उत्तर प्रदेश के संभल में जारी मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों एक बेहद अहम बयान दिया था. लेकिन, उनके बयान के कुछ ही दिनों के भीतर संघ के मुख पत्र ऑर्गनाइजर ने उनसे बिल्कुल अलग राय जाहिर की है. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर ऐसे विवादों पर संघ की आधिकारिक राय क्या है? ऑर्गनाइजर इसको लेकर कवर स्टोरी बनाई है. इसमें धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक सत्य को जानने की आवश्यकता को महत्वपूर्ण बताया गया है, जबकि मोहन भागवत ने हाल ही में मंदिर-मस्जिद विवादों को फिर से उठाने को गैरजरूरी बताया था. इस संपादकीय में ‘संस्कृति न्याय’ की बात की गई है, जिससे शांति और सौहार्द बढ़ाने की बात की गई है.
पत्रिका के ताजे अंक में ‘संस्कृति न्याय की लड़ाई’ शीर्षक से एक कवर स्टोरी प्रकाशित की गई है, जिसमें संभल की जामा मस्जिद विवाद को लेकर दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश के इस शहर में मस्जिद के स्थान पर पहले एक मंदिर था. इसको लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी है.
पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर का कहना है कि अब समय आ गया है कि हम संस्कृति न्याय की इस खोज को संबोधित करें. बाबा साहेब अंबेडकर ने जातिवाद के कारणों को समझा और इसके अंत के लिए संवैधानिक उपाय दिए. हमें भी ऐसा ही दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, ताकि धार्मिक विवाद और नफरत को खत्म किया जा सके.
भागवत के बयान का जिक्र नहीं
इस संपादकीय में मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवादों पर दिए गए बयान का कोई उल्लेख नहीं है. बल्कि इसमें कहा गया है कि ऐतिहासिक रूप से जिन धार्मिक स्थलों को तोड़ा या नष्ट किया गया था, उनके बारे में सत्य जानने की मांग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
संपादकीय में कहा गया है कि इतिहास के सत्य को स्वीकारने, भारतीय मुसलमानों को आक्रमणकारियों और धार्मिक असमानता से जोड़ने से बचने और संस्कृति न्याय की तलाश करने का यह दृष्टिकोण शांति और सौहार्द के लिए आशा प्रदान करता है. यदि कुछ उपनिवेशी बुद्धिजीवी और ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ के समर्थक इस सत्य को जानने से रोकते हैं, तो यह उग्रवाद, अलगाववाद और दुश्मनी को बढ़ावा देगा.
मोहन भागवत ने क्या कहा?
इस महीने के शुरू में मोहन भागवत ने कहा था कि भारत में नए मंदिर-मस्जिद विवाद उठाना अब ठीक नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं के विश्वास का मामला था. उन्होंने पुणे में विश्वगुरु भारत पर एक व्याख्यान में कहा था कि राम मंदिर हिंदुओं के लिए विश्वास का विषय था. हिंदू मानते थे कि राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इससे कोई हिंदू नेता बन जाएगा. भागवत ने यह भी कहा कि राम मंदिर का निर्माण धार्मिक विश्वास का मुद्दा है, और इसे लेकर नए विवाद नहीं खड़े होने चाहिए. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आरएसएस ने राम मंदिर आंदोलन में भाग लिया था, लेकिन भविष्य में ऐसा कोई नया आंदोलन नहीं होगा.
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FIRST PUBLISHED :
December 26, 2024, 15:09 IST