भारत में कांग्रेस फिर चुनावों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों यानि ईवीएम का विरोध कर रही है. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे का कहना है कि कांग्रेस को ईवीएम से चुनाव नहीं चाहिए. इसे लेकर वह देशभर में अभियान चलाना चाहती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर कांग्रेस को फटकार लगा दी है लेकिन ये वोटिंग मशीन फिर चर्चा में आ गई है.
कुछ महीने पहले एलन मस्क ने भी ईवीएम पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसे हैक किया जा सकता है. वैसे दुनिया में समय समय पर कई तकनीकविद भी इस तरह का दावा कर चुके हैं. दिलचस्प बात ये है कि सुपर पावर होने के बाद भी अमेरिका वोटिंग के मामले में काफी परंपरागत है. वो EVM (Electronic Voting Machine) पर भरोसा नहीं करता.
दुनियाभर में 100 के आसपास ऐसे देश हैं. जहां चुनावों में अब भी बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है. पिछले दो दशकों से कई देशों में चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ. अब ये बढ़ता जा रहा है. 30 से ज्यादा देशों में सरकार चुनने के लिए ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल होने लगा है.
भारत में 90 के दशक तक चुनावों में बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता था लेकिन उससे जुड़ी कई शिकायतों के बाद हम ईवीएम की ओर चले गए. हालांकि अमेरिका जैसे विकसित देशों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग लोकप्रिय नहीं है. वो वोटिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक जरिया चुनने की बजाए बैलेट पेपर का इस्तेमाल करते हैं.
अमेरिकी नागरिक को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर उतना भरोसा नहीं- सांकेतिक फोटो (Pixabay)
अमेरिकियों को ईवीएम पर संदेह
वहां का चुनाव आयोग इसकी एक वजह ये बताता है कि अमेरिकी नागरिक को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर उतना भरोसा नहीं अगर बात वोटिंग जैसी महत्वपूर्ण हो. हर बात पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर भरोसा करने वाले अमेरिकी नागरिक मानते हैं कि ईवीएम हैक किया जा सकता है और पेपर बैलेट ज्यादा भरोसेमंद है, जिसमें उनका वोट वहीं जाता है, जहां वे चाहें.
अमेरिका के ईवीएम से दूर रहने की 7 वजहें
1. साइबर सुरक्षा को लेकर चिंताएं
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को हैकिंग और साइबर हमलों से सुरक्षित रखना चुनौतीपूर्ण माना जाता है.
अतीत में कुछ रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि EVMs को तकनीकी रूप से छेड़छाड़ के लिए असुरक्षित पाया गया.
2. सत्यापन की कमी
कई EVMs में वोटर्स को यह प्रमाणित करने का कोई तरीका नहीं होता कि उनका वोट सही तरीके से दर्ज हुआ. अमेरिका में कागजी बैलट (Paper Ballot) के प्रति अधिक भरोसा इसीलिए है क्योंकि यह मैन्युअल सत्यापन की सुविधा देता है.
3. राजनीतिक ध्रुवीकरण
चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर राजनीतिक विवाद अक्सर बढ़ते रहते हैं. कुछ समूहों का मानना है कि EVM का इस्तेमाल चुनावों को पक्षपातपूर्ण तरीके से प्रभावित कर सकता है.
4. कागजी बैलेट अधिक विश्वसनीय
अमेरिका में एक केंद्रीय चुनावी प्रणाली नहीं है. हर राज्य अपने तरीके और नियम तय करता है. कई राज्यों में पारंपरिक कागजी बैलट या बैलट स्कैनर का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसे अधिक विश्वसनीय और सुरक्षित माना जाता है.
5. अतीत में विवाद और गलतियां
2000 के राष्ट्रपति चुनाव में फ्लोरिडा में बैलट गिनती को लेकर विवाद हुआ, जिससे पारदर्शी प्रणाली की मांग बढ़ी. इसके बाद, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की तरफ बढ़ने की कोशिश हुई, लेकिन तकनीकी खामियों के कारण इसे व्यापक रूप से अपनाया नहीं गया.
