Israel Iran war: ईरान-इजरायल के बीच जंग जारी है. दोनों तरफ से विध्वंसक हवाई हमले हो रहे हैं. इस जंग में एक तरफ ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई हैं तो दूसरी तरफ बेंजामिन नेतन्याहू. लेकिन ईरान इजरायल से ये जंग पिछले कई महीनों से लड़ रहा है और इसकी बानगी है “एक्सिस ऑफ़ रेजिस्टेंस”. इस संगठन में हमास, हिजबुल्लाह समेत यमन के हूती और इराक़ के शियाई मिलिशिया शामिल हैं. ईरान लंबे वक्त से मिडिल-ईस्ट में इसी “एक्सिस ऑफ़ रेसिस्टेंस” नाम के सहयोगी समूह के ज़रिए अपनी ताक़त बढ़ाता आया है. लेकिन जब इज़रायल ने पहली बार ईरानी धरती पर बड़े पैमाने पर हमले किए, तो ये ग्रुप चुप्पी साधे रहे. तेज़ कार्रवाई के बजाय, उन्होंने खुद को इस लड़ाई में से पीछे रखा. जबकि कुछ दिन पहले तक ये संगठन एक्टिव थे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ईरान दशकों बाद पहली बार अकेले लड़ रहा है? और ये संगठन चुप्पी क्यों साधे हुए हैं.
कहा जा रहा है कि “एक्सिस ऑफ़ रेजिस्टेंस” के कई ग्रुप कमजोर हो चुके हैं, आंतरिक रूप से विभाजित हैं और अपनी कमजोरियों से जूझ रहे हैं. 2024 की लड़ाइयों में इन समूहों को भारी झटका लगा है. हिज़बुल्लाह ने अपने वरिष्ठ कमांडर खो दिए, हमास को संसाधन की कमी झेलनी पड़ रही है. वहीं, हूती और इराक़ की मिलिशिया राजनीतिक-आर्थिक दांव पेंच में उलझ गईं. यही कारण है कि ये ये समूह बचाव मोड में हैं और ईरान अकेले लड़ रहा है. चलिए ईरान के सहयोगियों पर एक नजर डालते हैं.
लेबनानी समूह हिजबुल्लाह
लेबनान के शिया अर्धसैनिक समूह और ईरान के सबसे मजबूत सहयोगी हिजबुल्लाह ने ईरानी क्षेत्र पर इजरायल के हमलों के बाद से कोई बड़ी जवाबी कार्रवाई नहीं की है. जबकि एक साल पहले तक यह अकल्पनीय था. लेकिन 2023 से लगातार इजरायली हमलों के कारण इस ग्रुप की क्षमता, मनोबल और नेतृत्व में भारी गिरावट आई है. इस ग्रुप लंबे वक्त से सक्रिय नेता हसन नसरल्लाह की इजरायली हमले में मौत के बाद से संगठ कमजोर पड़ गया है.
नसरल्लाह की मौत ही इस संगठन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था.
हाल ही में एक इंटरव्यू में हिजबुल्लाह के वर्तमान नेता नईम कासिम एक ईरानी प्रतिनिधि के बजाय एक लेबनानी राजनेता के तौर पर नजर आए. वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि, उनके दफ्तर में कोई ईरानी प्रतीक चिन्ह नहीं था, और उनकी दीवारों पर अयातुल्ला खामेनेई की भी कोई तस्वीर नहीं लगी थी. इसके अलावा हिजबुल्लाह की सैन्य आपूर्ति और फंडिंग भी कमजोर हो गई है. 2024 के आखिर में सीरिया में बशर अल-असद के शासन को गिरा दिए जाने के बाद से ही समूह का रसद नेटवर्क सिकुड़ गया है.
फिलिस्तीनी समूह हमास
वहीं, गाजा में फिलिस्तीनी समूह हमास इजरायली हमलों की वजह से काफी कमजोर हो गया है. इजरायल के साथ करीब दो साल के युद्ध के बाद गाजा का ज्यादातर हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है और हमास के कई सीनियर नेता मारे जा चुके हैं. इसके दोनों सीनियर नेता इस्माइल हानियेह और याह्या सिनवार मारे जा चुके हैं. जबकि संगठन का दूसरा सबसे बड़ा नेता खालिद मशाल कतर में बैठा है. इसलिए यह नहीं पता है कि हमास का जमीनी नेतृत्व कितना मजबूत है या वे ईरान को इजरायल के खिलाफ युद्ध छेड़ने में मदद करने के लिए कितने मजबूत हैं?
