ये दूसरा नकबा है!' UN एक्सपर्ट ने बताया- गाजा में जिंदगी पटरी पर लौटने में कितना वक्त लगेगा?

3 hours ago

Nakba Part 2: इजरायल-हमास के बीच 2 साल तक चले जंग में गाजा पट्टी मलबे में तब्दील हो चुका है, यहां की इमारतें रहने लायक नहीं बचीं. 10 अक्टूबर 2025 को सीजफायर के ऐलान के बाद लोग गाजा में अपने पुराने इलाकों में लौटने लगे हैं, हालांकि यहां जिंदगी इतनी आसान नहीं होगी. यूनाइटेड नेशंस के एक एक्सपर्ट ने इसे 1948 के 'नकबा' से जोड़ा है, उनका कहना है कि इजरायल को गाजा पट्टी में टेंट और कारवां तुरंत पहुंचाने की इजाजत देनी चाहिए, क्योंकि बमबारी वाले इलाके के उत्तरी इलाके में लौटने वाले विस्थापित फिलिस्तीनियों के घर और मोहल्ले तबाह हो गए हैं.

मलबा बन चुका है गाजा
सही घर के अधिकार (Right to adequate housing) पर यूनाइटेड नेशंस के खात दूत बालकृष्णन राजगोपाल (Balakrishnan Rajagopal) ने कहा कि उत्तरी गाजा में जिन इलाकों से इजरायली सेनाएं हटी हैं, वहां लोगों को मलबे के अलावा कुछ नहीं मिल रहा है. उन्होंने शनिवार 11 अक्टूबर 2025 को 'अल जज़ीरा' को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "साइकोलॉजिकल इम्पैक्ट और ट्रॉमा बहुत गहरा है, और यही हम अभी देख रहे हैं क्योंकि लोग उत्तरी गाजा लौट रहे हैं."

घर वापस लौट रहे फिलिस्तीनी
2 साल से चल रहे संघर्ष को रोकने के लिए इजरायल और हमास के बीच हुए सीजफायर के तहत बीते शुक्रवार को इजरायली सेना के पीछे हटने के बाद, हजारों फिलिस्तीनी गाजा के उत्तरी इलाके में वापस आ रहे हैं. तटीय इलाकों में बसे फिलिस्तीनियों ने इजरायल की बमबारी को सस्पेंड करने का स्वागत किया है, जिसने अक्टूबर 2023 से अब तक 67,700 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है और गाजा को मानवीय संकट में डाल दिया है.

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गाजा में 92 फीसदी बर्बादी
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि जंग शुरू होने के बाद से गाजा में 92 फीसदी रिहायशी इमारतें डेमैज या बर्बाद हो चुकी हैं, और लाखों विस्थापित फिलिस्तीनी टेंट और अन्य अस्थायी शेल्टर्स में रहने को मजबूर हैं. राजगोपाल ने बताया कि इस साल की शुरुआत में हुए सीजफायर के दौरान तंबू और कारवां गाजा पहुंचाए जाने थे, लेकिन इजरायल की कड़ी नाकेबंदी के कारण "तकरीबन किसी को भी" अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई.

नाकेबंद खत्म करने की जरूरत
यूएन एक्सपर्ट ने बताया, "मेरे लिए इस समय यही मुद्दे का सार है. गाजा के लोगों को तुरंत राहत और मदद भी तब तक संभव नहीं है जब तक इजरायल सभी एंट्री प्वॉइंट्स पर कंट्रोल बंद नहीं कर देता. ये जरूरी है." राजगोपाल, जिन्होंने गाजापट्टी में घरों के विनाश को डिस्क्राइब करने के लिए "डोमिसाइड" शब्द का इस्तेमाल किया है, उन्होंने कहा कि गाजा में घरों की बर्बादी फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल के नरसंहार का एक सेंट्रल कंपोनेंट रहा है.

ये 'दूसरा नकबा' है
राजगोपाल ने कहा, "घरों को तबाह करना, इलाके से लोगों को हटाना और इलाके को रहने लायक न बनाना नरसंहार के मुख्य तरीकों में से एक है." उन्होंने आगे कहा कि इस रिकवरी में आखिरकार कई पीढ़ियां लगेंगी. उन्होंने 1948 में इजरायल के गठन के समय फिलिस्तीन के एथनिक क्लींजिंग (Ethnic cleansing) का जिक्र करते हुए कहा, "ये एक और नकबा (Nakba) जैसा है." "पिछले 2 सालों में जो हुआ है, वो भी कुछ ऐसा ही होने वाला है."

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(1948 के नकबा की एक तस्वीर)
 

'नकबा' क्या है
नकबा (Nakba) एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब है 'महाविपत्ति' (Catastrophe) या 'विनाश' (Destruction). ये शब्द 1948 में इजरायल के गठन के दौरान हुई उस त्रासदी को बयां करता है, जब लाखों फिलिस्तीनियों को उनके घरों और जमीनों से बेदखल किया गया. इजरायल की स्थापना के वक्त तकरीबन 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी अपने गांवों से भागने या निकाले जाने को मजबूर हुए. उनके सैकड़ों गांव तबाह कर दिए गए या इजरायली बस्तियों में तब्दील कर दिए गए. फिलिस्तीनी हर साल 15 मई को 'नकबा डे' के रूप में मनाते हैं, ताकि उस ऐतिहासिक नाइंसाफी और विस्थापन की याद को जिंदा रखा जा सके. नकबा फिलिस्तीनी संघर्ष की मूल जड़ मानी जाती है, क्योंकि आज भी लाखों शरणार्थी अपने वतन लौटने का हक मांग रहे हैं. ये घटना अरब-इजरायल संघर्ष की सबसे दर्दनाक और विवादित घटनाओं में से एक है.

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