6. कागजी बैलेट की वापसी
हाल के वर्षों में अमेरिका के कई राज्यों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से वापस कागजी बैलेट पर स्विच किया है. कागजी बैलेट को भविष्य के विवाद या गिनती में त्रुटि के लिए एक सुरक्षित बैकअप के रूप में देखा जाता है.
7. पब्लिक ट्रस्ट और पारदर्शिता
वोटिंग प्रक्रिया में जनता का भरोसा महत्वपूर्ण है. पारंपरिक कागजी बैलट में गिनती मैन्युअल रूप से होती है, जो जनता के लिए अधिक पारदर्शी प्रतीत होती है.
परंपरा से जुड़ाव का जरिए भी मानते हैं
इसके अलावा पेपर बैलेट यहां पर 18वीं सदी से चला आ रहा है इसलिए इसे चुनाव में एक रिचुअल की तरह भी देखा जाता है. अमेरिका में ई-वोटिंग का एकमात्र तरीका है ईमेल या फैक्स से वोट करना. इसमें भी वोटर को बैलेट फॉर्म भेजा जाता है, जिसे वो भरते हैं और ई-मेल या फैक्स कर सकते हैं.
इसके अलावा वहां कोरोना दौर से पोस्टल वोटिंग भी शुरू हुई है. एक और तरीका है एब्सेंटी वोटिंग. इसके तहत वोटर बैलट के लिए रिक्वेस्ट करता है और साथ में बताना होता है कि चुनाव में वो क्यों पोलिंग बूथ पर नहीं आ सकता.
वोटिंग का आधुनिक तरीका ईवीएम कभी भी विवादों से मुक्त नहीं रहा- सांकेतिक फोटो
ईवीएम पर सारे आधुनिक देशों ने जताया संदेह
वैसे वोटिंग का आधुनिक तरीका ईवीएम कभी भी विवादों से मुक्त नहीं रहा. छेड़छाड़ या हैकिंग के डर से दुनिया के कई देशों में ईवीएम पर बैन लगा दिया गया. इसकी शुरुआत नीदरलैंड ने की. इसके बाद जर्मनी ने इसे वोटिंग की गलत और अपारदर्शी प्रणाली बताते हुए इसे बंद कर दिया. इटली ने भी ईवीएम के शुरुआती इस्तेमाल के बाद हैकिंग के डर से इसे बंद कर दिया. इंग्लैंड, फ्रांस में बैलेट पेपर ही इस्तेमाल हुए. वहीं अमेरिका में ईवीएम कभी रहा ही नहीं.
भारत में ऐसे आई मशीन
भारत में भी सालों तक बैलेट पेपर से वोटिंग होती रही. इसमें वोटों की गिनती में लंबा वक्त लगता था. इसे देखते हुए साल 1989 में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की मदद से सरकार ने ईवीएम निर्माण की शुरुआत की. इसके जरिए पहली बार वोटिंग नवंबर 1998 में हुई. 16 विधानसभा चुनावों में वोटिंग के लिए ईवीएम का इस्तेमाल किया गया.
इसके बाद से ये हर जगह चलने लगा और साल 2004 के आम चुनावों में पहली बार पूरे देश के मतदाताओं ने ईवीएम के जरिए अपने वोट डाले थे, तब से मतदान के लिए यही जरिया पूरे देश में लागू है.
पार्टियां हारने पर ही करती हैं शक
हालांकि समय-समय पर सारी ही राजनैतिक पार्टियां इस मशीन को गलत बताती रही हैं. मजे की बात ये है कि हमेशा हारने वाली पार्टी इस पर संदेह करती है. इस पर बाकायदा एक किताब भी लिखी जा चुकी है- ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट अवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन.’
ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की बातों के बीच और राजनैतिक दलों की मांग के की वजह से भारत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इलेक्शन कमीशन ने मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के साथ ईवीएम लागू किया. इसमें वोटर खुद ये तय कर पाता है कि उसका वोट उसी को गया है, जिसे उसने डाला है. दावा किया गया कि इससे ईवीएम से छेड़छाड़ की आशंका काफी हद तक दूर हो जाती है.
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, United States (US), United States of America, Vote counting
FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 18:59 IST