नई दिल्ली. खबर है कि नेपाल ने अपनी करेंसी अब भारत के बजाय चीन से छपवानी शुरू कर दी है. इतना ही नहीं, चीन के इशारे पर इन करेंसी पर बने अपने नक्शे में भारतीय क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया है. ऐसे में हर भारतीय के मन में यही सवाल उठता है कि एक समय पूरी तरह भारत पर निर्भर रहने वाला और आंखें मूंदकर हम पर भरोसा करने वाला नेपाल आखिर कैसे आंखें फेर रहा है. क्या बिना भारत के नेपाल का काम चल सकता है और इसकी भरपाई चीन से हो सकती है. इन सवालों के जवाब खोजने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
हिमालय की गोद में बसे नेपाल की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसकी सीमाएं चारों तरफ से सील हैं. तीन तरफ की सीमाएं भारत से खुलती हैं तो एक तरफ की सीमा चीन से जुड़ती है. उत्तर में छोड़कर यह देश पूरी तरह भारतीय सीमाओं से घिरा हुआ है और हमारी सीमाएं नेपाल के ज्यादा करीब और आसान भी हैं. पिछले कुछ समय से चीन भले ही नेपाल तक सड़क और अन्य साधन बना रहा है, लेकिन आवाजाही के मामले में भारत आज भी नेपाल के लिए सबसे आसान रास्ता है. अब जब दोनों देशों के बीच की सीमाएं इतनी जुड़ती हैं तो कैसे नेपाल हमसे दूर होता जा रहा है.
भारत पर कितना निर्भर है नेपाल
सिर्फ सीमाई रूप से ही नहीं, नेपाल अन्य जरूरी चीजों के लिए भी भारत पर ही निर्भर है. व्यापार, ट्रांजिट, ऊर्जा, ईंधन, खाने-पीने की चीजें, दवा और इन्फ्रा के लिए आज भी नेपाल 80 से 90 फीसदी तक भारत पर ही निर्भर है. वित्तवर्ष 2024-25 के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि नेपाल के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी 65 फीसदी से भी ज्यादा है. नेपाल का कुल आयात करीब 11.2 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें से 7.3 लाख करोड़ रुपये का आयात तो भारत से ही किया जाता है.
बिना हमारे भूखे पेट अंधेरे में रहेगा नेपाल
नेपाल की निर्भरता किस कदर भारत पर टिकी हुई है, इसका आंकड़ा देखकर आपको यही लगेगा कि बिना हमारे तो भूखे पेट अंधेरे में रहेगा नेपाल. पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, एटीएफ और केरोसिन यानी ईंधन के हर विकल्प के लिए नेपाल 95 फीसदी तक भारत पर ही निर्भर है. इंडियन ऑयल ने बिहार के मोतिहारी से नेपाल के अमलेखगंज तक पाइपलाइन बिछा रखी है. साल 2025 में अब तक भारत से 4.5 लाख किलोलीटर पेट्रोल-डीजल का निर्यात नेपाल को किया जा चुका है. इसके अलावा भारत के हाइड्रोप्रोजेक्ट से नेपाल को 1,500 मेगावाट की बिजली सप्लाई हो रही है. खाने-पीने की चीजों को देखें तो चावल, गेहूं, दाल, चीनी, खाने का तेल और फल के लिए नेपाल 70 से 80 फीसदी तक भारत पर ही निर्भर है. भारत से हर साल 12 लाख टन चावल, 8 लाख टन गेहूं जाता है. यूं समझें कि नेपाल की 60 फीसदी चावल की जरूरत भारत से ही पूरी होती है.
भारत के बिना बीमार रहेगा नेपाल
सिर्फ खाने-पीने और बिजली के लिए ही नहीं, दवाओं और रोजमर्रा की जरूरी चीजों के लिए भी नेपाल आज भी भारत पर निर्भर है. दवाएं, मेडिकल के सामान, वैक्सीन, सर्जिकल उपकरण और एपीआई जैसी जरूरी चीजों के लिए नेपाल 85 फीसदी तक भारत पर निर्भर है. इसके अलावा 90 फीसदी जेनरिक दवाएं भी वहां भारत से ही जाती हैं. कोरोनाकाल में जब चीन ने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया था तो भारत से ही कोविड की वैक्सीन नेपाल में सप्लाई की गई थी. इसके अलावा साबुन, शैम्पू, बिस्किट, नूडल्स, चाय, कॉफी जैसी चीजों के लिए भी नेपाल 80 फीसदी तक भारत पर ही निर्भर है. वहां आईटीसी, एचयूएल, नेस्ले और ब्रिटानिया जैसी कंपनियां नेपाल में अपना बड़ा कारोबार करती हैं.
न घर बनेगा न ट्रांसपोर्ट चलेगा
भारत और नेपाल के बीच किस कदर निर्भरता है, आंकड़े इसकी गवाही बखूबी पेश करते हैं. नेपाल आज भी अपने परिवहन के लिए 90 फीसदी तक भारत पर ही निर्भर करता है. कार, बाइक, ट्रक, बस, ट्रैक्टर और कंस्ट्रक्शन की मशीनरी आज भी 90 फीसदी भारत से ही जाती है. मारुति, टाटा, महिंद्रा से साल 2025 में नेपाल ने अब तक करीब 1.20 लाख वाहनों का आयात किया है. इतना ही नहीं, घर बनाने के सारे सामान भी यहीं से जाते हैं. भारत आज भी नेपाल को सीमेंट, सरिया, पाइप, ईंट और टाइल्स का 75 फीसदी निर्यात करता है. नेपाल के 70 फीसदी प्रोजेक्ट में भारतीय सामग्री का ही इस्तेमाल होता है.
कपड़े-इलेक्ट्रॉनिक सब जाते हैं भारत से
नेपाल आज भी कपड़े से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामानों तक भारत पर ही निर्भर है. नेपाल में इस्तेमाल होने वाले सूती कपड़े, रेडीमेड गारमेंट, साड़ी आदि की 60 फीसदी सप्लाई आज भी सूरत के तिरुपुर से होती है. नेपाल के कपड़ा बाजार में 50 फीसदी ब्रांड भारत के ही हैं. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण जैसे मोबाइल, टीवी, फ्रिज, एसी, पंखे आदि की 70 फीसदी सप्लाई भी भारत से ही होती है. सैमसंग, एलजी और व्हर्लपूल जैसी कंपनियां नेपाल में जमकर सप्लाई करती हैं. इसके अलावा यूरिया, डीएपी और कीटनाशक जैसे खेती के उवर्रक और सामान के लिए भी नेपाल 90 फीसदी तक भारत पर निर्भर रहता है. इतना ही नहीं, नेपाल के 100 फीसदी निर्यात विशाखापत्तनम और कोलकाता के पोर्ट ही होता है.
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3 weeks ago
