बिहार का वह CM जिसने टमटम और बैलगाड़ी से जीता चुनाव, कभी न उड़ा हेलीकॉप्टर से!

1 month ago

Last Updated:September 11, 2025, 19:32 IST

बिहार चुनाव का रंग हर बार बदलता रहा है. एक दौर था जब नेता बैलगाड़ी और टमटम से प्रचार करते थे और लोग साथ में भूजा सत्तू लेकर चलते थे. चुनावी खर्च हजारों में आता था. लेकिन अब प्रचार हेलीकॉप्टर और सोशल मीडिया से होता है और खर्च करोड़ों में पहुंच गया है.

बिहार का वह CM जिसने टमटम और बैलगाड़ी से जीता चुनाव, कभी न उड़ा हेलीकॉप्टर से!बिहार का वह सीएम जो बैलगाड़ी से करता था चुनाव प्रचार.

पटना. बिहार का चुनाव हमेशा से अपने अनोखे रंग के लिए जाना जाता है. क्योंकि बात बिहार चुनाव 2025 की शुरू हो गई है तो कुछ भूले-बिसरे यादों को भी जानना जरूरी हो जाता है. बात उस दौर की भी होनी चाहिए जब नेता बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार करते थे और गमछा, झोला और धोती में सत्तू, नींबू, नमक और भूजा लेकर चलते थे. लेकिन अब तो चुनाव हाईटेक हो गया है. सोशल मीडिया पर भी लड़ा जाता है. लेकिन 50 से 70 के दौर में नेता बैलगाड़ी, टमटम और साइकिल से चुनाव प्रचार किया करते थे. कम ही उम्मीदवार और नेता होते थे, जो मोटरसाईकिल और कार से चुनाव प्रचार करने पहुंचते थे. ऐसा ही एक चुनाव 1952 में बिहार में हुआ, जिसमें एक शख्स बैलगाड़ी औऱ टमटम से चुनाव प्रचार कर बिहार के सीएम की कुर्सी तक पहुंचा. वह शख्स बाद के चुनावों में भी कभी नहीं हारा और कभी हेलिकॉप्टर से प्रचार नहीं किया.

बिहार में एक दौर था जब चुनाव प्रचार टमटम और बैलगाड़ी से होता था. नेता जनता से टमटम, साइकिल और बैलगाड़ी से पहुंचकर सीधा संवाद करते थे. लेकिन अब माहौल पूरी तरह से बदल गया है. आज प्रचार हेलीकॉप्टर और आधुनिक तकनीक से होता है और इसके साथ ही चुनावी खर्च भी जमीन से आसमान तक पहुंच गया है. अगर हम 50 और 60 के दशक की बात करें तो चुनाव लड़ने का तरीका बेहद सीधा और सरल था.

जब होता था बैलगाड़ी और टमटम से प्रचार

गांव के बुजुर्ग कहते हैं, उस समय सड़कें कम थीं और गाड़ियों का इस्तेमाल भी कम होता था. ऐसे में नेता बैलगाड़ी और टमटम पर सवार होकर गांव-गांव तक जाते थे. उनके साथ कुछ समर्थक होते थे जो नारे लगाते हुए चलते थे. इस तरह के प्रचार में न तो पेट्रोल का खर्च होता था और न ही कोई हाई-फाई सेटअप की जरूरत पड़ती थी.

भूजा और सत्तू का सहारा

उस दौर में चुनावी रैलियां और सभाएं भी होती थीं, लेकिन उनका स्वरूप आज जैसा भव्य नहीं था. लोग अक्सर पैदल ही सभा स्थल तक जाते थे और अपने साथ भूजा या सत्तू लेकर चलते थे, ताकि रास्ते में भूख लगने पर खा सकें. नेता भी अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे. खर्च था न के बराबर. उस समय एक चुनाव लड़ने का खर्च बहुत कम होता था. चुनाव आयोग की भी कोई सख्त गाइडलाइंस नहीं थीं. एक प्रत्याशी का कुल खर्च कुछ हजार रुपए में ही सिमट जाता था. उस समय पांच से दस हजार रुपए भी एक बड़ी राशि मानी जाती थी.

अब हेलीकॉप्टर से प्रचार, खर्च करोड़ों में

आज के दौर में चुनाव प्रचार की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है. अब हर सीट पर मुकाबला इतना कड़ा होता है कि कोई भी प्रत्याशी पीछे नहीं रहना चाहता. हेलीकॉप्टर और चार्टर्ड फ्लाइट्स में बड़े नेता एक दिन में कई रैलियों को संबोधित करते हैं. इसके लिए वे हेलीकॉप्टर और चार्टर्ड फ्लाइट्स का इस्तेमाल करते हैं. इनका किराया लाखों में आता है. आज की चुनावी रैलियों में बड़ा मंच, शानदार साउंड सिस्टम, एलईडी स्क्रीन और हजारों कुर्सियां होती हैं. इन सबका खर्च करोड़ों रुपए में होता है.

अब सोशल मीडिया चुनाव प्रचार का एक अहम हिस्सा बन गया है. उम्मीदवार अपनी छवि को बेहतर बनाने और विपक्षी दलों पर हमला करने के लिए डिजिटल मार्केटिंग एजेंसियों की मदद लेते हैं. एक प्रत्याशी का चुनाव खर्च लाखों से लेकर करोड़ों रुपए तक पहुंच जाता है. लेकिन बिहार के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह, जिनको श्री बाबू के नाम से भी लोग जानते हैं, ने अपना पहला चुनाव बैलगाड़ी, टमटम और साइकिल से लड़ा. उस समय के लोग कहते हैं, ‘श्री बाबू नामांकन दाखिल करने के बाद क्षेत्र नहीं आते थे. नामांकन करने के बाद वह जनता के बीच वोट मांगने नहीं जाते थे. उनका मानना था कि अगर कोई जनप्रतिनिधि पांच साल तक जनता के लिए ईमानदारी से काम करेगा तो उसे चुनाव में वोट मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी. शायद इसी सोच का असर था कि वह कभी कोई चुनाव नहीं हारे.’

रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...

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First Published :

September 11, 2025, 19:32 IST

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