Last Updated:May 21, 2025, 16:39 IST
अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान के पिता यूपी और खासकर लखनऊ, सीतापुर के जाना-माना और अजीम नाम थे. वह विधायक रहे. कई किताबें लिखीं. लेक्चर देने विदेशों में जाते थे. अपने सियासी भाषण...और पढ़ें

अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विभाग के प्रोफेसर अली खान यूपी के एक राज परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता महमूदाबाद रियासत के राजा थे. खुद काफी पढ़े लिखे शख्स थे. कई किताबें लिखीं. लेक्चर देने विदेशों में जाते थे. नेता भी बने. चुनाव भी जीता. उनकी मां राजपूत थीं. मां और पिता का प्रेम विवाह हुआ. जानते हैं प्रोफेसर अली खान के पिता के बारे में, जिनका नाम आज भी सीतापुर से लेकर लखनऊ तक बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है.

उनके पिता राजा महमूदाबाद का अक्टूबर 2023 में इंतकाल हुआ. उनके बारे में जितना कहा जाता है, उससे उन्हें लेकर दिलचस्पी और बढ़ती जाती है. अवध के सबसे अमीर राजसी परिवार के वारिस के तौर पर वह बड़े साम्राज्य और संपत्ति के मालिक थे. उन्होंने 40 सालों से कहीं ज्यादा समय तक शत्रु प्रापर्टी में डाल दी गई अपनी संपत्तियों को पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. दो बार उत्तर प्रदेश में विधायक रहे. (courtesy X)

वह शानदार शख्सियत थे. उन्होंने एक राजपूत लड़की से प्रेम विवाह किया. उनकी पत्नी राजस्थान के राजपूत घराने से थीं. ससुर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीब और देश के पूर्व विदेश सचिव थे. उनकी प्रेम कहानी भी जबरदस्त है. शादी के बाद उनकी पत्नी रानी विजया खान के नाम से जानी गईं. उनके दो बेटे यानि प्रोफेसर अली खान और अमीर हसन खान एकेडमिक फील्ड से जुड़े हैं. (courtesy X)

कुल मिलाकर ये परिवार जेहनियत और नफासत से जितना जुड़ा था उतना ही तालिम से भी. सीतापुर में 22 सालों से पत्रकारिता कर रहे ज़ीशान क़दीर कहते हैं, "मैं इस परिवार को लंबे समय से जानता हूं. राजा साहब हमेशा यही कहते थे कि जिंदगी में कुछ सबसे जरूरी है तो वो है पढ़ाई है ना कि लड़ाई. वह जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाई में आर्थिक तौर पर मदद करते थे. इसके लिए फंड भी बना रखा था. (courtesy X)

क़दीर बताते हैं, राजा महमूदाबाद नियमित तौर पर इंग्लैंड और मिस्र के विश्वविद्यालयों में पढ़ाने जाते थे. वहां से जो पैसा मिलता था, उसे वह कभी नहीं लेते थे बल्कि इस राशि को जरूरतमंद बच्चों की पढाई के लिए दे देते थे. 18 भाषाओं के जानकार थे. कई किताबें लिखीं. उनकी संपत्ति लखनऊ, सीतापुर, नैनीताल के अलावा राजस्थान में फैली हुई थी. (courtesy X)

राजा महमूदाबाद पहले लखनऊ में ला मार्टिनियर में पढ़े और फिर कैंब्रिज में पढ़ने चले गए. राजा महमूदाबाद के पिता यानि प्रोफेसर अली खान के बाबा मोहम्मद खान जिन्ना के करीब थे. मुस्लिम लीग के बड़े नेताओं में एक. जब पाकिस्तान बना तो वह वहां चले गए. वहां की सियासत में भी उनका सिक्का खूब चला लेकिन प्रोफेसर अली खान के पिता अपनी मां के साथ भारत में ही रह गए. उनकी मां भी राजस्थान के बिल्हौर रियासत से ताल्लुक रखती थीं. (courtesy X)

राजा महमूदाबाद लखनऊ में वह महमूदाबाद पैलेस में रहते थे. जहां प्रवेश करते ही राजसी वैभव झलक मिलती है. महमूदाबाद एक जमाने में अवध की सबसे धनी रियासत कही जाती थी. राजा महमूदाबाद कांग्रेस के टिकट पर 1985 और 1989 में महमूदाबाद से ही उत्तर प्रदेश में विधायक रहे. पिता के पाकिस्तान चले जाने उनके परिवार की काफी ज्यादा संपत्तियां एनमी प्रापर्टी के घेरे में आ गईं. ऐसे में राजा मोहम्मद अमीर मोहम्मद ने खुद को असली वारिस बताते हुए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला भी दिया लेकिन यूपीए सरकार ने नया कानून बनाकर ज्यादातर संपत्तियों को वापस ले लिया. (courtesy X)

बताया जाता है कि राजा महमूदाबाद पढ़ने-लिखने में लीन रहने वाली शख्सियत थे. खासकर कविता और पश्चिमी दर्शन के साथ एस्ट्रोनॉमी और गणित में उनका खास दखल था. वह लंदन के रायल एस्ट्रोनामिकल सोसायटी के फैलो थे. एस्ट्रोफिजिक्स पर भी उनकी पकड़ थी. उनका कमरा किताबों से भरा रहता था. कुल मिलाकर वह ऐसे शख्स थे जो इतिहास, दर्शन, गणित, खगोल भौतिकी, धर्म, साहित्य, कविता में पारंगत थे. (चित्र में अपने दोनों बेटों के साथ) (courtesy X)

मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान को प्यार से सुलेमान भाई कहा जाता था. हालांकि औपचारिक रूप से वह लोगों के लिए महमूदाबाद के राजा या 'राजा साहब' ही थे. बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन वह कभी कभी सीतापुर के महमूदाबाद जाया करते थे. अपने किले में रुकते थे. कहा जाता है कि जब वह सियासती भाषण देते थे तो उसकी शुरुआत संस्कृत के श्लोकों से करते थे. जितनी सहजता से वह कुरान की आयतें पढ़ते, उसी रवानगी से रामायण के श्लोक भी उद्धृत करते. उन्होंने वेदों और उपनिषदों का भी ज्ञाता माना जाता था. (courtesy X)

वह जब कैंब्रिज पढ़ने गए, वहीं पर उन्हें विजया सिंह मिलीं जो राजस्थान के उदयपुर शहर के ऐसे परिवार थीं जो जाना माना प्रतिष्ठित राजपूत खानदान है. पिता जगत सिंह मेहता 1976 से लेकर 1979 तक भारत के विदेश सचिव थे. कैंब्रिज में पढ़ने के दौरान ही राजा साहब को विजया से प्यार हो गया. फिर दोनों ने शादी की. इस शादी में कुछ उतार चढ़ाव जरूर आए लेकिन शादी हुई. उनके बाद उनके दोनों बेटे भी कैंब्रिज पढ़ने गए. (courtesy X)