Last Updated:June 24, 2025, 17:00 IST
Lalu Yadav News: तेजस्वी यादव को आगे कर लालू यादव क्या 2025 चुनाव में दिखाएंगे दम? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि लालू प्रसाद यादव फिर से आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, लेकिन उनकी उम्र और स्वास्थ्य ...और पढ़ें

लालू यादव 13वीं बार राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए.
हाइलाइट्स
लालू प्रसाद यादव फिर बने RJD अध्यक्ष, बिहार की राजनीति में नई चर्चा..बिना प्रतिद्वंद्वी के निर्विरोध चुने गए. क्या वे 2025 के चुनाव में जीत दिलाएंगे? लालू यादव का 13वां कार्यकाल RJD के लिए वरदान है या फिर चुनौती?पटना. लालू प्रसाद यादव एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं. आरजेडी राष्ट्रीय निर्वाचन पदाधिकारी रामचंद्र पूर्वे ने इस बात की घोषणा करते हुए बताया कि उनके सामने कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था और लालू प्रसाद यादव निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं. बता दें कि 78 वर्ष के लालू यादव स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और ऐसे में आरजेडी के इस कदम से बिहार की सियासत में एक बार फिर चर्चा छेड़ दी है, कि क्या लालू यादव में अब वो दम बचा है जो आरजेडी की सियासी नैया पार लगा पाएं. इसके साथ सवाल उठ रहे हैं कि क्या लालू में अब भी वह करिश्मा बाकी है जो RJD को 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दिला सकें? क्या वे केवल प्रतीकात्मक चेहरा हैं या उनकी सक्रियता पार्टी को मजबूती देगी? लालू के पद न छोड़ने के पीछे की वजह क्या है और यह RJD के साथ NDA की राजनीति को कितना प्रभाव डालेगा?
बता दें कि लालू यादव ने 1997 में RJD की स्थापना की और तब से पार्टी की कमान संभाले हुए हैं और पूरी पार्टी ही उनके नाम से पहचान रखती है. खास तौर पर उनकी सामाजिक न्याय की राजनीति और मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण ने बिहार में RJD को मजबूत आधार दिया है. हालांकि, उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर कई सवाल हैं. सवाल यह कि क्या वह अब वो दम दिखा पाएंगे जिसकी अपेक्षा आरजेडी उनसे करती रही है. वर्ष 2014 में उनकी हार्ट सर्जरी हुई है और 2022 में किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका है. जाहिर है उनकी राजनीतिक सक्रियता पर सवाल उठते हैं. ऐसे में अब जब एक बार फिर लालू यादव ने नेतृत्व नहीं छोड़ा तो इसके पीछे कई रणनीतिक कारण हैं.
लालू यादव का नाम RJD की पहचान
राजनीति के जानकारों की मानें तो लालू यादव का नाम ही RJD की पहचान है और उनका जनता से सीधा जुड़ाव इसका बड़ा पैमाना है. खासकर पिछड़े, दलित और मुस्लिम समुदायों में लालू यादव आज भी अत्यंत प्रभावी हैं. हाल के RJD राज्य परिषद बैठक में लालू ने कार्यकर्ताओं से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का आह्वान किया जिससे साफ है कि वे तेजस्वी यादव की युवा छवि को अपने अनुभव के साथ जोड़कर पार्टी को एकजुट रखना चाहते हैं. दूसरा, लालू यादव का मौजूद होना ही नेतृत्व पार्टी में आंतरिक गुटबाजी को नियंत्रित करता है. बीते दिनों पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और तेजस्वी के बीच मतभेद की खबरें आईं, लेकिन लालू यादव की मौजूदगी ने इन विवादों को दबाने में बड़ी भूमिका निभाई.
लालू के अध्यक्ष बनने का RJD पर असर
राजनीति के जानकारों का मानें तो लालू यादव का नेतृत्व RJD के लिए एकजुटता का भी प्रतीक है. उनके बिना पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा हो सकता है, क्योंकि तेजस्वी यादव अभी राष्ट्रीय स्तर पर लालू जितना प्रभाव नहीं बना पाए हैं. वहीं, लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी कई बार सामने आ चुकी है. इससे इतर बड़ी बात यह भी कि लालू यादव की मौजूदगी कार्यकर्ताओं में जोश भरती है. RJD ने ‘लालू सम्मान दिवस’ के रूप में 5 जुलाई को उनके दोबारा चुने जाने का जश्न मनाने की योजना बनाई है जो कार्यकर्ताओं को चुनावी मोड में लाने की रणनीति कही जा रही है. असल बात तो यह कि लालू वो फेस हैं जो कार्यकर्ताओं में जोश भर देता है.
अगर लालू यादव और तेजस्वी यादव…
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, लालू यादव की मौजूदगी जहां आरजेडी के लिए मजबूती है वहीं एनडीए के लिए चुनौती भी है. लालू का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण और मुस्लिम वोटों पर पकड़ (बिहार में 18% मुस्लिम आबादी) RJD को मजबूत बनाती है. वक्फ बिल के खिलाफ लालू का विरोध मुस्लिम वोटों को एकजुट कर दिया है. अगर लालू यादव और तेजस्वी यादव महागठबंधन को एकजुट रखने में कामयाब रहे तो NDA के 225 सीटों के लक्ष्य को चुनौती मिल सकती है. लालू यादव का 13वां कार्यकाल RJD के लिए एक रणनीतिक कदम है जो पार्टी को एकजुट रखने और MY समीकरण को मजबूत करने का बड़ा प्रयास है.
लालू यादव का हाथ तेजस्वी की पीठ पर
दूसरी ओर NDA ने नीतीश कुमार को अपना चेहरा बनाया है तो लालू यादव का आरजेडी अध्यक्ष बने रहना एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकता है. नीतीश और बीजेपी लालू की ‘जंगलराज’ की छवि को भुनाकर सुशासन और विकास के मुद्दे को आगे रख सकते हैं, लेकिन लालू की मास अपील अलग कहानी कहती है. उनकी उम्र, स्वास्थ्य और ‘जंगलराज’ की छवि के बावजूद लालू यादव का हाथ तेजस्वी यादव की पीठ पर रहा तो युवा अपील को सकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकती है. हालांकि, लालू का अनुभव महागठबंधन को मजबूती दे सकता है, लेकिन NDA उनकी कमजोरियों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा. 2025 का चुनाव तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता और लालू की विरासत के बीच संतुलन पर निर्भर करेगा.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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