्या राज्यों के नागरिक हैं या भारत गणराज्य के? जाहिर है कि भारत में वैध रूप से रह रहे सभी लोग भारतीय नागरिक ही हैं. राज्यों की उप-नागरिकता जैसी कोई व्यवस्था हमारे तंत्र में नहीं है. इसलिए केंद्र की सभी कल्याणकारी योजनाएं दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर राज्य सरकारों को उदार मन से लागू करनी चाहिए. केंद्र की योजना में कोई खामी अगर आपको लगती है, तो आप उसे अपनी ओर से सुधार कर भी लागू कर सकते हैं. योजना में अगर कोई व्यावहारिक खामी है, तो केंद्र से बात कर उसमें सुधार कराया जा सकता है.
केंद्र-राज्य संबंधों में गांठ
इसलिए अब राजनैतक दलों को मिल-बैठ कर दलगत राजनीति की वजह से केंद्र-राज्य संबंधों में बन गई गांठों को नए सिरे से सुलझाने, परिभाषित करने की जरूरत है. क्यों चंद भारतीय नागरिकों को केंद्र की ओर से मिलने वाले फायदों से वंचित रखा जाए? यह भले ही संवैधानिक व्यवस्था के तहत सही हो सकता है, लेकिन अंतिम तौर पर तो लोगों के साथ नाइंसाफी ही है. बुजुर्गों को दीपावली के तोहफे के ऐलान से पहले करीब 35 करोड़ लोग पीएम आयुष्मान योजना का फायदा उठा रहे थे. अब यह संख्या 40 करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है. जहां तक दिल्ली का सवाल है तो पता चला है कि राजधानी के सभी बीजेपी सांसदों ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर पीएम आयुष्मान योजना का लाभ 70 या उससे ऊपर की उम्र के बुजुर्गों को दिलाए जाने की गुहार लगाई है.
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खुला संवाद हो
हो सकता है कि संवैधानिक व्यवस्था का हवाला दे कर हाई कोर्ट इसमें दखल से इनकार कर दे या फिर अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर दिल्ली में भी योजना लागू करने का आदेश दे दे. लेकिन यह तो होना ही चाहिए कि ऐसे मामलों में राज्य और केंद्र सरकारें खुल कर संवाद करें. ऐसे मामलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. यह पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर राजनीति जैसा ही मामला है. जब कीमतें बढ़ती हैं, तो केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए और गैर-बीजेपी राज्य सरकारें एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. लेकिन कीमतों का बोझ तो आम आदमी को ही बर्दाश्त करना पड़ता है.
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FIRST PUBLISHED :
November 4, 2024, 16:18 IST