हाइलाइट्स
जम्मू कश्मीर अब पहले की तरह अधिकार संपन्न पूर्ण राज्य नहीं हैउसका दर्जा 2019 में बदलकर केंद्र शासित प्रदेश का हो चुका हैदिल्ली की तरह वहां असली ताकर उप राज्यपाल के पास होंगी
वर्ष 2019 में जम्मू कश्मीर की अंतिम राज्य सरकार भंग कर दी गई. वर्ष 1952 से चली आ रही ये सरकार देश की दूसरी राज्य सरकारों की तुलना में ज्यादा अधिकार रखती थी. राज्य को देश में आर्टिकल 370 के तहत स्पेशल दर्जा मिला हुआ था. वर्ष 2019 में सबकुछ खत्म हो गया. इसके बाद ये राज्य दो केंद्रशासित टुकड़ों टूट गया- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख.अब जबकि राज्य में नए चुनाव हो चुके हैं और नई सरकार बनेगी. तो ये कहा जाना चाहिए कि सबकुछ पिछली राज्य सरकारों जैसा नहीं होगा. नई राज्य सरकार काफी हद तक असली अधिकारों से विहीन होगी. असल में राज्य में सुपर बॉस तो लेफ्टिनेंट गर्वनर ही होंगे.
नई राज्य सरकार के गठन के बाद भी क्यों उप राज्यपाल के पास ही असल शक्तियां होंगी, ये जानने वाली बात है. और क्यों होंगी ये भी जानना चाहिए. जिस तरह दिल्ली में उप राज्यपाल की ताकत निर्वाचित सरकार से ज्यादा है, कुछ वैसा ही जम्मू-कश्मीर में भी देखने को मिलने वाला है.मतलब ये है कि राज्य में असल ड्राइविंग सीट अब भी काफी हद तक उप राज्यपाल के पास ही होंगी.
इसकी वजह है राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद नया बना जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम. जो उप राज्यपाल महत्वपूर्ण कंट्रोल देता है. राज्य की प्रशासनिक शक्ति एलजी कार्यालय में केंद्रीत हो जाती है. इसके जरिए वह सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के कामों पर कंट्रोल ही नहीं करेगा बल्कि सीधे सीधे शासन को प्रभावित भी करेगा.
किन मामलों में उपराज्यपाल की चलेगी
कानून और व्यवस्था, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस कामों सहित विभिन्न प्रशासनिक मामलों में केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा.
मतलब ये है कि निर्वाचित विधानसभा के बावजूद एलजी दैनिक शासन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विवेक का प्रयोग कर सकते हैं. कानून-व्यवस्था और पुलिस पर कंट्रोल पूरी तरह राज्यपाल के पास रहेगा.
चूंकि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को बाहर करने के लिए विधानसभा की विधायी शक्तियों में कटौती की गई है, इसलिए नई सरकार की कार्यकारी शक्तियां और क्षमता गंभीर रूप से कमजोर और समझौतापूर्ण हो जाएगी. ऐसी व्यवस्था केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल को सर्वशक्तिमान बना देती है. राज्य में सब कुछ गृह विभाग के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें पुलिस, कानून और व्यवस्था, जेल, बंदीगृह आदि शामिल हैं.
नई विधानसभा के पास सीमित विधाई शक्तियां
जम्मू – कश्मीर नई विधानसभा के पास सीमित विधायी शक्तियां होंगी, विशेष रूप से पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था जैसे विषयों के संबंध में. अन्य मामलों पर वह जरूर कानून बना सकती है लेकिन किसी भी वित्तीय कानून को एलजी से पूर्व अनुमोदन की जरूरत होगी, जो विधानसभा के असर और कामकाज पर असर डालेगा.
राज्यपाल करेंगे 5 विधायकों को नोमिनेट
जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल के पास विधानसभा में 5 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है, जिनके पास विधायक की पूर्ण विधाई शक्तियां होंगी. ये विधानसभा के भीतर शक्ति संतुलन को बदल सकता है. विधानसभा के मनोनीत सदस्यों को वे सभी अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, जिनके निर्वाचित सदस्य हकदार होंगे. उन्हें वोट देने का अधिकार है, विधानसभा के कामकाज में भाग लेने का अधिकार है और सरकार के गठन में भूमिका का भी.
सारे बड़े फैसलों पर एलजी की मंजूरी जरूरी
बेशक निर्वाचित सरकार का स्थानीय प्रशासनिक मामलों पर कुछ प्रभाव हो सकता है लेकिन बड़े फैसले – खासकर कराधान या महत्वपूर्ण नीतिगत बदलावों से जुड़े फैसले के लिए एलटी की मंजूरी लेनी होगी.
सीनियर अफसरों की नियुक्ति और तबादलों पर कंट्रोल
राज्य में सीनियर अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति जैसी चीज पर उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी. उप राज्यपाल इसमें अडंगा भी डाल सकता है और इन्हें नामंजूर भी कर सकता है.
जुलाई में, केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियों का दायरा और बढ़ा दिया. जिससे उन्हें पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों और केंद्र शासित प्रदेश के महाधिवक्ता सहित वरिष्ठ कानून अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने का एकमात्र अधिकार मिल गया.
ऐसी सरकार के बारे में सोचिए जो अपनी नौकरशाही का चयन नहीं कर सकती. जिसका जिला पुलिस अधिकारी या एसएचओ पर कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है, क्या वह नगरपालिका समिति से बेहतर होगी.
नई सरकार के असर पर संदेह
जम्मू – कश्मीर चूंकि केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है, लिहाजा नई व्यवस्था के तहत लोगों में नई सरकार के असर को लेकर काफ़ी संदेह है. लिहाजा राज्य सरकार के रोजाना के कामकाज में उप राज्यपाल का दखल रहेगा. ये स्थिति कानूनी चुनौतियों को जन्म दे सकता है.
विधेयकों को लटका सकता है
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 38 उपराज्यपाल को यह अधिकार देती है कि वह विधानसभा द्वारा दूसरी बार पारित किए जाने के बाद भी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकते हैं. इसी तरह, अधिनियम की धारा 39 में कहा गया है कि किसी विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति या असहमति आने की कोई समय-सीमा नहीं है.
अन्य केंद्र शासित सरकारों की क्या स्थिति
दिल्ली – कुल सीटें: 70
दिल्ली विधानसभा के पास पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था का कंट्रोल नहीं है लेकिन उसके पास जम्मू-कश्मीर विधानसभा की तुलना में ज्यादा अधिकार हैं. एक अलग अध्यादेश के जरिए दिल्ली के उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण और दिल्ली विधानसभा को बुलाने, सत्रावसान करने और भंग करने सहित कई मामलों में विवेक प्रयोग करने का अधिकार है
पुडुचेरी – कुल सीटें: 30
(पुडुचेरी की विधानसभा के पास पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था सहित महत्वपूर्ण विधायी शक्तियां हैं)
तुतु फिलहाल यहां कोई विधानसभा नहीं है. शासन सीधे केंद्र सरकार द्वारा उपराज्यपाल के माध्यम से चलाया जाता है. चंडीगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव जैसे अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में भी अपनी विधानसभाएं नहीं हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 7, 2024, 20:23 IST