दुर्लभ ब्लड ग्रुप वालों की टेंशन अब खत्म, सरकार ने उठा लिया बड़ा कदम

4 hours ago

Last Updated:June 23, 2025, 12:32 IST

केंद्र सरकार ने दुर्लभ रक्त समूहों के दाताओं की जानकारी ई-रक्तकोष में जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की है. ICMR ने पहली राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री तैयार की है. इससे सभी लोगों को वक्त पर खून मिल सकेगा.

दुर्लभ ब्लड ग्रुप वालों की टेंशन अब खत्म, सरकार ने उठा लिया बड़ा कदम

अब दुर्लभ रक्त समूह वाले मरीजों को समय पर सही इलाज मिल सकेगा.

हाइलाइट्स

दुर्लभ रक्त समूह के दाताओं की जानकारी ई-रक्तकोष में जोड़ी गई.ICMR ने पहली राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री तैयार की.ई-रक्तकोष से दुर्लभ रक्त की उपलब्धता की जानकारी मिलेगी.

अब दुर्लभ रक्त समूह वाले मरीजों को समय पर सही इलाज मिल सकेगा. केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए राष्ट्रीय रक्त पोर्टल ई-रक्तकोष में दुर्लभ रक्त समूहों के दाताओं की जानकारी जोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस कदम से उन मरीजों को बहुत राहत मिलेगी, जिन्हें बॉम्बे फेनोटाइप (Bombay Blood Group) या अन्य दुर्लभ एंटीजन वाले रक्त की जरूरत होती है. अभी तक ऐसी स्थिति में मरीजों को पूरे देश में खून की तलाश करनी पड़ती थी जिससे कई बार जान बचाना मुश्किल हो जाता था.

दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के सेंटर फॉर रिसर्च इन मेडिकली कंप्लीकेटेड हीमोग्लोबिन पैथी (CRMHCH) ने देश की पहली राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री तैयार की है. इस रजिस्ट्री में उन रक्तदाताओं की जानकारी एकत्र की गई है, जिनका रक्त समूह सामान्य से हटकर और बहुत ही कम लोगों में पाया जाता है.

अब तक क्यों थी मुश्किल?

देशभर में इस समय 4,000 से अधिक रजिस्टर्ड ब्लड बैंक हैं, लेकिन इनकी अधिकतर जांच सिर्फ सामान्य ABO और RhD ब्लड ग्रुप तक ही सीमित रहती थी. CRMHCH की निदेशक डॉ. मनीषा मडकाइकर के मुताबिक, दुर्लभ रक्त समूह ऐसे होते हैं जो हर 1,000 में से केवल 1 व्यक्ति में पाए जाते हैं. बिना किसी राष्ट्रीय रजिस्ट्री के इस तरह के ब्लड की तलाश करना एक बड़ी चुनौती बन जाती थी. कई बार मरीज को एक राज्य से दूसरे राज्य तक भेजना पड़ता था या फिर अलग-अलग अस्पतालों से संपर्क करना पड़ता था.

क्या है ई-रक्तकोष और रजिस्ट्री का फायदा?

ई-रक्तकोष एक राष्ट्रीय डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जहां देशभर के ब्लड बैंकों से खून की उपलब्धता की जानकारी मिलती है. अब CRMHCH की दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री को इससे जोड़े जाने से यह फायदा होगा कि किसी भी ब्लड बैंक से दुर्लभ रक्त समूह के दाताओं की तुरंत जानकारी मिल सकेगी.
गंभीर मरीजों के लिए रक्त की तलाश में लगने वाला समय बचेगा. डॉक्टर और अस्पताल तत्काल फैसला ले सकेंगे और मरीज की जान बचाने की संभावना बढ़ जाएगी.

किन बीमारियों में होता है दुर्लभ रक्त की जरूरत?

थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी आनुवंशिक बीमारियों में मरीजों को विशेष प्रकार के रक्त की आवश्यकता होती है. बॉम्बे ब्लड ग्रुप जिसे Hh फेनोटाइप भी कहते हैं भारत में बेहद कम पाया जाता है और इसकी पहचान आम ब्लड टेस्ट में नहीं हो पाती.

कई बार मरीजों के शरीर में ऐसे एंटीजन बनते हैं जो सामान्य रक्त के साथ रिएक्शन कर जाते हैं. ऐसे में सिर्फ विशेष रूप से मैच किया गया रक्त ही दिया जा सकता है.

भारत में हर साल हजारों मरीजों को खून की जरूरत होती है लेकिन दुर्लभ रक्त समूह वाले मरीजों के सामने सबसे बड़ी चुनौती समय पर रक्त उपलब्धता होती है.

आगे क्या होगा?

अब सरकार और ब्लड बैंक मिलकर एक ऐसी संरचना बना रहे हैं जिससे सभी ब्लड बैंक एकीकृत रूप से काम करेंगे और मरीज को रक्त समय रहते मिल सकेगा.

डॉ. मडकाइकर के मुताबिक, भविष्य में सरकार इस रजिस्ट्री को और ज्यादा विस्तृत बनाने की योजना बना रही है. इसमें दाताओं की नियमित स्क्रीनिंग, ब्लड ग्रुप की सटीक पहचान और मरीजों तक तेजी से जानकारी पहुंचाने के लिए तकनीकी टूल्स जोड़े जाएंगे.

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

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