बिहार में महागठबंधन को पता भी नहीं चला, कैसे जनता ने उनकी जड़ें खोद दीं

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Last Updated:November 14, 2025, 21:46 IST

Bihar Election Result: बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए को महिला मतदाताओं के समर्थन और कल्याणकारी नीतियों के कारण व्यापक सफलता मिली, जबकि महागठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा है. इस बार तो कांग्रेस से अच्छा स्ट्राइक रेट जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पार्टियों का नजर आ रहा है जो एनडीए के खेमे में हैं, जबकि कांग्रेस 60 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही थी.

बिहार में महागठबंधन को पता भी नहीं चला, कैसे जनता ने उनकी जड़ें खोद दींबिहार चुनाव में एनडीए ने 200 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की है. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली. बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एनडीए के प्रदर्शन ने लगभग 15 साल बाद 2010 जैसी कहानी दोहराई है. नतीजे संकेत देते हैं कि गठबंधन ने न केवल व्यापक विजय हासिल की, बल्कि कई क्षेत्रों में महागठबंधन को राजनीतिक रूप से पीछे धकेल दिया है. महागठबंधन के कई वरिष्ठ नेताओं की सीटें भी असुरक्षित हुईं, जो इस बदलाव की गहराई को दर्शाता है. विश्लेषकों के अनुसार, इस चुनाव में महिला मतदाताओं की भूमिका निर्णायक रही. 71 प्रतिशत के आसपास महिला मतदान ने नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्पष्ट लाभ दिया. उनकी सरकार की सामाजिक कल्याण योजनाएं – खासकर महिलाओं की सुरक्षा, आवागमन, शिक्षा और आर्थिक सहायता से जुड़ी नीतियां – महिला वर्ग के बीच मजबूत विश्वास का आधार बनीं. इसके विपरीत, महागठबंधन महिला मतदाता समूह की रणनीतिक महत्ता को समझने में विफल रहा और परिणामस्वरूप इस वर्ग में वह प्रभाव स्थापित नहीं कर पाया.

महागठबंधन द्वारा चुनाव से पहले किए गए दावे – जैसे सरकार बनाने की संभावना और आरजेडी का सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना – वास्तविक परिणामों में परिलक्षित नहीं हुए. दो चरणों के मतदान के बाद भी राजनीतिक विश्लेषण लगातार संकेत दे रहा था कि एनडीए को महिलाओं, ओबीसी और ईबीसी वोट बैंक में मजबूत बढ़त मिलेगी. इसके बावजूद महागठबंधन ने इस मूल्यांकन को गंभीरता से नहीं लिया और सामाजिक गठबंधन की नई संरचना को समझने में चूक कर दी. इस मतदाता समूह की प्राथमिकताओं, विकास-केन्द्रित अपेक्षाओं और स्थिरता की चाह ने इस चुनाव में निर्णायक रूप से एनडीए के पक्ष में काम किया. समग्र रूप से देखा जाए तो यह चुनाव परिणाम सिर्फ राजनीतिक दलों की जीत-हार नहीं, बल्कि बिहार के सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों में चल रहे व्यापक बदलाव की ओर भी संकेत देता है – विशेषकर महिला मतदाताओं के उभार और निम्नवर्गीय सामाजिक समूहों की बदलती राजनीतिक प्राथमिकताओं के रूप में.

वैसे इस चुनाव में महागठबंधन एसआईआर (मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण) को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा था, लेकिन जमीनी हकीकत यह रही कि जनता को विपक्ष का यह चुनावी मायाजाल उलझा नहीं पाया. बिहार चुनाव के रुझानों और नतीजों पर नजर डालें तो यहां हालात ऐसे हो गए हैं कि राजद हाफ, सन ऑफ मल्लाह साफ, कांग्रेस को पंजे की अंगुलियों के बराबर भी सीट नहीं मिलती नजर आ रही है. बिहार चुनाव में महागठबंधन सीटों की हाफ सेंचुरी भी लगाता नहीं दिख रहा है. बिहार चुनाव के जो रुझान और नतीजे आ रहे हैं, इससे यह भी साफ है कि नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रभुत्व महिला-केंद्रित कल्याणकारी नीतियों पर उनके रणनीतिक फोकस की वजह से है, जिसकी वजह से इस विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड), भाजपा और एनडीए के अन्य सहयोगी दलों को व्यापक सफलता मिलती नजर आ रही है.

दूसरी तरफ महागठबंधन पूरी तरह से महिला मतदाताओं को आकर्षित करने में फेल रहा. तेजस्वी यादव की ‘माई बहन मान’ योजना तक को नीतीश कुमार की पहले से ही चल रही योजनाओं के सामने महिलाओं ने नहीं स्वीकारा. बिहार की राजनीति में अपने आप को ‘सन ऑफ मल्लाह’ कहने वाले महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी, जिनकी राजनीतिक शुरुआत ही एनडीए की बैसाखी के सहारे हुई थी, ने एनडीए से अलग रास्ता चुना और महागठबंधन में शामिल हुए, लेकिन अब हालत ऐसी है कि उनकी पार्टी को एक भी सीट मिलती नहीं दिख रही है, जबकि वह तो बिहार का उपमुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे थे. मुकेश सहनी की पार्टी को कुल 15 सीटें महागठबंधन में मिली लेकिन उनका रॉकेट तो फुस्स निकला.

कांग्रेस की भी बिहार में यह हालत पहले नहीं हुई थी. इस बार तो कांग्रेस से अच्छा स्ट्राइक रेट जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पार्टियों का नजर आ रहा है जो एनडीए के खेमे में हैं, जबकि कांग्रेस 60 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. 2020 में कांग्रेस को 19 सीटों पर जीत मिली थी. मतलब बिहार की जनता, खासकर वहां की महिला मतदाताओं को नीतीश सरकार में ही आशा की किरण नजर आई और इसी कारण मतदान का जो प्रतिशत रहा, उसमें महिला मतदाताओं ने पुरुष मतदाताओं से लगभग 10 प्रतिशत ज्यादा मतदान किया और यही मतदान सरकार बनाने के लिए निर्णायक साबित हुआ.

Rakesh Ranjan Kumar

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

November 14, 2025, 21:40 IST

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