अब दुनिया की सेनाएं सिर्फ ज़मीन, समंदर और आसमान तक सीमित नहीं रहीं. बदलते वक्त और तकनीक के साथ कई देश पारंपरिक थल, नौसेना और वायुसेना से आगे बढ़कर नए दौर की जरूरतों को समझते हुए खास सैन्य बल खड़े कर रहे हैं. चीन ने 2015 में PLA रॉकेट फोर्स बनाई, जो मिसाइल युद्ध क्षमता पर फोकस करती है. अमेरिका ने 2019 में स्पेस फोर्स की शुरुआत की, जो अंतरिक्ष से जुड़े खतरों और सुरक्षा चुनौतियों को संभालती है. रूस ने भी इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए 2015 में एयरोस्पेस फोर्सेस का गठन किया.
इन सभी उदाहरणों से साफ है कि अब युद्ध के मैदान बदल चुके हैं. स्पेस, साइबर और ड्रोन जैसे नए डोमेन अब सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा बन रहे हैं — और देश इन्हें हल्के में नहीं ले रहे. ये बदलाव सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि उस सोच को भी दर्शाते हैं जो भविष्य के युद्धों की तैयारी को लेकर वैश्विक सेनाओं में तेजी से विकसित हो रही है.
ड्रोन या UAV का थल, जल और वायु — तीनों क्षेत्रों में लगातार बढ़ता इस्तेमाल अब सिर्फ एक तकनीकी रुझान नहीं, बल्कि एक सैन्य ज़रूरत बन चुका है. आज के समय में यह सवाल उठने लगा है कि क्या हमें पारंपरिक थल, नौसेना और वायुसेना के साथ-साथ एक अलग ‘ड्रोन मिलिट्री सेवा’ की भी ज़रूरत है? हाल के वर्षों में ‘आर्मेनिया-अज़रबैजान, रूस-यूक्रेन और इज़राइल-गाजा’ जैसे संघर्षों ने साफ कर दिया है कि ‘ड्रोन’ ने युद्ध का चेहरा पूरी तरह बदल दिया है — कम लागत, कम रिस्क और हाई इम्पैक्ट के साथ.
जून 2024 में यूक्रेन ने दुनिया को चौंकाते हुए ‘Unmanned Systems Forces’ की स्थापना की — यह दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया जिसने ड्रोन के लिए एक स्वतंत्र सैन्य शाखा शुरू की. इस यूनिट में न सिर्फ हवाई, बल्कि समुद्री और जमीनी ड्रोन भी शामिल किए गए हैं. कीव में इसके लॉन्च के दौरान ‘कर्नल वादिम सुखारेवस्की’ ने ड्रोन की रणनीतिक और सैन्य ताकत पर खास ज़ोर दिया. उन्होंने साफ कहा कि भविष्य के युद्धों में ऑटोनॉमस टेक्नोलॉजी की भूमिका सिर्फ सपोर्टिंग नहीं, बल्कि निर्णायक होने जा रही है.
दुनिया भर में उभरते ड्रोन सक्षम राष्ट्र
Centre for Economics & Foreign Policy Studies के अनुसार करीब एक दशक तक अमेरिका, ब्रिटेन और इज़राइल दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल रहे जिन्होंने ड्रोन का इस्तेमाल युद्ध और आतंकवाद के खिलाफ अभियानों में किया. खासकर 9/11 के बाद, ड्रोन आतंकवाद से निपटने के लिए एक बेहद अहम हथियार बन गए. अमेरिका ने ‘MQ-1 प्रिडेटर’ और ‘MQ-9 रीपर’ जैसे आधुनिक ड्रोन के ज़रिए आतंकियों के ठिकानों पर बेहद सटीक हवाई हमले किए.
लेकिन वक्त के साथ तस्वीर बदलने लगी. 2015 में पाकिस्तान ने भी इस तकनीक की अहमियत को समझते हुए अपने पहले स्वदेशी ड्रोन ‘बुर्राक’ का इस्तेमाल किया, जो चीनी CH-3 मॉडल पर आधारित था. इसे उत्तर वज़ीरिस्तान में उग्रवादियों के खिलाफ तैनात किया गया. ठीक एक साल बाद, 2016 में तुर्की ने भी अपना पहला ड्रोन हमला ISIS के खिलाफ किया, जिसने उसकी बढ़ती ड्रोन क्षमता का साफ संकेत दिया.
इसके बाद कई देशों ने अपनी सेनाओं में ड्रोन को शामिल करना शुरू कर दिया. नाइजीरिया ने बोको हराम जैसे आतंकवादी संगठन के खिलाफ Wing Loong II ड्रोन का इस्तेमाल किया, जो चीन में बना था. वहीं सऊदी अरब ने यमन में CH-4 ड्रोन को तैनात किया. तुर्की की ड्रोन टेक्नोलॉजी ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींचा जब उसने 2019 में ‘ऑपरेशन पीस स्प्रिंग’ के दौरान सीरिया में ड्रोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया. यह साबित करता है कि ड्रोन अब केवल निगरानी तक सीमित नहीं, बल्कि रणनीतिक हमलों का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं.
