Last Updated:November 21, 2025, 04:45 IST
Samudrayaan Deep Ocean Mission: भारत अब दुनिया के उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल होने जा रहा है, जिनके पास गहरे समुद्र की खोज की क्षमता है. चेन्नई तट से कुछ ही दूर यह मिशन शुरू होगा. अगले साल की शुरुआत में, दो वैज्ञानिक 28 टन वजनी स्वदेशी सबमर्सिबल को 500 मीटर की गहराई तक ले जाएंगे. यह भारत के डीप ओशन मिशन का हिस्सा है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के वैज्ञानिक- रमेश राजू और जतिंदर पाल सिंह, इस सबमर्सिबल को चलाएंगे. इसका नाम मत्स्य-6000 है. ये 'एक्वानॉट्स' गहरे समुद्र के रहस्यों को खोलेंगे. NIOT के डायरेक्टर बालाजी रामकृष्णन ने कहा, 'हमने रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल से गहराई में खोज की है. यह पहली बार होगा जब हम 6,000 मीटर की गहराई में इंसान को भेजेंगे'. उन्होंने जोर दिया कि इस मिशन के लिए सुरक्षा सबसे जरूरी है.

भारत का 'समुद्रयान' प्रोजेक्ट आत्मनिर्भरता की भावना को दिखाता है. डीप सी सबमर्सिबल को खरीदने के लिए दो बार ग्लोबल टेंडर जारी हुए थे. लेकिन टेक्नोलॉजी देने से मना कर दिया गया. इसके बाद सरकार ने इसे देश में ही विकसित करने का फैसला किया. रामकृष्णन ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया. उन्होंने बताया, 'पहले हम सिर्फ 1,000 मीटर तक गोता लगाने की विशेषज्ञता रखते थे'. उन्होंने कहा कि हमने पाया कि देश के भीतर ही DRDO, CSIR और ISRO की प्रयोगशालाओं में विशेषज्ञता और टेक्नोलॉजी मौजूद है. वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्र के नीचे इंसानों को भेजने से नई खोजों की संभावनाएं बहुत बढ़ जाती हैं. इंसान मौके पर ही फैसले लेने के लिए प्रशिक्षित होते हैं. समुद्रयान प्रोजेक्ट डायरेक्टर सथिया नारायणन ने कहा, 'कोई भी कैमरा इंसानी आंखों का मुकाबला नहीं कर सकता'. उन्होंने कहा, 'मानव आंख में एक अलग ही समझ (Perception) होती है. यह गहरे समुद्र के तल की बहुत जानकारी देगी'.

गहरा समुद्र कई अनएक्सप्लोर्ड मिनरल्स, फ्यूल्स और जैव विविधता का घर है. केवल अमेरिका, रूस, चीन, जापान और फ्रांस जैसे कुछ देशों के पास ही इतनी गहराई तक खोज करने की क्षमता है. समुद्रयान की सफलता से भारत भी इस चुनिंदा समूह में शामिल हो जाएगा. भारत की 11,098 किलोमीटर लंबी तटरेखा है. सरकार ने ब्लू इकोनॉमी पॉलिसी पर जोर दिया है.

NIOT कैंपस के भीतर ही मत्स्य-6000 आकार ले रहा है. यह भारत का स्वदेशी डीप सी सबमर्सिबल है. इसका 2.25 मीटर व्यास का गोला बॉयलर स्टील से बना है. इसमें हाई-डेंसिटी लिथियम-पॉलीमर (Li-Po) बैटरी, इमरजेंसी एस्केप सिस्टम और प्रोपेलर जैसी चीजें लगी हैं. मत्स्य-6000 पहले 500 मीटर की गहराई तक जाएगा. नौसेना की पनडुब्बियां (Submarines) इसी गहराई पर काम करती हैं. भारतीय वैज्ञानिक 2027 में 6,000 मीटर से भी ज्यादा गहराई में जाने की योजना बना रहे हैं. इसी समय इसरो भी गगनयान मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजेगा.
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6,000 मीटर की गहराई तक जाने के लिए बॉयलर स्टील के गोले की जगह टाइटेनियम का गोला लगाया जाएगा. इसे इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर में बनाया जा रहा है. बेंगलुरु की लैब ने इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग फैसिलिटी विकसित की है. यह 80 मिमी मोटी दीवारों वाला टाइटेनियम अलॉय गोला बनाएगी. यह 6,00 बार के दबाव को सह सकेगा. यह दबाव 6,000 मीटर गहराई पर होता है.

मत्स्य-6000 एक ऑटोनॉमस व्हीकल है. यह 30 मीटर प्रति मिनट की रफ्तार से समुद्र के तल तक जा सकता है. इसमें बाहरी लाइटें और पोर्टहोल्स लगे हैं. यह रोबोटिक आर्म्स और बाहरी कैमरों से भी लैस होगा. सभी उपकरणों को DNV नामक ग्लोबल संस्था से सर्टिफाई किया जाएगा. यह उन्हें गोता लगाने के लिए हल्का और दबाव सहने के लिए मजबूत बनाएगा. हर 10 मीटर गहराई पर पानी का दबाव एक एटमॉस्फेरिक प्रेशर बढ़ जाता है.

NIOT के ग्रुप हेड सेथुरमन रमेश ने कहा, 'DNV सर्टिफिकेशन मत्स्य-6000 को गहरे समुद्र की खोज के लिए सबसे सुरक्षित वेसल्स में से एक बना देगा'. पिछले अगस्त में, दोनों वैज्ञानिकों ने फ्रांसीसी सबमर्सिबल नटिल (Nautile) में 5,000 मीटर की गहराई तक यात्रा की थी. इस यात्रा से उन्हें सबमर्सिबल के ऑपरेशन की दुर्लभ जानकारी मिली. यह अनुभव मत्स्य-6000 के विकास में बहुत काम आ रहा है.
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1 hour ago
