महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कौन गठबंधन जीतेगा, यह 23 नवंबर को वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा, लेकिन एक बात अभी से पता चल गई है. बात यह है कि इन चुनावों के बाद भी विधानसभा में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व बढ़ने वाला नहीं है. उन्होंने इसे बढ़ाने की पहल की, गुहार लगाई, लेकिन किसी ने नहीं सुनी. जिस एमवीए से उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद थी, उसने भी नहीं.
महाराष्ट्र की आबादी करीब सवा 11 करोड़ है. इनमें 1.3 करोड़ मुसलमान हैं, यानि कुल आबादी का 11.56 प्रतिशत (2011 की जनगणना के मुताबिक). लेकिन, बीते 25 साल में विधानसभा में कभी मुस्लिम विधायकों की संख्या पांच फीसदी भी नहीं रही.
राज्य की विधानसभा में कभी भी 13 से ज्यादा मुस्लिम विधायक नहीं रहे. आखिरी बार 1999 में सर्वाधिक 13 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. तब 288 सदस्यों वाली विधानसभा में इनकी हिस्सेदारी 4.51 प्रतिशत पहुंची थी. 2019 में दस और 2014 में महज नौ मुस्लिम विधायक चुने गए थे.
इस बार चुनाव से पहले कुछ मुस्लिमों ने बाकायदा संगठन बना कर, यात्राएं निकाल कर और अलग-अलग नेताओं से संपर्क साध कर मुसलमानों को थोड़ी अधिक संख्या में टिकट देने की गुहार लगाई, लेकिन उनकी अपील किसी ने नहीं सुनी.
चुनाव-दर-चुनाव महाराष्ट्र विधानसभा में मुस्लिम विधायक
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव | मुस्लिम विधायकों की संख्या |
1962 | 11 |
1967 | 9 |
1972 | 13 |
1978 | 11 |
1980 | 13 |
1985 | 10 |
1990 | 7 |
1995 | 8 |
1999 | 13 |
2004 | 11 |
2009 | 11 |
2014 | 9 |
2019 | 10 |
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुख्य रूप से दो गठबंधन के बीच लड़ाई है. एक तरफ है महायुती (बीजेपी, शिंदे शिवसेना और अजित पवार एनसीपी), तो दूसरी ओर है महा विकास अघाड़ी या एमवीए (उद्धव शिवसेना, कांग्रेस, शरद पवार एनसीपी).
एमवीए ने 14 तो महायुती ने 7 मुस्लिमों को दिया टिकट
जाहिर है, मुसलमानों को कुछ उम्मीद है तो वह एमवीए से ही है. मशहूर मौलाना सज्जाद नोमानी ने बाकायदा एमवीए नेताओं से मुस्लिमों को टिकट देने की अपील भी की. लेकिन, एमवीए भी उनकी उम्मीदों पर पानी ही फेर रहा है. एमवीए ने महज 14 और महायुती ने सात मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं.
राज्य में कम से कम 38 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी या इससे ज्यादा है. इनमें से 15 क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ऊपर है और नौ क्षेत्रों में इनकी संख्या 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हैं. पांच सीटों पर आधे से ज्यादा मुसलमान हैं, जबकि एक सीट (मालेगांव) ऐसी भी है जहां 60 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं. राज्य की 60 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता चुनाव परिणाम प्रभावित कर सकते हैं. इसके बावजूद पार्टियों को मुसलमानों को टिकट देने में दिलचस्पी नहीं है.
इसकी एक वजह एमवीए को यह अहसास होना हो सकता है कि उनका साथ देना मुसलमानों की मजबूरी है. पिछले चुनाव में 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली 15 सीटों में से नौ पर उन्हीं पार्टियों के उम्मीदवार जीते थे जो आज एमवीए में हैं. यह बात अलग है कि आज एमवीए में शामिल शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार) का तब बंटवारा नहीं हुआ था. लेकिन, करीब छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड दिखा कि 48 में से 30 सीटें एमवीए के खाते में चली गईं. माना जाता है कि एमवीए के इस प्रदर्शन में मुसलमानों और आंबेडकरवादी दलितों के सम्मिलित वोटों का बड़ा योगदान रहा.
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित कई भाजपा नेताओं ने भी माना कि कम से कम 14 लोकसभा सीटों पर महायुती की हार का कारण इन्हीं वोटर्स का गठजोड़ रहा. यह तब था जब एमवीए ने एक भी लोकसभा सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया था.
कांग्रेस-एनसीपी के साथ रहे हैं मुसलमान
महाराष्ट्र में पारंपरिक रूप से मुसलमान मुख्य रूप से कांग्रेस-एनसीपी के साथ रहे हैं. बीच में उन्होंने इनको छोड़ कुछ विकल्प तलाशने और आजमाने की कोशिश की थी, पर अब उन विकल्पों से भी उनका मोह भंग हो गया लगता है. विकल्प के रूप में मुसलमानों ने असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), समाजवादी पार्टी (सपा) को कुछ जगहों पर आजमाया, लेकिन लगता है अब उनसे उनका मोह भंग हो गया है. मुसलमानों का समर्थन मिलने को लेकर एमवीए का उत्साह बढ़ा होने का एक कारण यह भी हो सकता है. एमवीए मान रहा है कि मुसलमान एक बार फिर ठोस विकल्प के रूप में उनकी ओर ही देखेंगे.
मुसलमानों ने जिन पार्टियों को विकल्प के रूप में आजमाने की कोशिश की, आज शायद वे पार्टियां भी समझने लगी हैं कि वे अपने मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकीं. संभवत: इसी कारण से ओवैसी ने इस बार महज 16 उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 2019 में 44 और 2014 में 24 उतारे थे.
ओवैसी ने भी बदली चाल
ओवैसी की पार्टी का वोट पर्सेंटेज बीते दस सालों में कुछ खास बढ़ नहीं पाया है. उनकी एआईएमआईएम 2009 में 0.02 फीसदी, 2014 में 0.93 और 2019 में 1.34 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी. उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट (कुल उम्मीदवारों की तुलना में जीतने वाले उम्मीदवार) 2019 में 2014 के मुकाबले आधा (8.3 से 4.5) रह गया था. इसे देखते हुए संभव है कि इस बार ओवैसी ने कम सीटों पर ज्यादा फोकस करने की नीति से कम उम्मीदवार उतारे हों.
एमवीए को मुस्लिमों के समर्थन की मजबूरी के पीछे एक कारण हिंदू ध्रुवीकरण की राजनीति का विरोध करना भी हो सकता है. लोकसभा चुनाव में खराब नतीजे आने के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में कट्टर हिंदुत्व की राजनीति को धार देने के संकेत दिए हैं. बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव में शिंदे सेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन करने से कई बीजेपी कार्यकर्ता-नेता नाराज थे. इसलिए विधानसभा चुनाव में इनकी नाराजगी दूर करने और कोर वोटर्स को लुभाने के लिए पार्टी ने हिंदुत्व कार्ड खेलने पर जोर दिया है. हाल की कई घटनाओं से ऐसे संकेत मिले हैं. चाहे वह नीतेश राणे का भड़काऊ बयान हो या रामगिरी महाराज की पैगंबर मोहम्मद साहब पर की गई टिप्पणी का विवाद हो, भाजपा अपने कोर वोटर्स और वर्कर्स को हिंदुत्व से पीछे नहीं हटने का संकेत दे रही है. उसका यह स्टैंड मुस्लिमों को स्वाभाविक रूप से विरोधी गठबंधन यानि एमवीए की ओर आकर्षित कर सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
November 3, 2024, 17:05 IST