आधुनिक युद्ध में ड्रोन्स का गेम-चेंजिंग रोल
2020 में ‘नागोर्नो-कराबाख युद्ध’ के दौरान जब अज़रबैजान ने तुर्की के ‘Bayraktar TB2 ड्रोन’ का इस्तेमाल किया, तो यह ड्रोन युद्ध की दुनिया में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ. इस ड्रोन ने अज़रबैजान को सिर्फ रणनीतिक बढ़त ही नहीं दी, बल्कि आर्मेनिया को एक अरब डॉलर से ज़्यादा की सैन्य संपत्ति का नुकसान भी पहुँचाया. इसने साफ दिखा दिया कि असमान ताकत वाले युद्धों (Asymmetric Warfare) में ड्रोन कैसे छोटे देशों के लिए भी बड़ा फर्क ला सकते हैं.
ड्रोन की यह भूमिका सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रही. ‘यूक्रेन-रूस युद्ध’ में तो ड्रोन ने युद्ध की परिभाषा ही बदल दी है. हाल के महीनों में यूक्रेन के ‘FPV ड्रोन’ रूस के टैंकों के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरे हैं — रूस के दो-तिहाई टैंक इन्हीं ड्रोन हमलों में नष्ट किए गए हैं. यूक्रेन अब इस युद्ध को सिर्फ मैदान पर नहीं, तकनीक के मोर्चे पर भी लड़ रहा है. 2024 तक 20 लाख ड्रोन बनाने का उसका लक्ष्य, जिसे 200 से ज़्यादा घरेलू कंपनियों का साथ मिला, यह बताता है कि ड्रोन अब सिर्फ सपोर्ट सिस्टम नहीं, बल्कि युद्ध की फ्रंटलाइन ताकत बन चुके हैं. इस वक्त यूक्रेन हर महीने करीब 1.5 लाख ड्रोन का उत्पादन कर रहा है — ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उस रणनीतिक सोच की झलक हैं जो आने वाले युद्धों की दिशा तय करेगी: जहां कमांड सेंटर में बैठे सैनिक भी दुश्मन पर सटीक वार कर सकेंगे… बिना ज़मीन पर कदम रखे.
टैंक और तोप पीछे छूटे, अब लड़ाई ड्रोन से होगी
Business Fortune Insights की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में वैश्विक सैन्य ड्रोन मार्केट का आकार करीब 12.55 अरब डॉलर था, जो साल 2030 तक बढ़कर 35.60 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है. यानी, यह बाज़ार 14.10% की वार्षिक दर (CAGR) से तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. इस रफ्तार को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि ड्रोन अब आधुनिक युद्ध रणनीति का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं.
2022 में इस इंडस्ट्री की कमान उत्तर अमेरिका के हाथ में थी, जिसकी हिस्सेदारी करीब 36.1% रही. अगर 2021 की बात करें, तो Northrop Grumman, General Atomics, Lockheed Martin, Boeing और Israel Aerospace Industries (IAI) जैसी कंपनियाँ इस क्षेत्र में लीडर बनी रहीं. Northrop Grumman जहां हाई-टेक मिलिट्री ड्रोन के आरएंडडी में अग्रणी रहा, वहीं इज़राइल की Elbit Systems ने भी इस सेक्टर में वैश्विक पहचान बनाई. अमेरिका और इज़राइल मिलकर इस बाज़ार में छाए रहे, और अमेरिका की अकेली हिस्सेदारी 31% के आसपास थी.
लेकिन तस्वीर अब बदल रही है, 2030 तक चीन इस बाज़ार में अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है. रिपोर्ट बताती है कि चीन का अनुमानित वार्षिक विकास दर 18.7% तक पहुँच सकता है — जो बाकी देशों की तुलना में सबसे तेज़ है. ये आंकड़े सिर्फ ग्रोथ नहीं, बल्कि चीन के बढ़ते टेक्नोलॉजिकल इन्वेस्टमेंट और उत्पादन क्षमताओं का भी इशारा करते हैं. अर्थ यह निकलता है कि आने वाले वर्षों में चीन वैश्विक रक्षा ड्रोन बाज़ार में न सिर्फ बड़ा खिलाड़ी बनेगा, बल्कि अमेरिका और इज़राइल जैसे स्थापित नामों के लिए कड़ी चुनौती भी पेश करेगा.
2030 तक “ड्रोन हब” बनने की ओर भारत की तेज़ उड़ान
FICCI की रिपोर्ट “Making India the Drone Hub of the World” में यह अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक ड्रोन बाज़ार 2025 तक 54 अरब डॉलर के आंकड़े को छू सकता है. इसी रफ्तार के साथ, भारत की ड्रोन निर्माण क्षमता भी तेज़ी से आगे बढ़ रही है — जहां 2025 तक इसका आकार 4.2 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, वहीं 2030 तक यह 23 अरब डॉलर के स्तर को पार कर सकता है.
