बिहार में बढ़ी सियासी सरगर्मी समय से पहले असेंबली इलेक्शन का संकेत तो नहीं!

1 month ago

पटना. बिहार में राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई है. हर दल किसी न किसी बहाने जनता तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है. आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने हाल ही में आभार यात्रा का पहला चरण पूरा किया है. जेडीयू के महासचिव मनीष वर्मा कार्यकर्ता समागम शुरू कर चुके हैं. लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी बेगूसराय, शेखपुरा के बाद राघोपुर जा चुके हैं. उनकी यात्रा का कोई शिड्यूल तो जारी नहीं हुआ है, लेकिन रुक रुक कर वे जनता तक पहुंच रहे हैं. राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) प्रमुख और राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा भी यात्रा पर निकले हुए हैं. आश्चर्यजनक ढंग से भाजपा निश्चिंत बैठी है. यह सब तब हो रहा है, जब चुनाव में अभी साल भर की देरी है.

तेजस्वी ने निकाली आभार यात्रा
तेजस्वी यादव ने पहले चरण में 10 सितंबर से 17 सितंबर तक समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी और मुजफ्फरपुर की यात्रा की. यात्रा के दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं से संवाद किया. उनकी सुनी और 17 महीने सरकार में रहने के दौरान की अपनी उपलब्धियां गिनाईं. कार्यकर्ताओं से मिले फीडबैक के आधार पर उन्होंने सदस्यता अभियान की भी शुरुआत कर दी है. कार्यकर्ताओं से मिली जानकारी के आधार पर तेजस्वी ने कुछ विधायकों को अपने में सुधार लाने की चेतावनी भी दी है. उनके टिकट काटने तक की बात कही है.

तेजस्वी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि महागठबंधन सरकार की 17 महीने की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाएं. तेजस्वी की आभार यात्रा हर जिले में होने वाली है, जिससे सभी 243 विधानसभा क्षेत्र कवर हो सकें.

उपेंद्र कुशवाहा की बिहार यात्रा
आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार यात्रा नाम से अपना दौरा शुरू किया है. उनकी बिहार यात्रा 25 सितंबर से शुरू हुई है. यात्रा का आरंभ उन्होंने अरवल जिले के कुर्था स्थित शहीद जगदेव प्रसाद के शहादत स्थल से किया. उन्होंने भी सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है. यात्रा पर निकले उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत सुनिश्चित करना उनका लक्ष्य है. लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए को अपेक्षित सफलता न मिलने का कारण भी कुशवाहा इस दौरान बताते हैं. वे कहते हैं कि एनडीए की गुटबाजी इसकी वजह रही. अब वजह पता चल चुकी है. इसलिए विपक्ष को अब उत्साहित होने की जरूरत नहीं.

जेडीयू का कार्यकर्ता समागम
सभी सक्रिय हो गए हैं तो सत्ता में बैठा जेडीयू कैसे पीछे रहता. फर्क सिर्फ इतना है कि जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के बजाय यह काम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा कर रहे हैं. उन्होंने 27 सितंबर से कार्यकर्ता समागम की शुरुआत मुजफ्फरपुर से कर दी है. बारी-बारी वे भी सभी जिलों में जाएंगे. कार्यकर्ताओं की सुनेंगे. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार की अब तक की उपलब्धियां बताएंगे. वे यह भी बताएंगे कि नीतीश कुमार की सरकार बनने से पहले का बिहार कैसा था और आज कितना बदल गया है. नीतीश कुमार ने मनीष वर्मा को यह बड़ी जिम्मेदारी दी है.

वैसे नीतीश कुमार भी यात्रा प्लान कर रहे हैं, पर उनकी यात्रा कब से होगी और उसका नाम क्या होगा, अभी या तो तय नहीं हुआ है या घोषणा होनी बाकी है.

भाजपा का सदस्यता अभियान
दरअसल भाजपा निश्चिंत बैठी भले दिख रही हो, लेकिन जनता से जुड़ने उसकी तैयारी अलग किस्म की है. भाजपा ने 2 सितंबर से राष्ट्रव्यापी सदस्यता अभियान शुरू किया है. हर राज्य में अधिक से अधिक सदस्य बनाने की होड़ लगी हुईं है. दूसरे राज्यों में रिस्पांस भी बढ़िया है. वन टू वन जनता से जुड़ने का यह नायाब तरीका भी है. पर, बिहार में सदस्यता अभियान फिसड्डी साबित हो रहा है. 4 सितंबर से लेकर 26 सितंबर तक बिहार में 25 लाख लोगों ने ही पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है. यह स्थिति तब है, जब भाजपा डेढ़ करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है. इससे केंद्रीय नेतृत्व चिंतित है.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को महज तीन सप्ताह के अंदर दूसरी बार बिहार का दौरा इसी वजह से करना पड़ा है. नड्डा 7 सितंबर को ही बिहार आए थे. दो दिवसीय दौरे में उन्होंने दो हजार करोड़ रुपए से अधिक की केंद्रीय स्वास्थ्य परियोजनाओं की सौगात बिहार को दी. उसी वक्त उन्होंने सदस्यता अभियान की प्रगति की समीक्षा भी की थी. सदस्य बनाने के टिप्स भी दिए. फिर भी सदस्यता अभियान गति नहीं पकड़ पा रहा है. यही कारण है कि वे एक दिन के दौरे पर शनिवार को फिर बिहार पहुंचे थे.

समय पूर्व चुनाव का संकेत तो नहीं!
बिहार में इन सियासी गतिविधियों को देखकर लोग विधानसभा चुनाव समय से पहले होने का अनुमान लगा रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार की सक्रियता को देख कर भी ऐसा ही एहसास होता है. एक ओर विपक्षी नेता नीतीश को बूढ़ा, बीमार, बेबस और लाचार बताने से नहीं थकते, वहीं उनके कामकाज की गति देख कर लोग दंग हैं. तकरीबन हर दिन नीतीश कुमार समीक्षा बैठकें कर रहे हैं. चल रहीं योजनाओं की प्रगति देखने मौके पर पहुंच रहे हैं. तबादले तो ऐसे हो रहे, जैसे बिहार को वे बदल देना चाह रहे हों. उनकी गतिविधियों को देख कर भी लग रहा कि चुनाव सन्निकट है.

तो कब हो सकता है असेंबली चुनाव?
बिहार में मिड टर्म पोल की सुगबुगाहट तो तभी से है, जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ भाजपा के साथ सरकार बना ली थी. यानी फरवरी 2024 से ही यह चर्चा हो रही है. पहले चर्चा चली कि नीतीश लोकसभा चुनाव के साथ ही असेंबली चुनाव कराना चाहते हैं. फिर बात आई कि महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के साथ चुनाव हो सकता है. अभी तक बिहार में चुनाव की कोई प्रशासनिक तैयारी नहीं दिख रही. इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि दिल्ली के साथ चुनाव कराया जा सकता है. अगले साल जनवरी-फरवरी में दिल्ली विधानसभा का चुनाव होना है. वैसे इसमें संदेह की गुंजाइश भी है. नीतीश सरकार को सहयोगियों से कोई परेशानी नहीं है. फैसले लेने में कोई रुकावट भी नहीं दिख रही. सिर्फ एक ही कारण चुनाव की हड़बड़ी का दिख रहा है। नीतीश कुमार सिर्फ 43 विधायकों वाली पार्टी के नेता हैं. वे इस कलंक को मिटाना चाहते हैं.

Tags: Bihar BJP, Bihar election, Nitish kumar, Tejashwi Yadav

FIRST PUBLISHED :

September 29, 2024, 08:16 IST

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