नीले ड्रम वाली मुस्कान और सोनम रघुवंशी गलत, पर 1.8 लाख 'कत्ल' का जिम्मेदार कौन

5 hours ago

दिल्ली. राजा रघुवंशी मर्डर केस पर सोशल मीडिया उफान पर है. कोई सोनम को कोस रहा, कोई कैंडल मार्च निकाल रहा. मीम्स बन रहे हैं, रील्स वायरल हो रही हैं, ‘सोनम को फांसी दो’ टाइप कमेंट्स की भरमार है. ठीक है, होना भी चाहिए… आखिर एक निर्दोष की जान गई है, लेकिन तब ये सोशल मीडिया कहां होता है? जब हर साल 6–9 हजार बेटियां दहेज के नाम पर मारी जाती हैं, तब अग्रेसिवनेस कहां गायब हो जाती है? पहले आप NCRB के ये आंकड़े देखिए…

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB)के डेटा के मुताबिक, पिछले 22 साल में लगभग 1,60,000 से 1,80,000 दहेज के नाम पर जानें गईं, यानी हर साल औसतन 8,000–9,000 महिलाओं की जान गई. 2022 में 6,450 हत्याएं की गईं.

NCRB डेटा पिछले 22 साल में दहेज हत्याएं

साल दहेज हत्याएं
2001–2018137,627
2017–2021 35,493, हर रोज लगभग 20 मौतें!
20226450, यानी हर दिन 18 हत्याएं

कुल मिलाकर कहा जाए तो हर साल लगभग 8000 महिलाएं दहेज के लिए मार दी गई यानी 2001-2022 के बीच 180,000 (1.8 लाख) महिलाएं दहेज के नाम पर बलि चढ़ गईं.

साल दहेज हत्याएं
20088,172
20098,383
20108,391
20118,618
20128,233
20187,167
20197,141
20206,966
20216,589

हर दिन औसतन कितनी मौतें?
इसका मतलब यह है कि हर दिन लगभग 20 बेटियां दहेज की बलि चढ़ जाती हैं. ये सिर्फ रिपोर्ट हुए केस हैं, जो FIR नहीं हुई, जो गांव-देहात में चुपचाप दबा दिए गए, वो अलग हैं.

न्याय के लिए 10–15 साल का इंतजार

दहेज मामलों में कानूनी सजा
ये हैं मुख्य धाराएं:
1. IPC 304B: दहेज हत्या के लिए
न्यूनतम सजा 7 साल, और गंभीरता ज्यादा होने पर आयु सज़ा तक

2. IPC 498A (क्रूरता): 3 साल तक जेल + जुर्माना

3. Dowry Prohibition Act, 1961: दहेज मांगने/देने पर 6 माह–1 साल जेल या जुर्माना

न्याय में कितना समय लगता है?

FIR →Chargesheet: लगभग 1–2 साल
Trial + Lower Courts: 3–5 साल
Appeal नेक्स्ट लेवल: 5–10 साल

कुल मिलाकर पूरा केस खत्म होने में 10–15 साल तक लगना आम बात है और यह सरकारी रिपोर्टों में कहा गया है. कई मामलों में ट्रायल लंबा चलता है, गवाह पलट जाते हैं, और कई बार तो आरोपी आराम से बेल पर घूमते हैं.

कुछ केस जिन्होंने हद पार कर दी….

1. डॉ. विश्वमाया (केरल, 2021)
केरल की डॉक्टर विश्वमाया को दहेज उत्पीड़न सहना पड़ा. पति और ससुराल वालों की बेरहम हरकतें उसके लिए अंत में मौत बन गईं. दरअसल, लंबे समय तक मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के बाद उसने आत्महत्या की कोशिश की, लेकिन हालत गंभीर होने पर अस्पताल में उनकी मौत हो गई. पुलिस ने IPC की धारा 304B (दहेज हत्या) और 498A (क्रूरता) के तहत मामला दर्ज किया. 2- 2.5 साल के बाद कोर्ट ने 2023 में पति को 10 साल की सजा सुनाई, साथ ही जुर्माना भी लगाया गया.

2. प्रियंका शर्मा
बरेली में रहने वाली प्रियंका के पति और उसके परिवार ने कई महीनों तक दहेज की मांग की. दहेज़ न मिलने पर उन्होंने पत्नी प्रियंका पर अत्याचार किया और मार दिया. पुलिस ने धारा 498A और 304B के तहत केस दर्ज किया. आरोपी पति-पत्नी सहित सभी ससुराल वाले फंसे. कोर्ट ने उन्हें उम्र कैद और ₹60,000 जुर्माना पर दोषी ठहराया.