इस प्रगति की एक झलक हमें “भारत ड्रोन शक्ति 2023” के दौरान देखने को मिली. यह आयोजन 25 सितंबर 2023 को भारतीय वायुसेना (IAF) और ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया (DFI) की साझेदारी में हुआ. दो दिनों तक चले इस मेगा इवेंट में देशभर के 75 से ज़्यादा ड्रोन स्टार्टअप्स ने भाग लिया. इन स्टार्टअप्स ने अपने इनोवेटिव ड्रोन मॉडल्स का एरियल शो और स्टैटिक डिस्प्ले के ज़रिए प्रदर्शन किया, जो यह बताता है कि भारत की ड्रोन टेक्नोलॉजी किस स्तर तक पहुँच चुकी है.
यह आयोजन सिर्फ एक टेक्नोलॉजिकल प्रदर्शनी नहीं था, बल्कि भारत सरकार के उस विज़न का हिस्सा है, जिसके तहत 2030 तक भारत को दुनिया का ड्रोन हब बनाना है. जो ड्रोन यहाँ दिखाए गए, वे सैन्य और नागरिक दोनों क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए तैयार हैं — चाहे वो निगरानी हो, आपदा राहत, कृषि या बॉर्डर सिक्योरिटी. इससे साफ़ है कि भारतीय ड्रोन इंडस्ट्री न केवल आत्मनिर्भर हो रही है, बल्कि दुनिया के उभरते टेक्नोलॉजिकल नेतृत्व की ओर भी कदम बढ़ा रही है.
भारत की सैन्य रणनीति में ड्रोन की एंट्री: ‘रुस्तम II’ से लेकर ‘हेरोन’ तक
2016 से भारतीय सेना ने आधुनिक युद्ध की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सशस्त्र ड्रोन यानी Unmanned Aerial Systems (UAS) को अपनी रक्षा रणनीति में शामिल करना शुरू किया. इस दिशा में पहला बड़ा मुकाम ‘रुस्तम II’ की सफल परीक्षण उड़ान थी—जो एक मेडियम ऑल्टिट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (MALE) कॉम्बैट ड्रोन है, और भारत की आत्मनिर्भर सैन्य क्षमताओं का प्रतीक है. इसके साथ ही भारत ने विदेशी तकनीक में भी आक्रामक निवेश किया—2015 में इज़राइल से 10 और 2019 में 50 अतिरिक्त ‘हेरोन ड्रोन’ का ऑर्डर देकर. यह तेजी से उभरता रक्षा ड्रोन बाजार न केवल भारत की रणनीतिक ताक़त को नई ऊँचाइयाँ दे रहा है, बल्कि भविष्य के हाई-टेक युद्धों के लिए देश को पहले से तैयार कर रहा है.
भारत की घरेलू ड्रोन इंडस्ट्री में ‘Adani Unmanned Systems’ एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरी है. यह कंपनी खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) ऑपरेशन्स के लिए 10 प्रकार के हाई-एंड ड्रोन और 4 प्रकार के लॉटेरिंग म्युनिशन ड्रोन (सुसाइड या कामिकाज़े ड्रोन) का निर्माण करती है.
10 जनवरी 2024 को, हैदराबाद में Adani Defence & Aerospace ने भारतीय नौसेना को ‘Drishti 10 Starliner UAV’ पेश किया. यह एडवांस्ड ISR प्लेटफॉर्म एक बार में 36 घंटे तक उड़ान भर सकता है और 450 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने की क्षमता रखता है. इसकी यह क्षमता इसे बॉर्डर सर्विलांस, दुश्मन की मूवमेंट ट्रैकिंग और रणनीतिक स्ट्राइक के लिए बेहद असरदार बनाती है. ‘Drishti 10’ जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म केवल भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति को आगे नहीं बढ़ा रहे, बल्कि भारत को वैश्विक ड्रोन सुपरपावर बनाने के मिशन को भी मजबूती दे रहे हैं.
सैन्य ड्रोन: आधुनिक युद्ध का परिवर्तनकारी हथियार
ड्रोन के विभिन्न प्रकार जैसे Reconnaissance (जासूसी), Combat (लड़ाकू), Loitering Munitions (कामीकाज़े), Cargo (सामग्री ढोने वाले), Target (प्रशिक्षण लक्ष्य), Maritime (समुद्री), Suicide (आत्मघाती), Electronic Warfare (इलेक्ट्रॉनिक युद्ध) और Surveillance (निगरानी) अपनी विशिष्ट भूमिका निभाते हैं, जो युद्ध की तकनीकी और रणनीतिक परिभाषा को नया रूप दे रहे हैं.
जैसे-जैसे देश आधुनिक युद्ध की बदलती धारा के अनुरूप खुद को ढाल रहे हैं, यह स्पष्ट हो रहा है कि ड्रोन अब केवल सहायक उपकरण नहीं हैं, बल्कि एक स्वतंत्र सैन्य शाखा के रूप में अपने अस्तित्व की मांग कर रहे हैं। एक समर्पित Drone Force की स्थापना से राष्ट्र मानव रहित प्रणालियों का अधिकतम लाभ उठा सकेंगे, चाहे वह निगरानी के उद्देश्य से हो, त्वरित हमले के लिए या सीमाओं की सुरक्षा के लिए.