दिवाली के बाद इस महानगर में 'गर्भ पर संकट', खचाखच भरने लगे हैं अस्‍पताल

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Last Updated:October 23, 2025, 11:15 IST

दिवाली के बाद इस महानगर में 'गर्भ पर संकट', खचाखच भरने लगे हैं अस्‍पतालपश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में दिवाली और काली पूजा के दौरान पटाखों के इस्‍तेमाल का बुरा असर देखने को मिला है. (फाइल फोटो/PTI)

Diwali Crackers Health Impact: दिवाली और काली पूजा के बाद कोलकाता में हवा और ध्‍वनि प्रदूषण (Air and Noise Pollution) के बढ़े स्‍तर ने लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य पर गंभीर असर डालना शुरू कर दिया है. शहर के कई अस्‍पतालों में सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की बाढ़ आ गई है. वहीं, डॉक्‍टरों ने गर्भवती महिलाओं और आईवीएफ मरीजों में दिक्‍कतें बढ़ने की चेतावनी दी है. दिवाली के 2-3 दिनों के भीतर अस्‍पतालों में आउट पेशेंट (ओपीडी) और इनडोर मरीजों की संख्‍या में 20 से 25 फीसदी तक इजाफा देखा गया है. डॉक्‍टरों के अनुसार, आतिशबाजी से निकलने वाले धुएं और जहरीली गैसों ने हवा को ‘खतरनाक’ बना दिया है, जिससे सांस के मरीज, बुजुर्ग, बच्‍चे और गर्भवती महिलाएं सबसे ज्‍यादा प्रभावित हो रही हैं.

आईएलएस हॉस्पिटल (दमदम) के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. मृण्मय मित्रा ने बताया कि दिवाली के दौरान श्‍वास रोगों के मरीजों में 10-15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि ओपीडी विजिट्स में 20 प्रतिशत का उछाल दर्ज हुआ. डॉक्‍टर मित्रा ने बताया कि ज्‍यादातर मरीज अस्‍थमा, सीओपीडी, सीने में जकड़न, घरघराहट और नाक बंद होने की शिकायत लेकर आए. आतिशबाजी से निकला धुआं और सल्‍फर गैस सांस की बीमारियों वालों के लिए बेहद खतरनाक माहौल बनाते हैं. टेक्‍नो इंडिया डामा हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्‍टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. सौम्‍य सेनगुप्‍ता के अनुसार, त्‍योहार के तीन दिनों में अस्‍थमा और सीओपीडी के 40 से अधिक मरीज आए, जबकि सामान्य दिनों में यह संख्‍या 10 से 15 के बीच रहती है. डॉक्‍टर सेनगुप्‍ता ने कहा, ‘आतिशबाजी से निकलने वाली सल्फर डायऑक्साइड और एथिल-बेंजीन जैसी गैसें हवा की गुणवत्‍ता को बेहद खराब कर देती हैं. मरीजों में गले में खराश, छींक और सांस लेने में तकलीफ के लक्षण आम रहे.’

गर्भवती महिलाओं और IVF मरीजों पर असर

अब्‍हा सर्जीकल सेंटर के कंसल्‍टेंट डॉ. सौरव भूइन ने बताया कि दिवाली के बाद गर्भवती और आईवीएफ मरीजों में 15-20 फीसदी तक शिकायतें बढ़ी हैं. उन्‍होंने कहा, हमें कई ‘मरीज सांस की तकलीफ, ब्‍लड प्रेशर बढ़ने, नींद न आने और प्री-टर्म लेबर के लक्षणों के साथ मिले. हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 के अत्‍यधिक स्‍तर न केवल फेफड़ों में जाते हैं बल्कि यह प्‍लेसेंटा की बाधा को पार कर भ्रूण को भी प्रभावित कर सकते हैं.’ उन्‍होंने कहा कि तेज शोर वाले पटाखों से गर्भवती महिलाओं में तनाव और अनिद्रा की शिकायतें भी सामने आईं, जो गर्भावस्‍था को और जटिल बना सकती हैं.

सावधानी जरूरी

मणिपाल हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. देब्रज जश ने बताया कि काली पूजा से पहले की तुलना में अब ओपीडी मरीजों की संख्‍या में 25 फीसदी और भर्ती मरीजों में 5-10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. उन्‍होंने बताया कि ज्‍यादातर मरीज पहले से सांस की बीमारी जैसे अस्‍थमा, सीओपीडी या इंटरस्‍टीशियल लंग डिजीज से पीड़ित थे. बच्‍चों और बुजुर्गों में लक्षण अधिक गंभीर हैं. हालांकि, कुछ डॉक्‍टरों का कहना है कि गर्भवती महिलाएं इस दौरान सावधानी बरतती हैं, इसलिए गंभीर मामलों की संख्‍या सीमित रही.

डॉक्‍टरों की अपील

डॉक्‍टरों ने एक स्‍वर में कहा कि त्‍योहारों में आतिशबाजी पर सख्‍ती से नियंत्रण जरूरी है और लोगों को पर्यावरण अनुकूल व शांत तरीके से उत्‍सव मनाना चाहिए. डॉ. मित्रा ने सलाह देते हुए कहा कि जिन्‍हें सांस की बीमारियां हैं, वे N-95 मास्‍क पहनें, भीड़भाड़ और प्रदूषण के वक्‍त बाहर निकलने से बचें और अपनी दवाएं नियमित रूप से लें. गर्भवती महिलाओं को उन्‍होंने घर के अंदर रहने, एयर प्‍यूरीफायर इस्‍तेमाल करने और चक्‍कर या सांस फूलने जैसी परेशानी होने पर तत्‍काल डॉक्‍टर से संपर्क करने की सलाह दी. दिवाली के बाद कोलकाता के कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 200 से ऊपर चला गया है. यह खतरनाक कैटेगरी में आता है. डॉक्‍टरों का कहना है कि अब समय आ गया है जब फेस्टिवल और हेल्‍थ के बीच संतुलन बनाना ही समाज की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए.

Manish Kumar

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Location :

Kolkata,West Bengal

First Published :

October 23, 2025, 11:15 IST

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