3. रीना तंवर
MP के राजगढ़ की रीना तंवर की क्रूर हत्या देश को झकझोर कर रख गई. 25 साल की रीना गर्भवती थी जब उसे और उसके बच्चे को बेरहमी से काटा और फिर आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने 498A और 304B धारा के तहत मामला दर्ज किया. अभी तक केस अदालत में लंबित है. इस केस में आरोपी को जमानत भी मिली थी.

4. मुम्बई का डरावना केस
2023 में मुंबई में एक 33 साल के पूर्व फायरमैन ने अपनी पत्नी को दहेज की मांग न पूरी होने पर आग लगा दी. उसने पहले मानसिक उत्पीड़न किया, फिर साजिश के तहत उसे आग के हवाले कर दिया. कोर्ट ने उम्र कैद (life imprisonment) सुनाई. यह मामला इसलिए खास है क्योंकि आरोपी सरकारी कर्मचारी थे, लेकिन फिर भी सजा मिली. अभी ऐसे कई केस हैं, जिनका जिक्र तक नहीं होता, ससुरालवाले हत्याओं को आत्महत्या का रूप दे देते हैं. कई मामले तो दबे रहते हैं.

मिडल क्लास की बेटियां सबसे ज्यादा शिकार
रांची के एक मेडिकल स्टडी में देखा गया कि दहेज के हर केस में पीड़िता का परिवार मिडल क्लास से था, यानी वो परिवार, जहां बेटी को पढ़ाया जाता है, संस्कार सिखाए जाते हैं और एक बेहतर भविष्य का सपना दिखाया जाता है, लेकिन दहेज के इस जहर ने वो सारे सपने जला दिए. मेडिकल स्टडी के अनुसार, 75% दहेज पीड़िताएं अपर मिडल क्लास से थीं और 25% लोअर मिडल क्लास से थीं.

कामकाजी महिलाएं भी सुरक्षित नहीं
कहते हैं ‘कमाऊ लड़की है, ससुराल में इज्जत मिलेगी’… लेकिन हकीकत कुछ और ही है. स्टडी के अनुसार, 70% दहेज पीड़िताएं घरेलु महिलाएं थीं. 30% खेत में या किसी वर्क प्लेस पर काम करती थीं.

क्या वर्कफोर्स पर भी पड़ा असर?
भारत में पिछले एक दशक में महिलाओं की वर्कफोर्स में भागीदारी में चिंताजनक गिरावट देखी गई है. सरकारी और प्राइवेट संस्थाओं की रिपोर्टों के अनुसार, 2013 में जहां महिला लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) करीब 30% के आसपास था, वहीं 2021 तक यह घटकर केवल 19% रह गया. यानी लाखों महिलाएं वर्कफोर्स से बाहर हो चुकी हैं.

एक्सपर्ट कहते हैं कि यह गिरावट कई कारणों से हुई है, जिनमें समाज का दबाव, मानसिक उत्पीड़ना, घरवालों की टेंशन, शादी के बाद करियर पर रोक, घरेलू जिम्मेदारियां, शिक्षा और स्किल के बीच अंतर, सुरक्षित कामकाजी माहौल की कमी और कोविड-19 महामारी.

2013 से 2021 के बीच, लगभग 5 से 7 करोड़ महिलाओं ने या तो काम करना छोड़ा या उन्हें काम नहीं मिला. हालांकि 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में थोड़ी बढ़त देखने को मिली और कुल मिलाकर महिला भागीदारी अब 25–27% के बीच पहुंची है, लेकिन यह अब भी ग्लोबल एवरेज से काफी कम है.

हर बार जब देश में कोई लड़की दहेज के नाम पर जला दी जाती है, हम अखबार मोड़कर आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये बेटियां कौन हैं? किस घर से आती हैं? NCRB के आंकड़ों के अनुसार, हर दिन लगभग 20 महिलाएं दहेज की बलि चढ़ जाती हैं. फिर भी, समाज मुस्कान और सोनम जैसे मामलों में तो घंटों बहस करता है, लेकिन इन बेटियों के लिए कुछ नहीं…

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