Last Updated:August 24, 2025, 21:12 IST
मतुआ समाज में सुब्रत ठाकुर और शांतनु ठाकुर के बीच विवाद से भाजपा को झटका, TMC को मौका मिला. ममताबाला ठाकुर और मधुपर्णा ठाकुर भी विवाद में शामिल हैं. बंगाल की सत्ता पर असर.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ समाज हमेशा से सत्ता की चाबी रहा है. यही वजह है कि इस समुदाय को लेकर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच सीधी टक्कर रहती है. लेकिन अब खुद मतुआ परिवार में ही दरार सामने आ गई है. भाजपा विधायक सुब्रत ठाकुर ने अपने छोटे भाई और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर पर जाति प्रमाणपत्र और ‘मतुआ कार्ड’ बांटने में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया है. इसे बीजेपी के लिए सिरदर्द और ममता बनर्जी के लिए सियासी संजीवनी माना जा रहा है.
सुब्रत ठाकुर का कहना है कि असली लाभार्थियों को अब भी नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के तहत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. उन्होंने दावा किया कि शांतनु धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं और हर दिन लोगों को गुमराह किया जा रहा है. उधर, शांतनु ठाकुर ने इन आरोपों को राजनीतिक ईर्ष्या से प्रेरित बताते हुए कहा कि सुब्रत मंत्री न बनने की हताशा में TMC का रुख करने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने साफ कहा कि मतुआ समाज पूरी तरह उनके साथ खड़ा है और वह सिर्फ समाज के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं.
किस-किस तरह के आरोप
सुब्रत यहीं नहीं रुके. उन्होंने आरोप लगाया कि शांतनु ने हरिचंद-गुरुचंद मंदिर पर पूरा कब्जा जमा लिया है और केवल अपने समर्थकों को ही प्रवेश दे रहे हैं. यही वजह है कि उन्होंने शनिवार को अपनी चाची, TMC सांसद ममताबाला ठाकुर और बहन, TMC विधायक मधुपर्णा ठाकुर से मुलाकात की. चर्चा का एजेंडा था कि मतुआ अधिकारों की रक्षा और मंदिर को हड़पने से रोकना. इस विवाद पर परिवार भी बंट गया है. जहां ममताबाला और सुब्रत शांतनु के खिलाफ खड़े हैं, वहीं पिता मञ्जुलकृष्ण ठाकुर ने बेटे शांतनु का बचाव किया है. उन्होंने कहा कि झूठ और अफवाह फैलाई जा रही है, जबकि शांतनु असली मत्वाओं के अधिकार और पहचान को सुरक्षित करने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं.
बीजेपी के लिए क्यों सिरदर्द
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विवाद भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकता है. क्योंकि बंगाल की राजनीति में मतुआ समाज की भूमिका निर्णायक है और 2019 लोकसभा चुनाव में इस समुदाय के वोटों ने भाजपा को अप्रत्याशित बढ़त दिलाई थी. लेकिन अब परिवार की फूट से TMC को राजनीतिक फायदा मिल सकता है, जो लंबे समय से मतुआ समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है.
कितना बड़ा वोट बैंक?
बंगाल की राजनीति में मतुआ समुदाय का वोट बैंक सबसे अहम माना जाता है. नामशूद्र हिंदुओं से जुड़ा यह समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 17-20% हिस्सा है और करीब 1.5 करोड़ मतदाता इसके अंतर्गत आते हैं. नदिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में इनकी सबसे बड़ी मौजूदगी है. अनुमान है कि मतुआ वोट 30-45 विधानसभा सीटों को सीधा प्रभावित करता है, इसलिए हर चुनाव में बीजेपी और टीएमसी दोनों दल इस पर जोर लगाते हैं.
बीजेपी या टीएमसी किसे कितना मिला?
2019 लोकसभा चुनाव में मतुआ बहुल क्षेत्रों में भाजपा ने करीब 41.5% वोट हासिल किए थे जबकि टीएमसी को लगभग 43% वोट मिले. इसके बाद से भाजपा ने इस समुदाय के बीच सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) को लेकर अपना अभियान तेज किया. वहीं 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मतुआ प्रभाव वाले क्षेत्रों की लगभग 28 सीटें जीतीं, जबकि टीएमसी ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की.
सत्ता की राह तय करता है ये समुदाय
मतुआ वोट बैंक का झुकाव किस ओर रहेगा, यह बंगाल की सत्ता की राह तय करता है. भाजपा जहां नागरिकता के वादे से इन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है, वहीं ममता बनर्जी इनको यह भरोसा दिलाने में लगी हैं कि टीएमसी ही उनके हितों की असली संरक्षक है। यही वजह है कि बंगाल का पूरा चुनावी गणित इस समुदाय की दिशा तय करता है.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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Location :
Kolkata,West Bengal
First Published :
August 24, 2025, 21:12 IST