मिलिट्री इन्फ्रास्ट्रक्चर्स जिस पर समूह निर्भर था, जैसे सुरंगें, कमांड सेंटर और रॉकेट कारखाने को इजरायल ने नष्ट कर दिया है. जबकि हमास ने ही 7 अक्टूबर, 2023 को हमले शुरू किए थे, जिससे मध्य पूर्व में जंग फैल गई. बावजूद, इसके ईरान की प्रतिक्रिया संयमित रही. तेहरान ने राजनीतिक समर्थन की पेशकश की और इज़रायल की निंदा की.
इराक: मिलिशिया व्यवसायी बन गए
इराक में, ईरान से जुड़े शिया मिलिशिया के एक ग्रुप ने लंबे वक्त से अमेरिकी सैनिकों को परेशान किया है, ईरानी हितों की रक्षा की है और बगदाद में तेहरान के प्रभाव को बढ़ाया है. लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है.
जनवरी से लेकर अब तक ईरानी धरती पर इजरायल के हमलों के बाद शिया मिलिशिया ने केवल दबी हुई निंदा ही जारी की है. केवल कताएब हिजबुल्लाह ( Kataeb Hezbollah ) ने कार्रवाई करने की धमकी दी है और वह भी केवल तभी जब अमेरिका इजरायल के साथ मिलकर ईरान पर हमला करे. इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद अल-सुदानी, जो तेहरान और वाशिंगटन दोनों से संबंध रखते हैं. उन्होंने भी मिलिशिया कमांडरों से संघर्ष से दूर रहने का आग्रह किया है.
यमनी संगठन हूती
जबकि यमन के हूती हाल के महीनों में सबसे ज्यादा सक्रिय ईरानी सहयोगी रहे हैं. हूती ने इज़रायल पर कई मिसाइलें दागी हैं और अपनी अमेरिका-विरोधी और इज़रायल-विरोधी बयानबाजी जारी रखी है. लेकिन अब उनकी भी सक्रियता कम होती जा रही है. मार्च और अप्रैल में अमेरिकी हवाई हमलों में उनकी कई मिसाइल बैटरियां नष्ट हो जाने के बाद, समूह सतर्क हो गया है.
'अराजकता की चौकड़ी'
मध्य पूर्व से परे ईरान के सहयोगी न सिर्फ ताकतवर हैं, बल्कि 'सत्तावादी' होने की प्रतिष्ठा भी रखते हैं. ईरान, रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ मिलकर एक ऐसा ग्रुप बनाता है जिसे विदेश नीति एक्सपर्ट्स ने उथल-पुथल की धुरी या अराजकता की चौकड़ी या CRINK धुरी जैसे नाम दिए हैं. हालांकि, रूस ईरान का समर्थन करता है, लेकिन इस चल रहे इजरायल-ईरान संघर्ष में सावधानी से आगे बढ़ रहा है. उसने इजरायली हमलों की निंदा तो की, लेकिन उसने आगे के संपर्क के लिए कोई इच्छा नहीं दिखाई. जबकि चीन अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है और उसने तेहरान के साथ आर्थिक सहयोग को और मजबूत किया है. इसने 2023 में ईरान को शंघाई सहयोग संगठन में शामिल कर लिया.लेकिन बीजिंग भी खुद को एक लड़ाकू के बजाय एक मध्यस्थ के रूप में पेश कर रहा है. हालांकि, ऐतिहासिक रूप से अलग-थलग और कट्टर पश्चिमी विरोधी उत्तर कोरिया पर लंबे वक्त से ईरान के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों में सहायता करने का शक जरूर है.
क्या भारत ईरान का सहयोगी है?
भारत के तेहरान और यरुशलम दोनों के साथ अच्छे रिश्ते हैं. भारत कई क्षेत्रों में इज़रायल के साथ साझेदारी करता है और साथ ही ईरान का रणनीतिक और क्षेत्रीय साझेदार बना हुआ है. 2024 में भारत ने चाबहार बंदरगाह को विकसित करने और संचालित करने के लिए ईरान के साथ 10 साल का कॉन्ट्रैक्ट किया है.