Last Updated:August 14, 2025, 12:54 IST
India-Pakistan Partition: 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय वॉयसराय की बग्घी के मालिकाना हक के लिए टॉस से फैसला हुआ था. टॉस भारत के पक्ष में रहा और बग्घी राष्ट्रपति की सवारी बनी.

India-Pakistan Partition: जब 1947 में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो दोनों देशों के बीच कई चीजों के लिए झगड़ा हुआ. इसमें रुपये पैसे से लेकर चल-अचल संपत्तियां सभी कुछ शामिल था. लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच जिस चीज को लेकर सबसे ज्यादा हाय तौबा हुई वो थी वॉयसराय की बग्घी. ये बग्घी आजाद भारत में राष्ट्रपति की आधिकारिक सवारी बनी. इसका इतिहास भारत की स्वतंत्रता, विभाजन और बदलती परिस्थितियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह सिर्फ एक शाही सवारी नहीं है, बल्कि भारतीय संप्रभुता और गौरव का प्रतीक है.
सोने की परत चढ़ी छह घोड़ों से खींची जाने वाली काले रंग की इस गाड़ी अंदरूनी भाग लाल मखमली कपड़े से बना हुआ है. इस पर उभरे हुए अशोक चक्र अंकित थे. यह मूल रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के वायसराय के इस्तेमाल के लिए थी. इसका उपयोग औपचारिक आयोजनों और वायसराय हाउस (जिसे अब राष्ट्रपति भवन कहा जाता है) के आसपास घूमने के लिए किया जाता था. हालांकि, जब औपनिवेशिक शासन समाप्त हुआ तो भारत और नवगठित पाकिस्तान दोनों ही इस आलीशान बग्घी को हासिल करने की होड़ में लग गए.
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सिक्का उछाल कर किया फैसला
आजादी के बाद भी यह भारत में कैसे रही, यह एक ऐसी कहानी है जो कई लोगों को खुश कर देगी. विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ही फैंसी बग्घी चाहते थे और इस झगड़े को सुलझाने के लिए कोई हाई अथॉरिटी नहीं थी. तो फिर उन्होंने विवाद सुलझाने के लिए क्या किया? सीधी सी बात है. उन्होंने वही किया जो आजकल क्रिकेट कप्तान करते हैं. उन्होंने टॉस किया. भारत के लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तान सेना के साहबजादा याकूब खान ने बग्घी के स्वामित्व की जिम्मेदारी एक सिक्के पर छोड़ दी.
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भारत के पक्ष में रहा टॉस
बेशक टॉस भारत ने जीता. आजादी के बाद इस बग्घी का इस्तेमाल भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाने लगा. 1950 में भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राजपथ पर हुई परेड में इसी बग्घी में बैठकर हिस्सा लिया था. शुरुआती सालों में राष्ट्रपति शपथ ग्रहण समारोह, बीटिंग द रिट्रीट और गणतंत्र दिवस परेड जैसे प्रमुख समारोहों में नियमित रूप से इसी बग्घी का इस्तेमाल करते थे. यानी जब देश की शानो-शौकत दिखाने का मौका होता था तो हमारे राष्ट्रपति इसी ऐतिहासिक बग्घी का इस्तेमाल करते थे.
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बग्घी पर.
2014 में हुई बग्घी की वापसी
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कारणों से इस बग्घी का उपयोग बंद कर दिया गया था. इसके बाद राष्ट्रपति समारोहों के लिए बुलेट-प्रूफ लिमोजीन का उपयोग करने लगे. आखिरी बार राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 1984 में इसका इस्तेमाल किया था. 1984 के बाद कई दशकों तक किसी भी राष्ट्रपति ने इस बग्घी का लगातार इस्तेमाल नहीं किया. हालांकि, कभी-कभार इसका इस्तेमाल जरूर हुआ. ऐतिहासिक बग्घी की 2014 में वापसी हुई जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बीटिंग रिट्रीट समारोह में भाग लेने के लिए इसमें सवार होकर आए थे. राष्ट्रपति मुखर्जी के कार्यकाल में बग्घी का कई बार इस्तेमाल हुआ. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस परंपरा को जारी रखा. रामनाथ कोविंद जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अपनी भव्य कार को छोड़कर शपथ ग्रहण समारोह के लिए राष्ट्रपति भवन से संसद तक ऐतिहासिक बग्घी की सवारी की.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बग्घी में इमैनुएल मैक्रों के साथ परेड के लिए पहुंचीं.
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मुर्मू इस पर बैठकर परेड में पहुंचीं
मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस बग्घी की सवारी की है. उन्होंने 26 जनवरी, 2024 को 75वें गणतंत्र दिवस समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ पारंपरिक बग्घी में बैठकर कर्तव्य पथ पर परेड में भाग लिया था. यह 40 साल के अंतराल के बाद पहला मौका था जब किसी राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस समारोह के लिए इस बग्घी का इस्तेमाल किया.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 14, 2025, 12:54 IST